किन्शुक की फ़िल्म 'मार्चिंग इन द डार्क'  

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किन्शुक की फ़िल्म 'मार्चिंग इन द डार्क'  
को 'लैंगिक संवेदनशीलता पुरस्कार'  

धर्मशाला इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल

युवा फ़िल्मकार किन्शुक सुरजन की फ़िल्म 'मार्चिंग इन द डार्क' को हाल ही में संपन्न धर्मशाला इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल में 'लैंगिक संवेदनशीलता पुरस्कार' (Gender Sensitivity Award) से नवाज़ा गया है। यह पुरस्कार उन्हें फ़िल्म क्रिटिक्स गिल्ड की ओर से फ़ेस्टिवल की संस्थापक ऋतु सरीन ने प्रदान किया। फ़िल्म क्रिटिक्स गिल्ड, भारत में फ़िल्म समीक्षकों का संभवतः अकेला संगठन है, जिसकी अध्यक्ष जानी-मानी फ़िल्म समीक्षक अनुपमा चोपड़ा हैं। धर्मशाला फ़िल्मोत्सव में 'गिल्ड' का यह एकमात्र पुरस्कार था, जो किसी फ़िल्मकार को दिया गया है। 

'मार्चिंग इन द डार्क' कनाडा के हॉट डॉक्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल, चीन के सिल्क रोड इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल, ब्राज़ील के साओ पॉलो में मोस्ट्रा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल तथा मुंबई के मामी इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल सहित अब तक विश्व के 15 अलग-अलग फ़िल्मोत्सवों में प्रदर्शित की जा चुकी है और इसे कोपेनहेगन के सीपीएच डॉक्स फ़ेस्टिवल तथा ज्यूरिख फ़िल्म फेस्टिवल में 'स्पेशल मेंशन', लिथुवानिया के इनकन्विनिएंट फ़िल्म्स में 'सर्वश्रेष्ठ उभरते फ़िल्मकार', इटली के बायोग्रा फ़ेस्टिवल में यंग क्रिटिक्स अवार्ड एवं ऑडियंस अवार्ड, तेल अवीव के डॉक अवीव फ़ेस्टिवल में बेस्ट इंटरनेशनल फ़िल्म अवार्ड हासिल हो चुके हैं। इसके अलावा इस फ़िल्म का चयन स्विट्ज़रलैंड के लुसर्न में यूरोपियन फ़िल्म अकादमी द्वारा बेस्ट डाक्यूमेंट्री श्रेणी में किया जा चुका है। 'मार्चिंग इन द डार्क' का अगला प्रदर्शन दिसंबर में रोम इंटरनेशनल डॉक्यूमेंट्री फिल्म फ़ेस्टिवल में होगा।    

क्लिनदोई फ़िल्म्स, ब्रसेल्स द्वारा निर्मित यह फ़िल्म मराठवाड़ा की उन स्त्रियों पर केन्द्रित है, जिनके किसान पति क़र्ज़ न चुका पाने के कारण आत्महत्या कर चुके हैं। परिवार और समाज में तिरस्कृत होती ये स्त्रियां एक मनोचिकित्सक के जरिये एक-दूसरे से मिलती हैं और अपनी पीड़ा साझा करती हैं। इसके साथ ही वे एक-दूसरे को हौसला देती हैं और अपने पैरों पर खड़े होने का जतन भी करती हैं।

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