जयवंती हक्सर : कॉलेज के लिए संपत्ति दान कर दी और माँ कहलाईं

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जयवंती हक्सर : कॉलेज के लिए संपत्ति दान कर दी और माँ कहलाईं

छाया: जे.एच. कॉलेज, बैतूल के एफ़बी अकाउंट से

शिक्षा के लिए समर्पित महिला

भगवद गीता का एक श्लोक है :

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनपुकारिणे।
देशे काले च पात्रे तद्दानं सात्विक स्मृतम्।।

अर्थात दान देना ही कर्तव्य है ऐसा मानकर अनुपकारी को ( जिसने हम पर उपकार नहीं किया अर्थात उपकार के प्रति की गई सहायता प्रतिफल है दान नहीं) उचित स्थान पर,उचित समय में तथा उचित पात्र (ज़रूरतमंद व्यक्ति) को जो दान दिया जाता है बिना फल की इच्छा के, वह दान सात्विक कहा गया है।

जयवंती हक्सर (jaywanti-haksar) ने इस भावार्थ को जिया और इतिहास में अमर हो गईं। उनका जन्म सन् 1884 में लाहौर के एक संपन्न कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। महज 12 साल की उम्र में उनका ब्याह पं. जयनारायण हक्सर के साथ हो गया। श्री हक्सर के पिता पं. रूपनारायण हक्सर (Pt. Roopnarain Haksar) इंदौर के रेजीडेंट रेप्रेज़ेंटेटिव  (resident representative देशी राज्य में रहने वाला अँग्रेज़ सरकार का प्रतिनिधि) थे। जयनारायण जी बी.ए. उत्तीर्ण करने के पश्चात तत्कालीन मध्य प्रान्त तथा बरार की प्रशासनिक सेवा में चुने गए। उनकी पहली नियुक्ति असिस्टेंट कमिश्नर के रूप में हुई, आगे चलकर वे डिप्टी कमिश्नर बने। सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्होंने बैतूल को ही अपना ठिकाना बना लिया क्योंकि यहां की सुखद जलवायु और शांत वातावरण उन्हें अत्यंत प्रिय थे।

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श्रीमती हक्सर एक आदर्श भारतीय महिला थीं। उन्होंने अपने जीवन काल में ही पौने दो लाख वर्ग फीट से भी अधिक भूमि – जिसमें उनका बंगला, बगीचा और कुआँ भी था, जनता एजुकेशन सोसायटी (Janta Education Society) को बिना किराये के उपयोग करने के लिए दे दी। दि. 09.01.1958 को उन्होंने अपनी समस्त संपत्ति जयवन्ती हक्सर प्राइवेट ट्रस्ट (ट्रस्टीज) (Jaywanti Haksar Private Trust) के नाम पर कर दी। चार साल बाद 10 अक्टूबर 1962 को न्यासी सदस्यों द्वारा यह संपत्ति म.प्र. शासन को हस्तांतरित कर दी। अगले दिन यानि 11 अक्टूबर को जयवन्ती जी ने अपने वसीयतनामे के जरिए इसे  दान स्वरूप सरकारी कॉलेज को सौंप दिया। संपत्ति का तत्कालीन मूल्य रु. 55058.58 था। बैतूल का पीजी कॉलेज इसी ज़मीन पर बना है। इस कॉलेज में साढ़े 4 हजार विद्यार्थी उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं। जबकि 5 हज़ार से ज़्यादा स्वाध्यायी छात्र इस कॉलेज में परीक्षा देते हैं।

इतना ही नहीं, अपने पति के पुण्य संकल्प के अनुसार 50 हज़ार की राशि बुनियादी शिक्षा केन्द्र, करजगांव, बैतूल को 10 एकड़ भूमि के साथ दान कर दी। समय-समय पर हक्सर दम्पत्ति ने अनेकों लोकोपकारी संस्थाओं को दान दिया। जयवन्ती जी ने अपने जीवन काल में 25 हज़ार की राशि आडियार थियोसाफिकल सोसायटी को दान स्वरूप दी। आश्चर्य नहीं कि उनके निस्वार्थ दान के कारण उन्हें माँ कहकर पुकारा जाता है। माँ जयवंती महिलाओं में उच्च शिक्षा के प्रसार की दृढ़ समर्थक थीं। उनकी वसीयत के मुताबिक दान दी गई राशि के ब्याज से प्रतिभावान विद्यार्थियों को एक-एक हज़ार रुपए प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति का वितरण किया जाता है, जो कि वर्ष 2001 से जारी है।

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3 जनवरी 1967 को दिल्ली में श्रीमती हक्सर का देहावसान हो गया। उनके दान से पुष्पित-पल्लवित महाविद्यालय रूपी पौधा भविष्य में अक्षय वट बनेगा इसमें कोई संदेह नहीं है।

डॉ. आशीष गुप्ता के आलेख के सम्पादित अंश 

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