महिला सम्मान पर खड़गे के सवाल

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महिला सम्मान पर खड़गे के सवाल

प.बंगाल मामले में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बयान के बाद देश में महिलाओं की स्थिति और उनकी सुरक्षा को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ गई है। लेकिन इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक लंबी पोस्ट में जिन बिंदुओं को उठाया है, उन पर भी गौर किया जाना चाहिए। राष्ट्रपति महोदया ने बस बहुत हो गया, यह कहते हुए 12 साल पहले हुए निर्भया कांड को भी याद किया और कहा कि ‘12 वर्षों में इसी तरह की अनगिनत त्रासदियां हुई हैं, हालांकि केवल कुछ ने ही पूरे देश का ध्यान खींचा। जैसे-जैसे सामाजिक विरोध कम होते गए, ये घटनाएं सामाजिक स्मृति के गहरे और दुर्गम कोने में दब गईं, जिन्हें केवल तभी याद किया जाता है जब कोई और जघन्य अपराध होता है।’ श्रीमती मुर्मू ने कहा कि सामाजिक पूर्वाग्रहों के साथ-साथ कुछ रीति-रिवाजों और प्रथाओं ने हमेशा महिलाओं के अधिकारों में अड़चन डाली है।

राष्ट्रपति मुर्मू ने जो बातें कहीं हैं, उनसे असहमत नहीं हुआ जा सकता, लेकिन जब प.बंगाल के मामले में भाजपा लगातार विरोध-प्रदर्शन कर रही है, तभी राष्ट्रपति ने ऐसी चिंता क्यों ज़ाहिर की, इस पर सवाल उठने लगे हैं। इधर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी देश में महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों पर चिंता जाहिर की है। लेकिन इसमें श्री खड़गे ने एक खास बात कही है कि हमें बेटी बचाओनहीं बेटी को बराबरी का हक़ सुनिश्चित करोचाहिए।' उन्होंने कहा कि महिलाओं को संरक्षण नहीं, भयमुक्त वातावरण चाहिए।

गौरतलब है कि मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में जनवरी 2015 में हरियाणा से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की थी। इसके जरिए महिला सशक्तीकरण की बात कही गई थी। लेकिन समय के साथ यह अभियान एक नारे में सिमट कर रह गया। कालांतर में कभी नारी शक्ति की बात प्रधानमंत्री मोदी ने की, कभी महिला आरक्षण विधेयक को नारी शक्ति वंदन अधिनियम का नाम देकर पारित करवा दिया। लेकिन धरातल पर महिलाओं की शक्ति को किसी न किसी तरह अपमानित करने का सिलसिला चलता रहा।

महिलाओं को बराबरी का हक ससम्मान देने की जगह उन्हें खैरात में देने की मानसिकता इस तरह की पहलों में नजर आने लगी। इसलिए अब मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि महिलाओं को संरक्षण नहीं, भयमुक्त वातावरण चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया है कि हर दीवार पर बेटी बचाओपेंट करवा देने से क्या सामाजिक बदलाव आएगा या सरकारें और कानून व्यवस्था सक्षम बनेंगी? ‘क्या हम एहतियाती कदम उठा पा रहे हैं? क्या हमारा आपराधिक न्याय तंत्र सुधरा है? क्या समाज के शोषित व वंचित अब एक सुरक्षित वातावरण में रह पा रहे हैं?’ श्री खड़गे ने पूछा है कि क्या सरकार और प्रशासन ने वारदात को छिपाने का काम नहीं किया है? क्या पुलिस ने सच्चाई छिपाने के लिए पीड़िताओं का अंतिम संस्कार जबरन करना बंद कर दिया है?

कांग्रेस अध्यक्ष के इन ज्वलंत सवालों ने भाजपा के शासनकाल में महिला सुरक्षा, महिला सम्मान, नारी शक्ति का अभिनंदन, बेटियों को बचाने और पढ़ाने के दावे, सब को कटघरे में खड़ा कर दिया है। जब राष्ट्रपति महोदया बंगाल की घटना के बाद अपने डर और निराशा को प्रकट कर रही थीं, तब उप्र के फर्रूखाबाद में दो नाबालिग लड़कियों के परिजन इस सवाल पर परेशान थे कि उनकी बेटियों की मौत कैसे हुई, क्यों उनके शव पेड़ से लटकते मिले, जिसे आत्महत्या कहा जा रहा है, क्यों उनकी बेटियों के अंतिम संस्कार की ज़ल्दबाज़ी पुलिस ने दिखाई है। इन सवालों के जवाब शायद ही उन लाचार परिजनों को मिलें, क्योंकि इससे पहले भी उप्र में एक बलात्कार की शिकार युवती के शव को पेट्रोल छिड़ककर जला दिया गया और उसे अंतिम संस्कार का नाम दिया गया।

उप्र ही नहीं देश के अनेक राज्यों में पुलिस थानों में पीड़िताओं या उनके परिजनों के साथ संवेदनापूर्ण व्यवहार नहीं होता है। बल्कि कई मामलों में तो यह देखा गया है कि आरोपी अगर रसूखदार हुआ तो पीड़ित पक्ष को थाने में भी अपमानित या उत्पीड़ित होना पड़ता है। यह व्यवहार तभी सुधर सकता है, जब पुलिस प्रशिक्षण के दौरान संवेदना के पक्ष को कुछ और वजनदार करके प्रस्तुत किया जाए। श्री खड़गे ने महिलाओं को संरक्षण बनाम भयमुक्त वातावरण को लेकर जो सवाल उठाया है, उस पर भी समाज को गौर करने की जरूरत है, क्योंकि यह सवाल केवल किसी सरकार के नजरिए से सुलझाया नहीं जा सकता। 

मनुस्मृति की सोच है कि महिलाओं को पहले पिता, फिर पति और फिर बेटे के संरक्षण में रहना चाहिए, इसी सोच पर समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी चलता है। यह सोच इसलिए पनपी क्योंकि पुरुषों के रवैये ने महिलाओं को हमेशा संभल कर रहने, बच कर रहने का अहसास कराया। अगर समाज महिला और पुरुष में बराबरी की भावना शुरु से कायम रखे, यानी अगर परिवारों से ही इसकी शुरुआत हो कि लड़का और लड़की में सिवाय शारीरिक संरचना के कोई और अंतर नहीं है और इसलिए कोई किसी से दोयम नहीं है, तो समाज में भी यही माहौल बनेगा। इसके बाद वास्तव में महिलाओं के लिये भयमुक्त वातावरण बनेगा और उन्हें किसी के भय से संरक्षण की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

सन्दर्भ स्रोत : देशबन्धु में दिनांक 30 अगस्त 24 को प्रकाशित संपादकीय

 

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