प्रमुख महिला किसान
ललिता मुकाती बडवानी जिले के छोटे से गाँव बोरलाय की रहने वाली हैं। ‘इनोवेटिव फार्मर’ एवं ‘जैविक कृषक राष्ट्रीय सम्मान’ जैसे कई पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। इनकी कहानी अपने जीवन में कुछ कर गुजरने को आतुर महिलाओं के लिए एक मिसाल है। ललिताजी का जन्म मध्यप्रदेश के मुनावरा के पास स्थित एक छोटे से गाँव में हुआ। गाँव में बेटियों को पढ़ाने का रिवाज नहीं था, फिर भी उनके पिता ने उन्हें 12वीं तक की शिक्षा दिलवाई। वह अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। तब वह किसी किसान से अपनी बेटी को ब्याहना नहीं चाहते थे। उन्हें भय था कि कहीं वह सिर्फ गृहणी बनकर न रह जाए। परन्तु परिस्थितिवश ललिताजी की शादी कृषि विज्ञान से स्नातक ‘सुरेश मुकाती’ से वर्ष 1996 में हो गई। उन्हें लग रहा था कि शादी के बाद पढ़ाई छूट ही जाएगी फिर कैरियर की बात तो सोचना भी फिजूल है। ललिताजी के ससुर गाँव में सम्मानित किसान माने जाते हैं। वह स्वयं शिक्षित थे इसलिए पढ़ाई लिखाई का महत्व भी जानते थे। उन्होंने अपनी पुत्रवधू ललिता जी को भी आगे पढ़ने के लिए उत्प्रेरित किया। उन्होंने शादी के बाद स्नातक तक की शिक्षा पूरी की। तब तक वह पांच बच्चों की माँ बन चुकी थीं। इस बीच घर गुहस्थी के साथ कॉलेज की पढ़ाई चलती रही । वैसे विवाह के तत्काल बाद से ही उन्होंने अपने पति खेती के गुर सीखने शुरू कर दिए थे। जब बच्चे कुछ बड़े हुए तो पति को अकेले सौ एकड़ की किसानी संभालते हुए देखा। तभी उन्होंने ठान लिया कि वह भी खेती करेंगी। सहयोगी प्रकृति के जीवनसाथी ने भी जमीन, मिट्टी, बीज और फसल आदि के बारे में उन्हें विस्तार से बताया। अब दोनों साथ-साथ खेतों पर ही नहीं किसानों की बैठकों में भी हिस्सा लेने लगे।
एक बार ललिताजी को पेस्टिसाईड के नुक्सान के बारे में पता चला। अब जैविक खेती की तरफ उनका रुझान बढ़ने लगा। उन्होंने सबसे पहले खेतों में रसायन डालना बंद किया और पूरे बीस एकड़ में सीताफल लगा दिए। इसके बाद हर बैठक में वह पेस्टिसाइड फ्री खेती की बात करती। सीताफल ने बेहतरीन परिणाम दिए। 2018 में ‘हलधर जैविक कृषक राष्ट्रीय सम्मान’ एवं वर्ष 2019 में ‘इनोवेटिव फार्मर अवार्ड’ से वह पुरस्कृत हुईं। फिर विभिन्न चैनलों में साक्षात्कारों का जैसे दौर सा चल पड़ा।
जैविक खेती सीखने के क्रम में जर्मनी इटली, ऑस्ट्रिया, जापान और दुबई तक पहुँच गईं। वर्तमान में वह 37.5 एकड़ की भूमि पर पति के साथ जैविक खेती करती हैं। वह ख़ासतौर पर सीताफल की खेती के लिए मशहूर हैं। जैविक खाद अपने हाथों से तैयार करती हैं। इसके अलावा खेतों को नष्ट करने वाले कीटों से बचाव के लिए कई प्रकार के पत्तों, गोबर, गोमूत्र और रसोई के अपशिष्ट से वह कीटनाशक तैयार करती हैं। इतना ही नहीं सिंचाई के लिए नायाब ‘टपक विधि’ का इस्तेमाल करती हैं। यह ऐसी विधि है जिसमें फसलों की जड़ में प्लास्टिक पाइप की सहायता से बूँद-बूँद पानी डाला जाता है। इस विधि से 70 प्रतिशत तक पानी का बचाव होता है।
एक बार की बात है एक बार ट्रैक्टर का ड्राईवर नहीं आया और काम ठप्प पड़ गया। इस परिस्थिति से सबक लेकर उन्होंने गैंती, फावड़ा चलाने से लेकर ट्रैक्टर चलाना तक सीख लिए। खेतों में उन्हें ट्रैक्टर चलाता देख लोग भौचक्के रह जाते हैं।
ललिताजी का दावा है कि उन्होंने प्रति एकड़ 20 प्रतिशत के लागत पर 80 प्रतिशत का मुनाफ़ा कमाया है। अन्य महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए ‘माँ दुर्गा महिला किसान’ नामक समूह का संचालन करती हैं। इस समूह में 20-25 महिलाएं हैं जो ललिताजी से जैविक खेती सीख रही हैं।
मीडियाटिक डेस्क (जानकारी स्रोत: द बेटर इण्डिया वेबसाईट)
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