एक माँ जिसने पहले पति, फिर बेटे को

blog-img

एक माँ जिसने पहले पति, फिर बेटे को
खोया लेकिन हालात से समझौता नहीं किया 

छाया : देशबन्धु

12 मई मातृ दिवस पर विशेष 

कैलाश सनोलिया

नागदा। तमाम मुसीबतें झेलते हुए भी कोई माँ अपने बच्चों को कामयाब बना सकती है, कमलाबाई उसकी जीती-जागती मिसाल है। धार जिले के अमझेरा गांव की निवासी कमलाबाई के पति ओंकारलाल शर्मा माध्यमिक विद्यालय, दत्तीगांव में शिक्षक थे। कमलाबाई की उम्र जब लगभग 30 बरस रही होगी, वह चार बेटों की माँ बन चुकी थी। एक दिन अचानक ओंकारलाल का निधन हो गया। कमलाबाई इस अप्रत्याशित संकट के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी और बच्चों के साथ-साथ बुजुर्ग सास के भरण- पोषण की जिम्मेदारी भी उस पर आ पड़ी। सहारे के नाम पर कमलाबाई के पास पति को मिलने वाली मामूली सी पेंशन थी। महज कक्षा आठवीं तक शिक्षित कमलाबाई को प्रशासन की लचर कार्य प्रणाली से किसी भी पद पर अनुकंपा नियुक्ति भी नसीब नहीं हुई।

कोई डेढ़ दशक तक पूरा परिवार बेहद तंगहाली में जीता रहा। इस बीच बच्चों ने शिक्षा के साथ फोटाग्राफी - वीडियोग्राफी से कुछ अर्जित कर मुसीबतों का मुकाबला किया। कमलाबाई पर एक बार फिर विपत्ति आई, चार बेटों में से एक महज 18 वर्ष की उम्र में एक दुर्घटना में चल बसा। बहरहाल, विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए तीनों बेटे स्नातक हुए। सबसे बड़े अश्विन को सरकारी शिक्षक की नौकरी मिल गई। कुछ समय बाद उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर वर्ष 2007 के राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चुना गया और 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल के हाथों से ये सम्मान उन्हें दिया गया। दूसरे बेटे अरूण भी बड़े भाई के पदचिन्हों पर चलते हुए शिक्षक बने। उनकी पदस्थापना माध्यमिक विद्यालय, बग्गड़ जिला धार में हुई और उन्हें भी राष्ट्रपति पुरस्कार  2010 के लिए  चुना गया। अध्यापक अरूण ने शिक्षा के अलावा स्कूल में पर्यावरण के क्षे़त्र मे उत्कृष्ट कार्य किया। राष्ट्रपति के रूप में जिन प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने बड़े भाई को सम्मानित किया था, उन्हीं ने  2011 में अरूण शर्मा को पुरस्कार प्रदान किया। कमलाबाई के तीसरे बेटे तीसरा अविनाश ने व्यापार में हाथ आजमाने का सोचा और वे इन दिनों धार में अपना कारोबार कर रहे हैं। 

बीते दिनों के अपने संकट भरे जीवन को भूल कमलाबाई अब पूरे पोते -पोतियों के साथ वक़्त बिता रही हैं। लेकिन उनके जीवन की ये कहानी समाज के लिए प्रेरणादायी तो है ही। वे कहती हैं - "अतीत का समय निकल गया। जीवन में विषम परिस्थतियों से घबराने के बजाय उसका सामना करना चाहिए।" उन्हें अपने बच्चों की उपलब्धियों पर गर्व है। उन बच्चों के बच्चे भी अब उच्च पदों पर आसीन हैं।

संदर्भ स्रोत : देशबन्धु

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



जूनियर आईएसएसएफ विश्व चैंपियनशिप :
न्यूज़

जूनियर आईएसएसएफ विश्व चैंपियनशिप : , इंदौर की मानवी ने जीता कांस्य

वर्ष 2018 में 12 साल की उम्र में पहली बार हाथ में पिस्टल थामी

68वीं मप्र स्कूल राज्य तैराकी चैम्पियनशिप :
न्यूज़

68वीं मप्र स्कूल राज्य तैराकी चैम्पियनशिप : , जबलपुर की सैरा और तृषा ने जीता रजत

जुड़वा बहनों का राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए भी हुआ चयन

यूनिसेफ पहुंचने वाली पहली
न्यूज़

यूनिसेफ पहुंचने वाली पहली , श्रवण बाधित खिलाड़ी बनी गौरांशी

वर्ल्ड डेफ बैडमिंटन में जीत चुकी हैं  दोहरा पदक

पर्वतारोही ज्योति की चित्र कला प्रदर्शनी 21 और 22 को
न्यूज़

पर्वतारोही ज्योति की चित्र कला प्रदर्शनी 21 और 22 को

अभियानों के दौरान हिमालय की खूबसूरती को चित्रों में उकेरा

सब जूनियर गर्ल्स नेशनल फुटबॉल
न्यूज़

सब जूनियर गर्ल्स नेशनल फुटबॉल , चैम्पियनशिप -मप्र की टीम ने बाज़ी मारी

टीम में 10 लड़कियां मंडला के आदिवासी समुदाय से

उत्कृष्ट शोध कार्य के लिए डॉ. लक्ष्मी कुमरे को एसके मित्रा पुरस्कार
न्यूज़

उत्कृष्ट शोध कार्य के लिए डॉ. लक्ष्मी कुमरे को एसके मित्रा पुरस्कार

इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार इंजीनियरिंग संस्थान द्वारा 67वें आईईटीई वार्षिक सम्मेलन का आयोजन