छाया : स्व संप्रेषित
कलाकार - संगीत एवं नृत्य
मध्यप्रदेश में भरतनाट्यम को आगे बढ़ाने के लिए सतत प्रयत्नशील भारती होम्बल दरअसल पिता की विरासत संभाल रही हैं। उनके पिता शंकर होम्ब्ल ही मध्यप्रदेश में भरतनाट्यम नृत्य शैली लेकर आए। उनकी पत्नी गिरिजा धारवाड़ ( कर्नाटक ) की एक नृत्यशाला में शिक्षिका थीं एवं मंच पर प्रस्तुतियां भी देती थीं,लेकिन होम्बल जी के रूढ़िवादी परिवार ने उन्हें नाचने-गाने वाली समझा। पारिवारिक विरोध के कारण वे भागकर ग्वालियर आ गए और वहीं विवाह किया, उसी समय सुप्रसिद्ध नृत्यांगना रुक्मणि देवी की बहन विशालाक्षी जौहरी से उनकी मुलाक़ात हुई, जो एक विद्यालय में प्राचार्या थीं। उन्होंने गिरिजा जी को अपने विद्यालय में 35 रुपए मासिक पर नियुक्त कर लिया। इस तरह होम्बल जी ग्वालियर में ही बस गया, जहां 31 जुलाई 1954 को भारती जी का जन्म हुआ।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर में ही हुई। पिता का जीवन तो पूरी तरह कला को समर्पित था और माँ भी नृत्यांगना ही थीं, इसके अलावा वे गिरिजा-शंकर कला केंद्र का संचालन भी कर रहे थे। इसलिए भारती जी को घरेलू माहौल भी वैसा ही मिला। शायद यही वजह है कि उन्होंने मात्र ढाई साल की आयु में मंच पर भरतनाट्यम शैली में लव-कुश ( दोनों में से कोई एक ) की भूमिका सफलता पूर्वक निभाई। सन 1959 के आसपास होम्बल जी परिवार सहित भोपाल आ गए। दरअसल, विशालाक्षी जी ने भोपाल में महारानी लक्ष्मीबाई महाविद्यालय की पहली प्राचार्या का दायित्व संभाला था, उन्होंने ही श्री होम्बल को यहाँ संगीत शिक्षक के रूप में नियुक्त किया, जिसकी वजह से वे ग्वालियर छोड़कर भोपाल में बस गए। सन 1960 में उन्होंने कलापद्म नृत्य केंद्र की स्थापना की।
भारती जी के बचपन में नृत्य अभ्यास दैनिक जीवन का सामान्य सा हिस्सा था, इसके अलावा वे कमला नेहरु गर्ल्स स्कूल से पढ़ाई भी कर रही थीं। हाई स्कूल पास करने के बाद उन्होंने एम.एल.बी. कॉलेज से गायन में स्नातक किया एवं भोपाल विश्वविद्यालय से 1980 में स्नातकोत्तर की उपाधि ली। पुनः उन्होंने वर्ष 1982 में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से नृत्य ( भरतनाट्यम ) विषय लेकर स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। 1981-82 के अखिल भारतीय युवा महोत्सव, हैदराबाद में सम्मिलित होकर नृत्य में प्रथम स्थान एवं गायन में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। इसके बाद वे पिता के साथ विभिन्न समारोहों में शामिल होने लगीं। वर्ष 1985 में उनका विवाह हुआ लेकिन वह अल्पजीवी रहा। अपने दो बच्चों को लेकर वे पुनः पिता के पास वापस चली आईं। वह अब तक देश के सभी प्रतिष्ठित मंचों पर समूह एवं एकल प्रस्तुति दे चुकी हैं। इसके अलावा कई स्कूलों में नृत्य शिक्षिका के रूप में काम किया। वर्तमान में उन्हें भरतनाट्यम से जुड़ी प्रतियोगिताओं में बतौर ‘निर्णायक’ देखा जा सकता है। वर्ष 2008 में उन्हें कला मंदिर संस्था, भोपाल द्वारा ‘कला मनीषी’ एवं करवट कला परिषद, भोपाल द्वारा वर्ष 2011 में कला साधना सम्मान प्राप्त हुआ है।
भारती जी चार भाई-बहन हैं। सबसे बड़े भाई श्री प्रेमचंद होम्बल हैं जो बनारस में रहते हैं एवं भरतनाट्यम विधा में शिष्यों की अगली पीढ़ी तैयार कर रहे हैं। उसके बाद भारती जी हैं जो भोपाल में रहकर पिता द्वारा स्थापित ‘कलापद्म नृत्य केंद्र’ का संचालन कर रही हैं। इनसे छोटी बहन पारिजाता वर्गीस शिकागो में अपने परिवार के साथ रहती हैं एवं भरतनाट्यम का प्रचार प्रसार कर रही हैं। उनसे छोटी बहन कादम्बरी विकलांग थीं और युवावस्था में ही उनका देहांत हो गया, सबसे छोटी बहन रुक्मिणी हैं जो घर-परिवार संभाल रही हैं। भारती जी एक पुत्र एवं एक पुत्री की माँ हैं, दोनों बच्चे करियर के रूप में भरतनाट्यम को ही अपनाते हुए नृत्य केंद्र संचालन में माता की मदद कर रहे हैं।
संदर्भ स्रोत – स्व संप्रेषित एवं भारती जी से बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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