सुहासिनी जोशी

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सुहासिनी जोशी

छाया: स्व संप्रेषित

कलाकार - संगीत एवं नृत्य

• सीमा चौबे

अपनी कोमल और सुरीली गायकी से लोगों को मंत्रमुग्ध करने वाली सुहासिनी जोशी आज किसी परिचय की मोहताज नही हैं। बचपन से ही लता मंगेशकर की मधुर आवाज़ उन्हें सहज ही आकर्षित करती थी। 3 साल की उम्र में जब बच्चे ठीक से बोलना तक नहीं सीखते, सुहासिनी लता जी के गाने सुनकर रेडियो के सामने ही खड़े होकर गाने की कोशिश करती। वे जब तक स्कूल जाने लायक हुईं, तब तक उन्हें सैकड़ों गाने याद हो चुके थे। उस वक्त किसी को इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि लताजी के गाने इस तरह सुनकर गुनगुनाने वाली इस लड़की के रूप में एक गायिका का जन्म हो रहा है। सुहासिनी जी बताती हैं- बचपन में जब वे तेज आवाज़ में रेडियो खोलकर लता मंगेशकर के गाने सुनती तो घर का कोई सदस्य आता और आवाज़ कम करके चला जाता, ऐसा करने पर वे बिना बोले ही अपने गुस्से का इजहार करती और रेडियो की आवाज फिर तेज कर खुद भी गुनगुनाना शुरू कर देती।

वर्ष 1964 में भोपाल में जन्मी सुहासिनी के पिता श्री विनायक जोशी वल्लभ भवन में नौकरी करते थे और मां शिक्षिका थीं। चार भाई-बहनों में दूसरे नंबर की सुहासिनी की स्कूली शिक्षा कमला नेहरू स्कूल भोपाल में हुई। नूतन कॉलेज से बी.ए. तथा रवीन्द्र कॉलेज से बी.एड की शिक्षा प्राप्त की। घर में केवल पढ़ाई का ही माहौल था, गीत- संगीत का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। इस वजह से संगीत की कोई विधिवत शिक्षा नहीं मिली, लेकिन गाने का हुनर कुदरती तौर पर मिला। संगीत के क्षेत्र से जुड़ने के बाद उन्होंने संगीत में एम.ए. किया एवं खैरागढ़ यूनिवर्सिटी से सुगम संगीत की कई परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं।

उस ज़माने में रेडियो का चलन बहुत था। सुहासिनी जी उन्हीं गीतों को सुनती और गाती थी। लोग उनकी सुरीली और सुमधुर आवाज सुनकर लता जी से उनकी तुलना करते। इसे प्रोत्साहन कहें या प्रेरणा, बस तभी से उनकी आत्मा में रच-बस गया। उनके इस शौक को उनके पिता ने समझा और उन्हें एक टेप रिकॉर्डर लाकर दिया। सुहासिनी उसमें लता जी के एक-एक गीत को सौ-सौ बार सुनतीं और गातीं। आज भी उन गानों को गाते हुए उन्हें डायरी की जरूरत नहीं पड़ती। आश्चर्य नहीं कि उन्हें लोग उन्हें मध्यप्रदेश की लता मंगेशकर कहकर पुकारते हैं।

उनका संगीत के क्षेत्र में आना भी संयोगवश ही हुआ। एक बार वे कहीं गीत गा रही थीं, वहीं श्री विजय प्रधान ने उनकी आवाज सुनी। उन्हें अपने म्यूज़िक बैंड के लिए एक गायिका की ज़रूरत थी, सो उन्होंने सुहासिनी जी से सम्पर्क किया। चूंकि इससे पहले सुहासिनी ने कभी भी व्यावसायिक रूप से गायन नहीं किया था, इसलिए उन्होंने विजय जी से कुछ समय माँगा। लेकिन उनके पिताजी ने उनका हौसला बढ़ाया और मंच पर गाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया। यही पहला कार्यक्रम उनकी ज़िन्दगी में मील का पत्थर साबित हुआ क्योंकि वहां कई इवेंट मैनेजर तथा आयोजक मौजूद थे। उन्होंने सुहासिनी जी को अपने कार्यक्रमों में गाने का प्रस्ताव दिया। इस तरह संगीत के सफर की शुरुआत तो हो गई लेकिन सुहासिनी के लिए यह सफर इतना आसान भी नहीं रहा। दरअसल, उन दिनों जबलपुर, छतरपुर और दूसरे शहरों में ‘स्टार नाइट’ हुआ करती थी। उस समय के रुढ़िवादी परिवेश में परिजन, रिश्तेदार और परिचित लोग नहीं चाहते थे कि सुहासिनी संगीत कार्यक्रमों में देर रात घर से बाहर रहें। उनके विचार से किसी भी महिला का देर रात तक बाहर रहना सामाजिक तौर पर उचित नहीं था। इस तरह उनकी सांगीतिक यात्रा में कई उतार-चढ़ाव आए, परंतु पिताजी का साथ और स्वयं के दृढ़ निश्चय की वजह से वे गायन के क्षेत्र में सफलता के साथ आगे बढ़ती गईं। आज शासकीय और अशासकीय मंचों पर कार्यक्रम प्रारंभ के लिए श्री गणेश स्तुति हो या सरस्वती वंदना या फिर मध्यप्रदेश गान सहित किसी भी धार्मिक, सामाजिक या किसी भी अवसर की बात आए तो एक ही नाम पुकारा जाता है सुहासिनी जोशी।

