छाया : नुसरत मेहदी के फेसबुक अकाउंट से
प्रमुख लेखिका
• वन्दना दवे
उर्दू साहित्य के इतिहास में हर दौर में शायरात का प्रतिनिधित्व रहा है। विशेषकर बीसवीं सदी के उत्तरार्ध से लेकर वर्तमान समय तक एक लंबी फेहरिस्त हमारे सामने है। इन महिलाओं ने अपनी शायरी से न सिर्फ नारी की भावनाओं और संवेदनाओं को दर्ज किया है बल्कि अपने विशेष लहजे के साथ औरतों के समस्त पहलुओं को समेटा है। ऐसी ही एक शायरा हैं डॉ नुसरत मेहदी, जो अपने कलामों के जरिए संजीदगी के साथ समाज में हो रहे परिवर्तनों से रुबरु कराती हैं। नुसरत जी का जन्म 1 मार्च 1970 को नगीना, ज़िला बिजनौर के.बेहद कुलीन, संभ्रांत और शिक्षित परिवार में हुआ था। मां श्रीमती गौहर बानो और पिता श्री सैयद इल्तिज़ा हुसैन ज़ैदी – दोनों ही स्वयं के व्यवसाय से जुड़े हैं। दो भाई और सात बहनों के भरे-पूरे परिवार में पिता जी की प्राथमिकता सभी बच्चों को अच्छी तालीम दिलवाना थी।
नुसरत जी की प्रारम्भिक शिक्षा दयानंद आर्य वैदिक कन्या इंटर कॉलेज नगीना से ही हुई। यहीं से बारहवीं उत्तीर्ण करने के बाद मेरठ विश्वविद्यालय से कला संकाय से स्नातक किया। स्नातकोत्तर अंग्रेजी, उर्दू, और हिन्दी में क्रमशः बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय एवं रवीन्द्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय (आइसेक्ट) भोपाल से किया।
पढ़ाई के दौरान ही नुसरत जी का विवाह 1988 में सैयद असद मेहदी से हुआ, जो बैंक ऑफ इंडिया में ज़ोनल अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं, साथ ही वे एक अच्छे कहानीकार भी हैं। नुसरत जी अपना घर बार संभालते हुए करियर के साथ शायरी के शौक को भी बखूबी निभाया। आगे चलकर वे एक बेहतरीन शायरा होने के साथ-साथ कुशल प्रशासनिक अधिकारी भी साबित हुईं । कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन किया है। सन 2000 में वे लोक शिक्षण संचालनालय, भोपाल में विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी बनीं और 2006 में वे मप्र उर्दू अकादमी की सचिव बनीं और अब उसी संस्थान के निदेशक की भूमिका बख़ूबी निभा रही हैं। इस दौरान वे निदेशक, राज्य आनन्द संस्थान, सचिव – मप्र उर्दू अकादमी, संस्कृति विभाग,डिप्टी डायरेक्टर – अल्लामा इक़बाल मरकज़ भी रहीं। उन्हें मप्र वक्फ बोर्ड की मुख्य कार्यपालन अधिकारी और राज्य हज समिति की कार्यपालन अधिकारी का दायित्व भी सौंपा गया था। वे देश की पहली महिला हैं जो इन दोनों पदों पर आसीन रहीं। एक महिला को बोर्ड की मेंबर बनाने के खिलाफ वक्फ बोर्ड में विरोध भी हुआ, लेकिन वक्त बीतने के साथ उन्होंने अपनी काबिलयत साबित कर दी। उल्लेखनीय है कि उनके कार्यकाल में हिन्दुस्तान की तमाम हज समितियों के बीच सेंट्रल हज कमेटी द्वारा मप्र हज कमिटी को सर्वश्रेष्ठ हज कमेटी का सम्मान मिला। डॉ. मेहदी राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद दिल्ली की एक्जीक्यूटिव बोर्ड की पूर्व सदस्य, नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के सलाहकार मंडल की पूर्व सदस्य और सीसीआरटी संस्कृति मंत्रालय दिल्ली के उर्दू पैनल की पूर्व सदस्य भी रही हैं।
उर्दू अकादमी में बतौर निर्देशक डॉ. मेहदी ने उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए कई ज़रूरी कोशिशें कीं। उनके नेतृत्व में कई सालों तक उर्दू सप्ताह मनाया गया, जो उर्दू भाषा-साहित्य को लोकप्रिय बनाने में सहायक सिद्ध हुए। अफ़साने का अफ़साना, ड्रामा, अंताक्षरी, जौहर की तलाश और सबसे बढ़कर जश्न-ए-उर्दू जैसा आलीशान प्रोग्राम, जिन्होंने अवाम-ओ-ख़वास को उर्दू ज़बान-ओ-तहज़ीब की तरफ़ आकर्षित किया और मप्र उर्दू अकादमी की प्रतिष्ठा को पूरे हिन्दोस्तान की उर्दू अकादमियों में बुलंद किया। राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद,नई दिल्ली और राजस्थान उर्दू अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में जयपुर में जनवरी 2018 को हुई तीन-दिवसीय कॉन्फ्रेंस में देशभर की 14 अकादमियों में से मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी को सर्वाधिक सक्रिय और सर्वश्रेष्ठ उर्दू अकादमी घोषित किया गया। राजस्थान उर्दू अकादमी के सचिव श्री मोअज़्ज़म अली ने अपनी तक़रीर में निर्देशक के तौर पर डॉ. नुसरत मेहदी की तुलना पूर्व निर्देशक फ़ज़ल ताबिश से की थी जिनके कार्यकाल में उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण काम हुए थे।
