पुष्पा सिन्हा

blog-img

पुष्पा सिन्हा

 छाया : स्व संप्रेषित

• सारिका ठाकुर   

सामाजिक कार्यकर्ता 

कस्तूरबा ग्राम न्यास को अपना जीवन अर्पित कर चुकीं पुष्पा सिन्हा (pushpa-sinha) का जन्म अपने ननिहाल जबलपुर (jabalpur) में 6 जुलाई 1942 को हुआ। उनके पिता स्व. प्रताप सिंह स्वतंत्रता सेनानी एवं माता स्व.सुशीला देवी गृहिणी थी। देश की आज़ादी के बाद उनके पिता ने कुछ वर्षों तक शिक्षण कार्य किया तत्पश्चात इंदौर से प्रकाशित दैनिक जागरण के संपादक मंडल में शामिल हो गए। वे बाद में श्रमिक विद्यापीठ के निदेशक भी बने। उनके पिता ने अपने जीवन काल में महिलाओं की शिक्षा पर काफी काम किया था, इसलिए उनके परिवार में उस ज़माने में भी बेटियों की शिक्षा – दीक्षा में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आई।

पुष्पा जी की प्रारंभिक शिक्षा शाजापुर और इंदौर में हुई। उन्होंने कस्तूरबा कन्या विद्यालय, इंदौर से हायर सेकेण्डरी पास किया। पुनः गर्ल्स डिग्री कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद क्रिश्चियन कॉलेज, इंदौर (Christian College, Indore) से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। उन दिनों निर्मला देशपांडे (Nirmala Deshpande) इंदौर में अत्यधिक सक्रिय थीं। ख़ासतौर पर कस्तूरबा ट्रस्ट (Kasturba Trust) से योग्य एवं प्रतिभाशाली लड़कियों को जोड़ने में उनकी अत्यधिक रुचि थी। क्रिश्चियन कॉलेज में एक बार ट्रस्ट ने ग्रीष्मकालीन शिविर का आयोजन किया, जिसमें पुष्पा जी ने भी हिस्सा लिया था। ट्रस्ट की विचारधारा से वे अत्यधिक प्रभावित हुईं परन्तु तब तक उससे जुड़कर काम करने का विचार मन में पनपा भी नहीं था। वे स्नातकोत्तर के पश्चात बी.एड करने खंडवा आ गईं क्योंकि उनकी मंशा शिक्षिका बनकर परिवार को आर्थिक सहयोग करने की थी। कारण – उन दिनों उनका परिवार घोर आर्थिक संकट से जूझ रहा था।

वे इस बीच पत्र के माध्यम से निर्मला जी के साथ सतत संपर्क में थीं। निर्मला जी उन्हें कस्तूरबा ट्रस्ट से जोड़ने के लिए निरंतर उत्प्रेरित कर रही थीं, परिणामस्वरूप वर्ष 1964 में ग्राम सेविका विद्यालय, कस्तूरबा ग्राम, इंदौर आ गईं। परिवर्तित रहन-सहन एवं खान-पान के साथ तालमेल बिठाने में थोड़ी परेशानी जरुर हुई पर समय के साथ आदतें भी बदल गईं। न्यास की एक शाखा थी शान्ति सेना (shanti sena) जिसमें पुष्पा जी की दिलचस्पी ज़्यादा थी। किसी मुद्दे पर नागरिकों एवं प्रशासन के मध्य हिंसक झड़प या टकराव की स्थिति में शान्ति सेना की महिला सदस्याएं दोनों के बीच जाकर बैठ जाया करती थीं, परिणामस्वरूप पथराव करने वाली उग्र भीड़ हो या लाठी – गोलियां बरसा रही पुलिस, दोनों वहीं रुक जाते थे। इससे बाद में बातचीत के माध्यम से समस्या सुलझाने का एक दरवाज़ा खुल जाता था।

