सफ़िया खान- सहेज रहीं बुन्देलखण्ड की ऐतिहासिक विरासत

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सफ़िया खान- सहेज रहीं बुन्देलखण्ड की ऐतिहासिक विरासत

छाया: स्व संप्रेषित

• सारिका ठाकुर

बुन्देलखंड क्षेत्र की विरासत को दस्तावेजों में लम्बे समय से सहेजने का प्रयास कर रही सफ़िया खान मध्यप्रदेश के लिए जीती जागती उपहार कही जा सकती हैं क्योंकि उनकी जन्म स्थली और स्थायी आवास उत्तर प्रदेश है, जबकि उनका जीवन बुन्देलखंड के लिए समर्पित रहा।

सफ़िया खान का जन्म 8 जून 1984 को कानपुर जिले में स्थित हीरापुर गाँव में हुआ। उनके पिता श्री शकील मो. खान किसान हैं और माँ श्रीमती शहनाज़ खान कुशल गृहणी एवं प्रगतिशील विचारों की महिला हैं। सफ़िया खान  के दादा इटावा के निकट सेजनपुर गाँव के रहने वाले थे जिसे उनके ही एक पूर्वज मो. शैदाज खान ने शाहजहाँ के काल में बसाया था। सफ़िया के दादाजी शफ़ीक़ खान का विवाह कानपुर के हीरापुर गाँव में हुआ और वे घरजवांई बनकर रहने लगे थे। उनकी दादी शिक्षा के महत्व को जानती थीं, इसलिए शुरू से ही सभी बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में किसी प्रकार की कमी नहीं रखी गयी। यही वजह है कि सफ़िया के परिवार के सभी सदस्य न केवल सुशिक्षित हैं, बल्कि ऊँचे-ऊँचे ओहदों तक भी वे पहुंचे। सफ़िया चार भाई बहनों में सबसे बड़ी हैं। उन्हें और उनके भाई बहनों को आगे चलकर उच्च शिक्षा हासिल करने में परिवार के सभी सदस्यों का योगदान रहा। घर में लड़कियों की संख्या बहुत ही कम है, इसलिए सफ़िया को घर के सभी लोगों से खूब प्यार और दुलार मिला। उनके जन्म के समय में उनकी एक चाची ग्रेजुएशन कर रही थीं। उनके सिलेबस में प्रोफ़ेसर सफ़िया खान की लिखी पुस्तक थी। सफ़िया की चाची उनसे इतनी प्रभावित थीं कि मन ही मन यह तय कर लिया कि उनकी बेटी होगी तो उसका नाम वे सफ़िया ही रखेंगी। संयोग की बात है उनकी कोई बेटी नहीं हुई, लेकिन जब पहली बेटी के रूप में परिवार में सफ़िया का जन्म हुआ तो उनकी तमन्ना पूरी हो गई और आगे चल कर सफ़िया ने भी उस नाम की सार्थकता सिद्ध कर दी।

सफ़िया की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा हीरापुर में ही हुई। नौवीं से लेकर हायर सेकेंडरी तक की शिक्षा पुखरायां इंटर कॉलेज, भोगनीपुर से हुई। 1997 में हायर सेकेंडरी करने के बाद उन्होंने जूलॉजी, बोटनी और केमेस्ट्री विषय लेकर वर्ष 2002 में कानपुर यूनिवर्सिटी से स्नातक की उपाधि हासिल की। हालाँकि वे प्रथम श्रेणी में पास हुई थी, लेकिन स्नातकोत्तर के लिए उन्होंने इतिहास विषय चुना। वर्ष 2004 में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल करने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि यही वह क्षेत्र है जिसमें उन्हें आगे बढ़ना चाहिए। इसके बाद उन्होंने ‘बुंदेलखंड के आर्थिक एवं सामाजिक विषय पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एमफिल किया जो वर्ष 2009 में पूरा हुआ। इसके बाद बुंदेलखंड से जैसे उनका जीवन भर का नाता जुड़ गया। इस शोध के माध्यम से सफ़िया का परिचय बुंदेलखंड के सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं के साथ-साथ ऐतिहासिक विरासतों से भी हुआ जिसे और भी ज्यादा जानने की इच्छा बलवती होती चली गयी। यही वजह रही कि आगे चलकर उन्होंने जितने भी शोधकार्य किये, सभी किसी न किसी रूप से बुंदेलखंड से ही जुड़े रहे। एमफिल के पश्चात उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से ‘बुंदेलखंड के भवन निर्माण परंपरा’ विषय  पर पीएचडी किया जो वर्ष 2013 में पूरा हुआ।

