दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा कानून के तहत अलग रह रहे जीवनसाथी को भरण-पोषण देने के मामले में पहली और दूसरी शादी के बीच कोई अंतर नहीं किया जाता। हाईकोर्ट ने कहा है कि दूसरी पत्नी को भी गुजारा भत्ता का हक है। घरेलू हिंसा कानून पहली-दूसरी शादी में भेद नहीं करता। स्वेच्छा से दूसरी शादी करने वाला पुरुष भरण-पोषण से इनकार नहीं कर सकता, चाहे पहली शादी से बच्चे हों।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की बेंच ने साफ किया कि जब कोई पुरुष अपनी इच्छा से शादी करता है और पत्नी को उसके पहले विवाह से हुए बच्चों सहित स्वीकार करता है तो बाद में वह इस आधार पर अपने कर्तव्यों से बच नहीं सकता। कोर्ट यह फैसला उस याचिका पर आया जिसमें एक व्यक्ति ने अपनी अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार करते हुए कहा था कि यह उसकी दूसरी शादी है और पत्नी के बच्चे उसके नहीं हैं, बल्कि उसके पहले पति से हैं।
निचली अदालत का फैसला बरकरार
अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए पति द्वारा भरण-पोषण देने से इंकार करने के दलील को पूरी तरह से भ्रामक बताया और कोर्ट ने कहा घरेलू हिंसा अधिनियम पहली या दूसरी शादी में फर्क नहीं करता। यदि पति ने अपनी इच्छा से शादी किया और पत्नी और उसके बच्चों को अपनाया तो अब वह इस जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता।
कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए पति को पत्नी को हर महीने 1 लाख का भरण-पोषण देने का आदेश को सही ठहराया। हालांकि पत्नी के दो बेटों को जो अब बालिग हैं भरण-पोषण देने से इनकार किए जाने के फैसले को भी अदालत ने उचित माना।
पत्नी ने हाईकोर्ट में लगाया पति पर आरोप
दिल्ली हाईकोर्ट में महिला ने अदालत को बताया कि वह अपने मायके में रह रही है और पति द्वारा मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और भावनात्मक प्रताड़ना झेल चुकी है। उसके मुताबिक पति ने शादी से पहले उसे भरोसा दिया था कि वह न केवल उसे बल्कि उसके बच्चों को भी अपनाएगा और पिता का प्यार देगा।
वहीं कोर्ट में पति ने दावा किया कि पत्नी ने अपने मन से घर छोड़ दिया और कभी सुलह की कोशिश नहीं की। उसने यह भी कहा कि वह एक असाध्य रोग एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस रोग से पीड़ित है और खुद का ध्यान नहीं रख सकता। हालांकि कोर्ट ने महिला की इस शिकायत को गंभीरता से लिया कि पति ने मुकदमे के दौरान अपनी प्रॉपर्टी बेचने की कोशिश की ताकि वह किसी भी कानूनी दावे से बच सके।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सही किया कि उसने पति को बिना अनुमति अपनी अचल संपत्तियां बेचने से रोका। जस्टिस स्वर्ण कांत शर्मा ने कहा पति की इस कार्रवाई से पत्नी की आशंका और अधिक मजबूत होती है और पति की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है।
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