पिछले 32 वर्षों में मध्यप्रदेश के अलावा दिल्ली, मुंबई, गुजरात, कोलकाता सहित अनेक स्थानों पर हजारों कार्यक्रमों की प्रस्तुति दे चुकी सुहासिनी जी को अपनी कला यात्रा में जगजीत सिंह, मन्ना डे, मोहम्मद अज़ीज़, सोनू निगम, महेन्द्र कपूर, उदित नारायण, हरिहरन, रवीन्द्र जैन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ प्रस्तुति देने का सौभाग्य मिला। बकौल सुहासिनी जी, 3 फरवरी 2020 में मेरी जिंदगी का सबसे गौरवशाली दिन आया जब कई वर्षों से बंद राज्य स्तरीय सुगम संगीत ‘लता मंगेश अलंकरण’ प्रतियोगिता शुरू हुई। उस प्रतियोगिता में मुझे निर्णायक के रूप में चुना गया।

सुहासिनी जी के मुताबिक गायन एक तरह का समर्पण है, जिसमें सफलता आसानी से नहीं मिलती। संगीत के इस सफर में अनेक उतार-चढ़ाव देखने के बाद उन्होंने पार्श्व गायिकी में अपना अहम मुकाम बना लिया है। वे फिल्मी गीत-गायन मंचों का वो नायाब हीरा हैं, जिसकी चमक दिनों दिन बढ़ती जा रही है। उन्होंने अपनी कला को किसी दायरे में नहीं बांधा। फिल्मी और गैर फिल्मी गीत, गज़ल, भजन, देशभक्ति गीत, जागरण कार्यक्रमों के साथ गायन यात्रा अनवरत जारी है। भोपाल के भेल क्षेत्र में निवासरत सुहासिनी जी की पुत्री सोनल संगीत के क्षेत्र में हर कदम पर उनका सहयोग करती है।

उपलब्धियां/सम्मान:

उनके नाम उपलब्धियों की एक लम्बी श्रृंखला है। संगीत के क्षेत्र में आने के बाद उन्होंने भोपाल एवं म.प्र. के कई राज्यों में आयोजित संगीत प्रतियोगिताओं में भाग लेकर प्रथम पुरस्कार प्राप्त किए एवं बाद के वर्षों में कई संगीत प्रतियोगिताओं में निर्णायक की भूमिका निभाई। अभी तक उनकी कई एलबम, सीडी, कैसेट (‘कभी दुर्गा बनके कभी काली बनके’, ‘शिव स्त्रोत’, ‘कबीर के दोहे’, ‘अमृत वाणियां आदि) आ चुकी हैं।

• वर्ष 2014 में भोपाल में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष ‘हिन्दी का जयघोष’ की प्रस्तुति (इस गान की रिकॉर्डिंग सुहासिनी जी की ही आवाज़ में हुई)।

• मध्यप्रदेश गान ‘सुख का दाता, सबका साथी’ गाने के लिए चयन (2010)

• वर्ष 2010 में खजुराहो ग्लोबल समिट में पहली बार मध्यप्रदेश गान गाने का अवसर प्राप्त हुआ (मूल मप्र गान शान ने गया है, लेकिन मध्यप्रदेश में पहली बार सुहासिनी द्वारा ही गाया गया) इसके बाद मप्र स्थापना दिवस पर लाल परेड मैदान पर उन्होंने दोबारा इसकी प्रस्तुति दी।

• म.प्र. के अनेक सरकारी एवं गैर सरकारी समारोहों में सैकड़ों बार ‘वंदे मातरम्’ का गायन।

• अनेक मंचों पर ‘लता नाइट’ में अकेले 25-26 गीतों का गायन।

• हिन्दी के अलावा मराठी, तमिल, बंगाली, पंजाबी, सिंधी, गुजराती सहित अनेक भाषाओं में गायन।

• मध्यप्रदेश सरकार द्वारा राज्य स्तरीय ‘लता मंगेशकर अंलकरण’ 1994

• उज्जैन में महाकाल प्रांगण में ‘महाकाल’’ सम्मान’ 1995

• राष्ट्रीय युवक परिषद द्वारा सर्वोत्कृष्ट गायिका का सम्मान 1995

• अभिनव कला परिषद द्वारा सम्मानित 1996

• ज़ीटीवी के कार्यक्रम ‘सारेगामा’ में प्रस्तुति देने हेतु चयनित (भोपाल की पहली कलाकार) 1997

• संगीतकार राजेश रोशन द्वारा मालवांचल सम्मान 2010

संदर्भ स्रोत- दैनिक भास्कर तथा सुहासिनी जोशी से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित

© मीडियाटिक

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