वी. अनुराधा सिंह

blog-img

वी. अनुराधा सिंह

छाया : स्व संप्रेषित

  कलाकार - संगीत एवं नृत्य 

अंतर्राष्ट्रीय नृत्यांगना वी. अनुराधा सिंह का जन्म हमीरपुर,उ.प्र. में हुआ था। पिता राव बलराज सिंह जल संसाधन विभाग में  उस समय अभियंता थे, जो प्रमुख अभियंता पद से सेवानिवृत्त हुए ।  माँ  उर्मिला सिंह गृहिणी थीं। अनुराधा जी के नाना शिवनंदन सिंह हमीरपुर क्षेत्र से सांसद थे। उनकी परवरिश अत्यंत स्नेहिल वातावरण में हुई।  हुआ। बचपन में जब उनके पिता पद पर रहते हुए शासकीय अनुमति से एम.टेक करने रुड़की गए,   उस समय अनुराधा जी अपने नाना के पास दिल्ली में अपनी माँ के साथ थीं। नाना जी के साथ उन्हें राष्ट्रपति भवन एवं विज्ञान भवन में शास्त्रीय नृत्य देखने के मौके मिले। नृत्य विधा को लेकर वह तभी सम्मान से भर उठीं थी। उन्हें लगता था कि जिस कला को देखने देश के बड़े-बड़े लोग आ रहे हैं और कलाकारों को इज़्ज़त दे रहे हैं वह निस्संदेह श्रेष्ठ होगी। इसके बाद नृत्य सीखने की धुन उन पर सवार हो गई।

राव बलराज सिंह जब रुड़की से परीक्षा देकर लौटे, उनका परिवार वापस भोपाल आ गया। अनुराधा जी ने तुरंत एक डांस क्लास में प्रवेश ले लिया। प्रारंभिक शिक्षा एवं नृत्य अभ्यास दोनों साथ-साथ चलते रहे। वे डॉक्टर बनना चाहती थीं, इसलिए पढ़ाई भी उसी के मुताबिक चल रही थी। जिस समय वे मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही थीं, उसी समय चक्रधर नृत्य केंद्र भोपाल से छात्रवृत्ति के लिए विज्ञप्ति अख़बार में छपी। नृत्य में रुझान के कारण उन्होंने भी साक्षात्कार के लिए आवेदन कर दिया, जिसमें उनका तत्काल उनका चयन हो गया। इस छात्रवृत्ति के तहत नृत्य केंद्र में चार वर्षों तक प्रतिदिन 8 घंटों नृत्य अभ्यास अपरिहार्य था। डॉक्टरी का ख्याल दिल से निकालकर उन्होंने नृत्य को चुना। इसके बाद उनकी दिनचर्या पूरी तरह व्यस्त हो गयी। वे नृत्य केंद्र में अभ्यास के साथ-साथ ग्रेजुएशन भी कर रही थीं। इसके अलावा भारत भवन में आयोजित हर नृत्य के कार्यक्रम को देखना भी उनके लिए अनिवार्य कर दिया गया था। उन दिनों पं. रामलाल जी एवं पं. कार्तिक राम जी चक्रधर नृत्य केंद्र में नृत्य सिखाते थे। दोनों बड़े गुरु जी एवं छोटे गुरु जी के नाम से मशहूर थे। उन चार सालों की कड़ी मेहनत ने अनुराधा जी के नृत्य के करियर को एक मजबूत आधार प्रदान किया। इसके बाद उन्होंने इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से नृत्य में स्नातकोत्तर की उपाधि स्वर्ण पदक के साथ हासिल की।

उन्होंने अपनी पहली प्रस्तुति मॉस्को में आयोजित ‘भारत महोत्सव’ में दी। इस कार्यक्रम के लिए उन्हें भारत सरकार ने भेजा था। इसके बाद मंच प्रस्तुतियों का दौर शुरू हो गया। वर्ष 1990 में उन्होंने घुंघरू वादन का आविष्कार किया। दरअसल कथक प्रस्तुतियों में तबले के साथ घुंघरू का सवाल-जवाब की शैली रही हैं। लेकिन तबले के सभी कठिन बोलों को घुंघरू में उतारना एक नई बात थी। इसे एक स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित करने का श्रेय अनुराधा जी को जाता है।

इस बीच उनका परिचय अपने मामा के दक्षिण भारतीय दोस्त से हुआ, जो अक्सर उनके घर में आया-जाया करते थे। कुछ समय तक एक दूसरे को जाने के बाद दोनों परिणय सूत्र में बंध गये। विवाह के बाद नई चुनौतियों का दौर शुरू हुआ। ससुराल में संयुक्त परिवार था, ससुर बीमार रहते थे। जिम्मेदारियों का बोझ इतना बड़ा था कि उसके नीचे नृत्य कला किसी तरह सांस भर ले सकती थी। मंच प्रस्तुतियों का दौर थम गया लेकिन उस समय कुछ बच्चों को उन्होंने कथक सिखाना शुरू कर दिया था। अपनी संस्था का नाम रखा – वृंदा कथक केंद्र। लगभग दस वर्ष इसी तरह गुजर गए। नृत्य विधा के बारे में अक्सर कहा जाता है कि एक दिन रियाज़ छोड़ने से कलाकार 16 दिन पीछे चला जाता है। कहना न होगा कि अनुराधा जी अपना दस वर्ष खो चुकी थीं।

