छाया : द बेटर इंडिया डॉट कॉम
सामाजिक कार्यकर्ता
सुभद्रा खापर्डे का जन्म छत्तीसगढ़ के दरगाहन गाँव में हुआ। उन्हें अपनी जन्म तिथि तो ठीक-ठीक पता नहीं है पर स्कूल के रजिस्टर में उनका जन्म दिनांक 30 जून 1967 दर्ज है। छह भाई-बहनों के बीच उनका बचपन तंगहाली में गुजरा। छ: साल की उम्र से ही घर और खेत के कामों में वह परिवार की मदद करने लगीं थीं। कुछ सालों के बाद हालाँकि वे स्कूल जाने लगी थीं लेकिन साथ-साथ घरेलू और खेत का भी काम करना उनकी मजबूरी थी। सुभद्रा जी के पिता नौकरी करते थे लेकिन किसी कारणवश वह आसरा भी जाता रहा। इसके बाद उनका परिवार पैतृक गाँव जेपरा आ गया जहाँ उनकी चार एकड़ ज़मीन थी। माली हालत कमज़ोर होने के कारण समय पर तो पढ़ाई नहीं हुई लेकिन जब मौका मिला तब उन्होंने उसे फिर से शुरू किया और 1986 में उच्च माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण की। पुनः 1997 में इग्नू में प्रवेश लेकर 2005 में उन्होंने राजनीति शास्त्र से स्नातक की उपाधि हासिल की। तत्पश्चात वर्ष 2008 में देवी अहिल्या वि. वि. से समाज कार्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने बाबा साहब अम्बेडकर वि.वि. महू में पी.एच.डी. के लिए भी दाख़िला लिया।
इधर ज़िन्दगी अलग-अलग मोड़ों से गुजरती हुई एक ऐसे मुकाम पर ले आई जहाँ उनका संघर्ष स्वयं तक सीमित न रहकर पूरे समाज से जुड़ गया था। वर्ष 1988 में उनकी मुलाक़ात सामाजिक संस्था ‘प्रयोग’ के कार्यकर्ता सिद्धू कुंजम से हुई। वह मुश्किलों से भरा हुआ दौर था, सुभद्रा बीड़ी बनाकर गुजारा कर रही थीं। ‘प्रयोग’ से जुड़ उन्होंने आँगनबाड़ी कार्यकर्ता का प्रशिक्षण लिया और दो सौ रूपये मानदेय पर काम करने लगीं। वर्ष 1991 में नर्मदा बचाओ आन्दोलन की संघर्ष यात्रा के प्रचार में भी उन्होंने हिस्सा लिया। उसी समय खेदुत मज़दूर चेतना संगत के राहुल बनर्जी उनकी मुलाकात हुई। जीवन के संघर्ष पथ पर एक साथ मिला गया। वर्ष 1993 में दोनों परिणय सूत्र में बंध गए। इसके बाद दोनों ने मिलकर इंदौर, खरगौन एवं देवास जिलों में आदिवासियों के अधिकारों और महिला स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दों पर काम करना शुरू कर दिया।
वर्ष 1995 में उन्होंने खरगोन एवं देवास जिले में ‘कनसरी नु वदावनों’ नाम से एक संगठन बनाया एवं महिलाओं के प्रजनन सम्बन्धी स्वास्थ्य एवं अधिकार पर काम करने लगीं । इसके लिए उन्हें मैकऑर्थर फ़ाउंडेशन से फ़ेलोशिप भी प्राप्त हुई। इसके अलावा उन्होंने ‘महिला जगत लिहाज समिति’ नाम से एक संस्था स्थापित की और भू-अधिकार, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण एवं संवर्धन, महिला स्वास्थ्य एवं शिक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा एवं प्राकृतिक खेती जैसे मुद्दों पर काम करने लगीं।
अपनी संस्थाओं के माध्यम से सुभद्रा बस्तियों में जाकर स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन करती हैं जिसमें स्त्री रोग विशेषज्ञ, नर्स एवं लैब तकनीशियन का दल होता है। शिविर में महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच के बाद उन्हें निःशुल्क दवाईयां दी जाती हैं। उसी प्रकार रसायनमुक्त खेती को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने इंदौर के ग्राम पांडूतालाब में एक एकड़ ज़मीन खरीदी और प्राकृतिक खेती की शुरुआत की। खेती के काम के लिए ज्यादातर महिलाओं को ही अपने साथ जोड़ा। 2019 से उन्होंने बीजों के संरक्षण का काम भी करना शुरू कर दिया, आज उनके पास कई किस्म के उन्नत बीज उपलब्ध हैं।
सुभद्रा को समाज सेवा में उनके प्रयासों के लिए वर्ष 2011 में टाइम्स ऑफ़ इण्डिया सोशल इम्पैक्ट अवार्ड से सम्मानित किया गया है, पुनः 2019 में गाँधी भवन, भोपाल द्वारा कस्तूरबा सम्मान एवं ग्राम सेवा समिति, होशंगाबाद द्वारा बनवारीलाल सम्मान प्राप्त हो चुका है। वर्ष 2020 में वुमेन्स वर्ल्ड समिट फाउंडेशन, स्विट्ज़रलैंड द्वारा दुनिया की दस महिलाओं को ‘ग्रामीण जीवन में महिला सृजनात्मकता पुरस्कार’ हेतु चुना गया जिसमें से एक सुभद्रा खापर्डे भी हैं। सुभद्रा जी आज भी अपने मुहिम में जुटी हैं। अपने लिए जो रास्ता उन्होंने चुना है वह संघर्ष से ख़ाली नहीं है तथापि राहत की बात यह है कि वे जानती हैं उन्हें क्या करना है और कैसे करना है।
संदर्भ स्रोत: द बेटर इण्डिया डॉट कॉम
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