न्यास में सम्मिलित महिलाओं के लिए शान्ति सेना का प्रशिक्षण लेना अनिवार्य था। जरुरत पड़ने पर ग्राम सेविकाएँ भी इसकी गतिविधियों में हिस्सा लेती थीं, इसके अलावा पुष्पा जी को बिनोवा भावे सरीखे समाजसुधारकों के भाषण को सुनकर रिपोर्ट तैयार करने का दायित्व सौंपा गया जो न्यास द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘कस्तूरबा दर्शन’ (kasturba darshan) में छापते थे। लम्बे अरसे तक यह सिलसिला जारी रहा, सन 1982 के आसपास पुष्पा जी को पत्रिका का संपादक बना दिया गया। कस्तूरबा दर्शन के प्रारंभिक दौर में सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम सेविकाओं के काम-काज की रिपोर्टिंग छपती थी, बाद में उनके अनुभवों को भी स्थान दिया जाने लगा। इसके बाद उनका जीवन कस्तूरबा ग्राम के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा। उन दिनों सामाजिक हित के कार्य से जुड़े लोगों के मन में एक धारणा प्रचलित थी कि विवाह के बाद समाज सेवा का काम करना कठिन होगा, इसलिए कई लोग आजीवन अविवाहित रहने का फ़ैसला  कर लेते थे। ऐसा ही कुछ पुष्पा जी के साथ भी हुआ, सामाजिक दायित्व की चेतना ने उन्हें घर बसाने की अनुमति नहीं दी और उन्होंने अपना समस्त जीवन कस्तूरबा ग्राम ट्रस्ट के नाम कर दिया।

संदर्भ स्रोत: पुष्पा जी से सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित

© मीडियाटिक

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



पूजा गर्ग अग्रवाल : दर्द से भी ऊँची है जिनके हौसलों की उड़ान
ज़िन्दगीनामा

पूजा गर्ग अग्रवाल : दर्द से भी ऊँची है जिनके हौसलों की उड़ान

पूजा ने तीन साल बिस्तर पर रहकर 13 ऑपरेशन झेले। इस दौरान उन्होंने मानसिक और शारीरिक - दोनों स्तरों पर संघर्ष किया, लेकिन...

मालिनी गौड़ : गृहिणी से बनीं नेता और शहर को बना दिया नंबर वन
ज़िन्दगीनामा

मालिनी गौड़ : गृहिणी से बनीं नेता और शहर को बना दिया नंबर वन

भारतीय जनता पार्टी के विधायक लक्ष्मण सिंह गौड़ की 2008  में सड़क दुर्घटना में मृत्यु के बाद उनकी पत्नी मालिनी गौड़ को टि...

दिव्या पटवा : संवेदना से सजी है जिनकी कला की दुनिया 
ज़िन्दगीनामा

दिव्या पटवा : संवेदना से सजी है जिनकी कला की दुनिया 

भारत लौटने के बाद उन्होंने पारंपरिक तरीकों से हटकर एक ऐसी तकनीक विकसित की जो उनके काम को एक बहुआयामी उपस्थिति देती है। 

बाधाओं से लेती रही टक्कर भावना टोकेकर
ज़िन्दगीनामा

बाधाओं से लेती रही टक्कर भावना टोकेकर

अब भावना सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं रहीं, वे एक सोच, एक बदलाव की प्रतीक बन चुकी हैं।

मिट्टी से जीवन गढ़ती कलाकार - निधि चोपड़ा
ज़िन्दगीनामा

मिट्टी से जीवन गढ़ती कलाकार - निधि चोपड़ा

उस समय जब लड़कियाँ पारंपरिक रास्तों पर चलने की सोच के साथ आगे बढ़ रही थीं, निधि ने समाज की सीमाओं को चुनौती देते हुए कला...

स्नेहिल दीक्षित : सोशल मीडिया पर
ज़िन्दगीनामा

स्नेहिल दीक्षित : सोशल मीडिया पर , तहलका मचाने वाली 'भेरी क्यूट आंटी'    

इस क्षेत्र में शुरुआत आसान नहीं थी। उनके आस-पास जो थे, वे किसी न किसी लोग फ़िल्म स्कूल से प्रशिक्षित थे और हर मायने में उ...