भोपाल। रेशम की साड़ी, सूट या दुपट्टे किसे पसंद नहीं होते, खासकर महिलाओं और युवतियों को। शादियों में रेशम की साड़ी देने का तो खास रिवाज रहा है। भागलपुर और असम के रेशमी वस्त्र हमेशा से ही मांग में रहे हैं, लेकिन अब भोपाल के महिला पॉलिटेक्निक कॉलेज में मध्य प्रदेश का ऐसा पहला सिल्क स्टूडियो शुरू किया गया है, जहाँ रेशम के धागों का कमाल और फैशन डिजाइनिंग विशेषज्ञों का हुनर देखने को मिलेगा।
कॉलेज में फैशन डिजाइनिंग डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ. आरती लाड़ के अनुसार यह अपनी तरह का ऐसा अकेला स्टूडियो है, जहाँ सिल्क कसीदाकारी के क्षेत्र में नवाचार करते हुए रेशम के वस्त्र तैयार किये जा रहे हैं। मध्यप्रदेश सिल्क फेडरेशन के सहयोग से शुरू हुए इस सिल्क स्टूडियो में डिजिटल मोड में मशीन से कसीदाकारी की सुविधा शुरू की गई है। इस कार्य के लिए यहां के फैशन डिजाइनिंग विशेषज्ञ बीते 6 महीने से शोध कार्य में जुटे हुए हैं।
डॉ. आरती बताती हैं यह ऑटोमेटिक मशीन सिल्क फेडरेशन की तरफ से मिली है और शोध/अनुसंधान के लिए रॉ सिल्क मटेरियल व धागा भी फेडरेशन ही उपलब्ध करवाता है। हमारा काम मशीन एंब्रायडरी के जरिए इन सिल्क/रेशमी धागों से नवाचार करते हुए विशेष तरह के नायाब डिजाइन तैयार करना है। पिछले 6 महीनों में हमने 40 तरह के सैंपल्स तैयार किए हैं। राम मंदिर स्थापना के समय राम मंदिर का ग्राफिकल डिजाइन तैयार किया था, सिल्क फेडरेशन ने बाद में इसके बल्क में 100 पीस तैयार करवाए।
आसान नही होता सिल्क पर डिजाइन तैयार करना
शोध में जुटे तकनीकी दल के सदस्यों में शामिल नीलम राजपूत और कम्प्यूटर इंजीनियर सुप्रिया सुतार ने बताया कि सामान्य तौर पर आसान सी दिखने वाली डिजाइन दरअसल सिल्क पर धागे से बनाने के दौरान बहुत मुश्किल से तैयार हो पाती है। वे बताती हैं एक बार हमने बैम्बू ट्री के बीच पांडा बनाने कोशिश की, लेकिन उस डिजाइन को बनाने में हमें 90 बार मशीन पर धागा बदलना पड़ा। इसका असर यह हुआ कि हम दिनभर में सिर्फ एक नमूना ही तैयार कर पाए। यह इतना समय लेने वाला काम था कि हमें इस डिजाइन पर रिसर्च का काम ही बंद करना पड़ा। विशेषज्ञ बताते हैं कि वही डिजाइन उत्तम मानी जाती है, जिसे कम समय में बेहतर गुणवत्ता के साथ कपड़े पर उतारा जा सके।
संदर्भ स्रोत : दैनिक भास्कर
संपादन : मीडियाटिक डेस्क
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