वर्ष 2005 में उन्होंने पूरी तैयारी के साथ मंच पर वापसी की, जिसे देखकर सभी हैरान थे। अनुराधा जी की वापसी में उनका दृढ़ संकल्प साफ़ झलक रहा था। उन्होंने एक के बाद एक 2 सौ मंच प्रस्तुतियां दीं। उनकी कीर्ति देश-विदेश में फैलने लगी। अब तक वे पांच दूतावासों में अपनी प्रस्तुतियां दे चुकी हैं। लगभग डेढ़ सौ सालों से जालंधर में बाबा हरबल्लभ संगीत समारोह का आयोजन किया जाता है। संगीत के क्षेत्र में इस समारोह की अत्यधिक प्रतिष्ठा है। इस आयोजन में नृत्य को शामिल नहीं किया जाता था, लेकिन घुंघरू वादन की प्रतिभा के बलबूते वर्ष 2009 में अनुराधा जी को इस समारोह में भी अपनी प्रस्तुति देने का अवसर प्राप्त हुआ। वे स्वयं के लिए इसे गर्व का विषय मानती हैं। अनुराधा जी का कहना है कि आज तक घुंघरू को नृत्य का आभूषण माना जाता रहा है, मैं इसे किसी अन्य ताल वाद्य की तरह दर्जा दिलाना चाहती हूँ। इसे वह ‘नुपुर नाद’ कहती हैं।

अनुराधा जी अब तक 7 से अधिक संगीत समारोहों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं। वर्तमान में वे इंडियन कल्चरल रिलेशन, फ़ेस्टिवल ऑफ इंडिया सेल, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार  द्वारा सूचीबद्ध उत्कृष्ट श्रेणी की कलाकार हैं एवं अंतर्राष्ट्रीय पटल पर एक कलाकार के रूप में अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रही हैं।

उपलब्धियां

  1. 1991 : वाकणकर सम्मान
  2. 2004 : राजीव गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार
  3. 2008 : राय प्रवीण पुरस्कार एवं द नेशनल वुमेन एक्सेलेंस अवार्ड
  4. 2009 : अभिनव कला सम्मान,  कला साधना सम्मान एवं इंदिरा गाँधी प्रियदर्शिनी पुरस्कार
  5. 2010 : ओजस्विनी कलाश्री पुरस्कार
  6. इसके अलावा महाराजा चक्रधर पुरस्कार, तूलिका सम्मान आदि

संदर्भ स्रोत – स्व संप्रेषित एवं अनुराधा जी से बातचीत पर आधारित 

© मीडियाटिक

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



बाधाओं से लेती रही टक्कर भावना टोकेकर
ज़िन्दगीनामा

बाधाओं से लेती रही टक्कर भावना टोकेकर

अब भावना सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं रहीं, वे एक सोच, एक बदलाव की प्रतीक बन चुकी हैं।

मिट्टी से जीवन गढ़ती कलाकार - निधि चोपड़ा
ज़िन्दगीनामा

मिट्टी से जीवन गढ़ती कलाकार - निधि चोपड़ा

उस समय जब लड़कियाँ पारंपरिक रास्तों पर चलने की सोच के साथ आगे बढ़ रही थीं, निधि ने समाज की सीमाओं को चुनौती देते हुए कला...

स्नेहिल दीक्षित : सोशल मीडिया पर
ज़िन्दगीनामा

स्नेहिल दीक्षित : सोशल मीडिया पर , तहलका मचाने वाली 'भेरी क्यूट आंटी'    

इस क्षेत्र में शुरुआत आसान नहीं थी। उनके आस-पास जो थे, वे किसी न किसी लोग फ़िल्म स्कूल से प्रशिक्षित थे और हर मायने में उ...

डॉ. रश्मि झा - जो दवा और दुष्प्रभाव
ज़िन्दगीनामा

डॉ. रश्मि झा - जो दवा और दुष्प्रभाव , के बिना करती हैं लोगों का इलाज 

बस्तर के राजगुरु परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद डॉ. रश्मि ने अपनी पहचान वंश से नहीं, बल्कि अपने कर्म और सेवा से बनाई।

पूजा ओझा : लहरों पर फतह हासिल करने
ज़िन्दगीनामा

पूजा ओझा : लहरों पर फतह हासिल करने , वाली पहली दिव्यांग भारतीय खिलाड़ी

पूजा ओझा ऐसी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपनी गरीबी और विकलांगता को अपने सपनों की राह में रुकावट नहीं बनने दिया।

मालवा की सांस्कृतिक धरोहर सहेज रहीं कृष्णा वर्मा
ज़िन्दगीनामा

मालवा की सांस्कृतिक धरोहर सहेज रहीं कृष्णा वर्मा

कृष्णा जी ने आज जो ख्याति अर्जित की है, उसके पीछे उनकी कठिन साधना और संघर्ष की लम्बी कहानी है। उनके जीवन का लंबा हिस्सा...