पीएचडी के बाद वे वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान में बतौर असिस्टेंट प्रोफ़ेसर नियुक्त हो गयीं। लेकिन सफ़िया एक प्रोफ़ेसर बनकर सामान्य ढर्रे पर जीने वाले इंसानों में से कभी नहीं रही। उन्हें आईसीएसएसआर, नई दिल्ली में पोस्ट डॉक्टेरल फेलोशिप मिल गयी और वे अपनी शानदार नौकरी छोड़कर पुनः बुंदेलखंड आ गयीं। इसके बाद बुंदेलखंड पर आधारित अलग-अलग विषयों पर वे विभिन्न शोधकार्यों में व्यस्त हो गयीं। इन्डियन हिस्टोरिकल रिसर्च कॉन्सिल, नई दिल्ली के माध्यम से बुंदेलखंड के रेन वाटर हार्वेस्टिंग कन्सेर्वेशन और प्रबंध विषय पर दो वर्षों की शोध परियोजना पूरी की। स्वराज संस्थान, भोपाल की ओर से ‘बुन्देलखंड की पुरानी हावेलियों’ पर आधारित शोधकार्य वर्ष 2019 में पूरी की।

इसी बीच वर्ष 2014 में सफ़िया ने बुंदेलखंड विरासत अकादमी की स्थापना ओरछा में की। इस संस्था का उद्देश्य बुंदेलखंड की विरासत को सहेजने के साथ उस पर अनुसंधान करना है। इस अकादमी के माध्यम से अब तक ‘मध्यकालीन बुंदेलखंड का सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, विलुप्त होती बुन्देली संस्कृति तथा ‘राजस्थान एवं मध्यभारत में स्थापत्य कला एवं साहित्य’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठियों का सफल आयोजन किया जा चुका है। इसके अलावा जल संरचनाओं और चित्रकला पर आधारित दो प्रदर्शनियों का आयोजन भी किया जा चुका है। इस संस्था के माध्यम से बुन्देली जर्नल के साथ साथ पुस्तकों का प्रकाशन भी किया जा रहा है। इस संस्था के संरक्षक ओरछा राजवंश के वंशज मधुकर शाह जूदेव हैं, जिन्होंने सफ़िया के कार्यों की न केवल सराहना की बल्कि उचित सहयोग और मार्गदर्शन भी दिया।

बाद में साफिया ने अपने शोध कार्यों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाया जो बुंदेलखंड के दस्तावेज के नाम से तीन वाल्यूम में प्रकाशित हुए। अब तक सफ़िया के बुंदेलखंड पर आधारित तीस से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं, इसके अलावा वे अनेक सेमिनारों में हिस्सा ले चुकी हैं। वर्ष 2022 में इंटेक कल्चरल हेरिटेज नामक संस्था ने उन्हें ओरछा के दस्तावेजीकरण का कार्य सौंपा है।

सफ़िया अपने काम में इस कदर डूब चुकी हैं कि अपने आप को भी भूल गयीं। वे अब तक अविवाहित हैं। उनके माता-पिता के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों ने भी उनका हमेशा साथ दिया। यह अपने आप में एक मिसाल है कि शोध कार्यों के दौरान सर्वेक्षण कार्यों में उनके पिता और ताऊ भी हिस्सा लेते रहे हैं। 

 पुरस्कार/सम्मान

 • महारानी रतन कुँवरि जू सम्मान 2013-गुर्जर शोध संस्थान, दतिया

 • तुलसी सम्मान –तुलसी समिति-2015, भोपाल

 • बुन्देलखंड सुरभि-2016, वीरेंदर केशव संस्थान, टीकमगढ़

 • महाराज छत्रसाल गौरव -2016-महाराज छत्रसाल गौरव संस्थान, मउ सहानिया

 • दीवान प्रतिपाल सिंह सम्मान -2017, बुन्देली विकास संस्थान, छतरपुर

 • मधुकर पुरातत्व सम्मान -2018, मधुकर स्मृति शोध संस्थान, दतिया

संदर्भ स्रोत - सफ़िया खान से सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित 

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