नुसरत जी का उर्दू शायरी के प्रति रुझान का कारण पारिवारिक माहौल रहा है। इनके परिवार की महिलाओं में पढ़ने और लिखने की रूचि प्रारंभ से रही है। मर्दों के साथ साथ औरतें भी शेर कहने में आगे रहती थीं इसलिए शायरी रगों में स्वाभाविक रूप से बहने लगी। इसके अलावा घर में बेशुमार पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएं उपलब्ध थीं। उनकी बड़ी बहन मीना नकवी चिकित्सिका होने के अलावा बेहतरीन शायरा भी हैं। मीना जी के हिन्दी और उर्दू के अनेक काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। एक और बहन अलीना इतरत भी आला दर्जे की शायरा व कवयित्री हैं और शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं। वैसे नुसरत जी शायरी के मामले में मीना जी को अपने पहले उस्ताद का दर्जा देती हैं। शुरुआत में वे अपना लिखा सबसे पहले उन्हें ही दिखाती थीं और मीना जी उनके नुक्सों को दूर करने की समझाइश दिया करतीं। नुसरत जी की पहली कहानी ‘मैं क्या हूँ’ चौदह वर्ष की उम्र में नजीराबाद रेडियो स्टेशन से प्रसारित हुआ। पहले काव्य संग्रह ‘–साया साया धूप’ को लोगों ने खूब पसंद किया, नतीजतन आगे लिखते रहने का हौसला मिला। इसके बाद शायरी, ग़ज़ल, नज़्म, कहानी, पटकथा लेखन, आलेख के साथ-साथ हिंदी कविताएँ भी लिखने लगीं। कलम जिन्दगी का ज़रूरी हिस्सा बन चुका था। लेखन के साथ-साथ राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों, उर्दू सम्मलेनों और मुशायरों में वे लगातार शिरकत करती रहीं। साहित्यिक यात्राओं के अंतर्गत अब तक वे अमेरिका, इंगलैंड, कैनेडा, दुबई, सऊदी अरब, पाकिस्तान, बहरीन, क़तर, कुवैत, मस्कत इत्यादि अनेक देशों का दौरा कर चुकी हैं।
उर्दू साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कारों से नवाजा गया है।
पुरस्कार एवं सम्मान
• उर्दू मरकज़ इंटरनेशनल लॉस एंजिलिस कैलिफोर्निया अमेरिका के द्वारा हुस्न ए कारकरदिगी उर्दू इंटरनेशनल अवॉर्ड
• उर्दू मरकज़ इंटरनेशनल लॉस एंजिलिस कैलिफोर्निया अमेरिका के द्वारा हुस्न ए कारकरदिगी उर्दू इंटरनेशनल अवॉर्ड
• इंटरनेशनल सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा मोस्ट प्रोमिज़िंग उर्दू पोएटेस एंड राइटर इन इंडिया अवार्ड 2018
• इंटरनेशनल चैम्बर ऑफ मीडिया एंड एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री एंड एशियन एकेडमी ऑफ आर्ट्स द्वारा ग्लोबल लिटरेरी अवॉर्ड 2017
राष्ट्रीय सम्मान व पुरस्कार
• शिवना साहित्यिक सम्मान 2018 : शिवना प्रकाशन द्वारा
• आनंदा सम्मान 2017 : खुशबू एजुकेशन एंड कल्चरल सोसाइटी भोपाल द्वारा
• सुमिरन गीत सम्मान 2017: सुमिरन साहित्यिक संस्था कानपुर द्वारा
• अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान 2017 : अभिनव कला परिषद भोपाल द्वारा
• सृजन कला प्रेरक सम्मान 2016 : लोककला मंडल उदयपुर द्वारा
• अख़्तरुल ईमान अवार्ड 2016 : इक़बाल मेमोरियल एजुकेशनल सोसाइटी, नगीना उत्तर प्रदेश द्वारा
• मदर टेरेसा गोल्ड मैडल 2015: ग्लोबल इकोनॉमिक प्रोग्रेस एंड रिसर्च एसोसिएशन नई दिल्ली द्वारा
• बेस्ट सिटीजन ऑफ इंडिया गोल्ड मेडल 2015: ग्लोबल इकोनॉमिक प्रोग्रेस एंड रिसर्च एसोसिएशन संस्था द्वारा
• परवीन शाकिर अवार्ड 2014 अमरावती महानगर पालिका महाराष्ट्र द्वारा।
प्रकाशित कृतियाँ
• काव्य संग्रह- साया साया धूप, 2-आबला पा 3-मैं भी तो हूँ (देवनागरी) 4-घर आने को है5- फरहाद नहीं होने के ( देवनागरी)6- हिसारे ज़ात से परे
• गद्य संकलन- 1-1857 की जंगे आज़ादी 2- इंतेख़ाब-ए-सुख़न (स्नातकोत्तर उर्दू के पाठ्यक्रम में शामिल) 3- आप कब हंसेंगे कॉमरेड
सन्दर्भ स्रोत : स्व संप्रेषित एवं डॉ. नुसरत मेहदी से पत्रकार वन्दना दवे की बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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