छाया: न्यूजबाइट्स डॉट कॉम
• इतिहास में ऐसा तीसरा, 4 साल में दूसरा मौका
अमूमन सुप्रीम कोर्ट में महिला जजों की अलग बेंच नहीं बनती, लेकिन गुरुवार को सिर्फ महिला जजों की बेंच बनी। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की बेंच कोर्ट नंबर 11 में बैठी। बेंच ने 32 मामलों में सुनवाई की। इनमें 10 वैवाहिक विवाद के थे। 11 जमानत से जुड़ी ट्रांसफर याचिकाओं और अन्य 11 अलग-अलग विवादों से जुड़े थे।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील आदिश चंद्र अग्रवाला ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में यह तीसरा मौका था। पहली बार साल 2013 में जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा और जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की बेंच बनाई गई थी। दूसरा मौका साल 2018 में आया, तब जस्टिस आर. भानुमति और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच गठित की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल तीन महिला जज
सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल तीन महिला जज हैं। इनमें से जस्टिस हिमा कोहली का कार्यकाल सितंबर, 2024 तक और जस्टिस बेला त्रिवेदी का कार्यकाल जून, 2025 तक हैं। वहीं तीसरी महिला जज बीवी नागरत्ना हैं, जो 2027 में देश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बन सकती हैं। जस्टिस नागरत्ना इससे पहले केरल हाई कोर्ट में जज थीं। इन तीनों को सितंबर, 2021 में सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किया गया था।
1989 में सुप्रीम कोर्ट को मिली थी पहली महिला जज
1989 में पहली बार सुप्रीम कोर्ट में महिला जज की नियुक्ति हुई थी। तब केरल हाई कोर्ट से रिटायर होने के बाद जस्टिस एम फातिमा बीवी को सुप्रीम कोर्ट जज बनाया गया था। उनके बाद जस्टिस सुजाता मनोहर, रुमा पाला, ज्ञानसुधा मिश्रा, रंजना प्रकाश देसाई, आर भानुमति और इंदु मल्होत्रा आदि सुप्रीम कोर्ट में जज रह चुकी हैं। पिछले साल सितंबर में जब तीन महिलाओं की नियुक्ति हुई थी, तब सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बनर्जी समेत चार महिलाएं जज थीं।
-सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में अब तक 10 महिलाएं जज रह चुकी हैं।
-सुप्रीम कोर्ट में एक दिन में अधिकतम 3 महिला वकीलों ने दलीलें पेश की हैं। ऐसा 33 बार हो चुका है।
पहली बेंच का हिस्सा रहीं जस्टिस रंजना देसाई ने कहा - 'इंसाफ की कुर्सी पर क्या महिला और क्या पुरुष... भेद न ही हो तो बेहतर'
‘सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली संपूर्ण महिला पीठ की सदस्य होने के तौर पर मेरा नाम जुड़ा है। मेरे साथ दूसरी सदस्य जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा थीं। हालांकि मेरा निजी मत है कि ऐसा भेद न ही हो तो बेहतर। इंसाफ की कुर्सी पर क्या महिला और क्या पुरुष। महिलाएं भी तो उतनी ही बुरी या उतनी अच्छी हो सकती हैं, जितने बुरे या अच्छे पुरुष हो सकते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कुर्सी पर महिला थीं या पुरुष। न्यायाधीश चुने जाने का आधार या मानक पुरुष या महिला नहीं होता। चयन और नियुक्ति मेरिट के आधार पर ही होती है।’
(जस्टिस देसाई प्रेस कौंसिल की वर्तमान अध्यक्ष हैं। संयोग से वे इसकी भी पहली महिला अध्यक्ष हैं।)
संदर्भ स्रोत – दैनिक भास्कर तथा न्यूजबाइट्स डॉट कॉम
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *