डॉ. शरद सिंह

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डॉ. शरद सिंह

छाया : डॉ. शरद सिंह के फेसबुक अकाउंट से

प्रमुख लेखिका 

व्यवहार में सरल, सहज, मिलनसार एवं सुदर्शन व्यक्तित्व की धनी लेखिका शरद सिंह का जन्म मध्यप्रदेश के एक छोटे से जिले पन्ना में 29 नवम्बर 1963 को हुआ था। जब वे साल भर की थीं, तभी उनके सिर से उनके पिता श्री रामधारी सिंह का साया उठ गया। उनका तथा उनकी बड़ी बहन वर्षा का पालन-पोषण उनकी मां विद्यावती सिंह ने किया, जो अपने समय की ख्यातिलब्ध लेखिका एवं कवयित्री रही हैं। वे विद्यावती ‘‘मालविका’’ के नाम से साहित्य सृजन करती थीं। पति के देहांत के पश्चात् विद्यावती जी को अपने ससुराल पक्ष से किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिला, इसलिए उन्हें अपने पिता संत श्यामचरण सिंह के घर रहना पड़ा। श्री सिंह शिक्षक होने के साथ ही गांधीवादी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।

शरदजी का नामकरण उनकी विदुषी माताजी ने बड़े ही तार्किक अर्थों में किया था। दरअसल जब विद्यावतीजी को प्रसव उपरांत यह बताया गया कि उन्होंने पुत्री को जन्म दिया है तो उनके मुंह से निकला -‘‘वर्षा विगत शरद ऋतु आई। मेरी बड़ी बेटी का नाम वर्षा रखा गया है और अब छोटी का नाम शरद रखूंगी।’’ यद्यपि बाद में परिवार के कुछ लोगों ने उन्हें समझाना चाहा कि यह ‘‘लड़कों वाला नाम’’ है किन्तु वे अपनी बेटी को यही नाम देना चाहती थीं। तब शरद जी के नाना ने हस्तक्षेप किया और तय हुआ कि ‘‘शरद कुमारी सिंह’’ नाम रखा जाए। लेकिन वास्तव में इस नाम का प्रयोग कभी किया ही नहीं गया और जन्मपत्री से लेकर विद्यालय में दाखिले के समय भी ‘‘शरद सिंह’’ नाम ही रखा गया।

शरद सिंह जी की आरम्भिक शिक्षा पन्ना में महिला समिति द्वारा संचालित शिशु मंदिर में हुई। इसके बाद शासकीय मनहर कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पन्ना में उन्होंने दसवीं कक्षा तक अध्ययन किया। इस बीच उनके नाना – जिनसे उन्हें बेहद लगाव था, का निधन हो गया। उनकी मनोदशा देखते हुए मां ने उन्हें मामा कमल सिंह के पास पढ़ने भेज दिया। इस प्रकार शरद सिंह जी ने शहडोल जिले के छोटे से कस्बे बिजुरी जो मुख्यरूप से कोयला उत्पादक क्षेत्र था, में अपने मामा जी के पास रहते हुए ग्यारहवीं बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी दीदी वर्षा सिंह जो एक प्रतिष्ठित गज़लकार और गीतकार थीं, जीव विज्ञान की छात्रा थीं, उनकी देखा-देखी शरद जी ने भी विज्ञान विषय लिया। मगर कुछ अप्रिय अनुभवों ने उन्हें विज्ञान विषय छोड़ने पर मजबूर कर दिया। दरअसल उनके शिक्षक ट्यूशन के लिए दबाव बनाते थे और न मानने पर फेल करने की धमकी दिया करते थे।

दूसरी घटना जूलॉजी के प्रैक्टिकल के समय की है। शरद जी को मेंढक का डिसेक्शन करना था लेकिन एक गलत नस कट जाने के कारण पूरी डिसेक्शन-ट्रे खून से भर गई तो उनके हाथ-पैर कांपने लगे। तब उन्होंने महसूस किया कि वे इस विषय में सहज नहीं हैं। इसलिए हायर सेकेंडरी के बाद वे अपनी मां के पास वापस आ गईं और शासकीय छत्रसाल स्नातकोत्तर महाविद्यालय में कला संकाय में दाखिला ले लिया ।’’ उनके विषय थे हिन्दी विशिष्ट, अर्थशास्त्र और इतिहास। अपने महाविद्यालय में वे एक कुशाग्र बुद्धि की छात्रा के रूप में जानी जाती थीं। साहित्यिक गतिविधियों के साथ ही वे खेलकूद में भी आगे थीं। अपने महाविद्यालयीन जीवन में उन्होंने कैरम, टेबल टेनिस तथा बैडमिंटन में छात्रा वर्ग की ट्रॉफियाँ जीतीं। उन्होंने बी.ए. अंतिम वर्ष की पढ़ाई दमोह के शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय से की। उस दौरान उन्होंने अपने महाविद्यालय की पत्रिका का आमुख भी डिज़ाइन किया था। इसके बाद परिवार में चल रहे उतार-चढ़ावों के कारण उन्होंने स्वाध्यायी छात्रा के रूप में अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय से मध्यकालीन भारतीय इतिहास विषय में पहला एम. ए. किया। अब तक वे पत्रकारिता से भी जुड़ चुकी थीं।

इस बीच विद्यावती जी सन् 1988 में सेवानिवृत्ति के बाद सागर में जा बसी थीं और वर्षा जी भी मध्यप्रदेश विद्युत मंडल में नौकरी करने लगी थीं। उन्होंने भी अपना स्थानांतरण सागर करा लिया। स्वाभाविक रूप से शरद जी का स्थाई निवास सागर हो गया। वहां उनका परिचय विख्यात पुरातत्वविद् प्रो. कृष्णदत्त वाजपेयी से हुआ। शरद जी ने उन्हें इतिहास एवं पुरास्थलों पर प्रकाशित अपने लेख दिखाए। प्रो. बाजपेयी ने उन्हें प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व में एम.ए. करने की सलाह दी। शरद जी को यह सलाह बहुत भाई और उन्होंने दूसरा एम.ए. प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विषय में प्रावीण्य सूची में प्रथम स्थान पाते हुए किया। इसके लिए उन्हें स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया गया था।

शरद जी की अध्ययन यात्रा अन्य विद्यार्थियों की भांति आसान नहीं रही। प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व में एम.ए. प्रथम वर्ष की परीक्षा प्रथम श्रेणी के अंकों से उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने द्वितीय वर्ष की तैयारी शुरू कर दी किन्तु इस बीच बी. एड. की भर्ती परीक्षा में वे चुन ली गईं। तमाम जानने वालों ने उनसे कहा कि जब वे पहले से ही एक एम.ए. कर चुकी हैं तो बी. एड. के इस व्यावयायिक अध्ययन के अवसर को उन्हें नहीं छोड़ना चाहिए। अंततः उन्होंने भी बी. एड. करना स्वीकार कर लिया और इस एक वर्षीय पाठ्यक्रम में भी प्रौढ़ शिक्षा विषय में ‘‘डिस्टिंक्शन’’ हासिल करते हुए उन्होंने प्रावीण्य सूची में प्रथम स्थान पाया। इसके बाद उन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विषय की अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरा करने के लिए एम.ए. द्वितीय वर्ष की स्वाध्यायी छात्रा के रूप में परीक्षा दी।

इसी दौरान उन्होंने इम्मानुएल ब्याज़ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, सागर में अध्यापन शुरू कर दिया था। इसके बाद स्थानीय जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में भी उन्होंने लगभग तीन साल शिक्षण कार्य किया। इसके बाद डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के ऑडियो विजुअल रिसर्च सेंटर में उनकी नियुक्ति सहायक प्राध्यापक के रूप में हो गई और शिक्षण कार्य से उनका नाता सदा के लिए टूट गया। ए.वी.आर.सी. में काम करते हुए उन्होंने अनेक शैक्षणिक फिल्मों के लिए पटकथा लेखन, संपादन सहित फिल्म निर्माण का कार्य किया। किन्तु शीघ्र ही उन्हें अहसास हुआ कि वे एक कर्मचारी के रूप में बंधकर कार्य नहीं कर सकती हैं। तब उन्होंने स्वतंत्र लेखिका के रूप में लेखन कार्य करने एवं समाज सेवा से जुड़ने निर्णय लिया। “अरे, लगी-लगाई नौकरी छोड़ दी!’’ – कहते हुए कुछ लोगों ने मुंह मोड़ लिया लेकिन वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने उनके इस निर्णय का स्वागत किया, ख़ास तौर पर उनकी बड़ी बहन स्व वर्षा सिंह ने।

अपनी मां और बड़ी बहन से प्रेरणा लेकर शरद जी ने बचपन से ही लिखना शुरू कर दिया था। जब वे आठवीं कक्षा में थीं, तब मां और दीदी को बिना बताए अपनी पहली रचना वाराणसी के दैनिक ‘‘आज’’ को भेज दी। कुछ दिन बाद जब वह रचना प्रकाशित हुई तो उसे देख विद्यावती जी आश्चर्य- चकित रह गईं। जुलाई 1977 में शरद जी की पहली कहानी ‘भिखारिन’ शीर्षक से दैनिक जागरण, रीवा में प्रकाशित हुई। स्त्री विमर्श पर उनकी पहली कहानी – ‘काला चांद’ जबलपुर के दैनिक नवीन दुनिया के ‘नारी निकुंज’ परिशिष्ट में अप्रैल 1983 में प्रकाशित हुई थी। राष्ट्रीय स्तर पर उनकी प्रथम चर्चित कहानी ‘गीला अंधेरा’ थी, जो मई 1996 में भारतीय भाषा परिषद कोलकाता की पत्रिका ‘‘वागर्थ’’ में प्रकाशित हुई थी। शरद जी इसी कहानी को सच्चे अर्थों में अपनी पहली कहानी मानती हैं। यह एक ऐसी ग्रामीण स्त्री की कहानी है जो सरपंच तो चुन ली जाती है लेकिन उसके सारे अधिकार उसकी पति की मुट्ठी में रहते हैं। स्त्रियों के विरुद्ध होने वाले अपराध को देख कर वह कसमसाती है। उसका पति उसे कोई भी क़दम उठाने से रोकता है, धमकाता है लेकिन अंततः वह एक निर्णय लेती है आंसुओं से भीगे गीले अंधेरे के बीच। इस कहानी में बुंदेलखंड का परिदृश्य और बुंदेली बोली के संवाद हैं।

उनके उपन्यासों ‘पिछले पन्ने की औरतें’, ‘पचकौड़ी’ और ‘कस्बाई सिमोन’ की नींव में ‘गीला अंधेरा’ कहानी का ही विस्तार नज़र आता है। दरअसल, वे यथार्थवादी लेखन में विश्वास रखती हैं और अपने आस-पास के वातावरण से ही कथानक चुनती हैं, विशेषरूप से स्त्री जीवन से जुड़े हुए।’’ शरद जी वर्तमान में सागर में निवास कर रही हैं, कुछ समय पहले थोड़े ही अन्तराल में विद्यावती जी और वर्षा जी को उन्होंने खो दिया। इससे उपजी रिक्तता को भरने के लिए वे निरंतर सृजनशील हैं।

प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ 

• उपन्यास: पिछले पन्ने की औरतें, पचकौड़ी, कस्बाई सिमोन

• कहानी संग्रह: बाबा फ़रीद अब नहीं आते, तीली-तीली आग, छिपी हुई औरत और अन्य कहानियां, राख तरे के अंगरा, गिल्ला हनेरा, श्रेष्ठ जैन कथाएं, श्रेष्ठ सिख कथाएं

• शोधपरक पुस्तकें: खजुराहो की मूर्ति कला के सौंदर्यात्मक तत्व, प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास

सम्मान एवं पुरस्कार 

• संस्कृति विभाग, भारत सरकार का ‘गोविन्द वल्लभ पंत पुरस्कार -2000’ ‘न्यायालयिक विज्ञान की नई चुनौतियां’, पुस्तक के लिए।

• साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, म.प्र. शासन का ‘‘पं. बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार’’

• मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का ‘‘वागीश्वरी पुरस्कार’

• ‘नई धारा’ सम्मान, पटना, बिहार।

• ‘विजय वर्मा कथा सम्मान’, मुंबई ।

• पं. रामानन्द तिवारी स्मृति प्रतिष्ठा सम्मान, इन्दौर

• ‘जौहरी सम्मान’, भोपाल मध्यप्रदेश।

• ‘गुरदी देवी सम्मान’, लखनऊ

• ‘अंबिकाप्रसाद ‘दिव्य रजत अलंकरण-2004’, भोपाल

• ‘श्रीमंत सेठ भगवानदास जैन स्मृति सम्मान’, सागर

• ‘कस्तूरी देवी चतुर्वेदी लोकभाषा लेखिका सम्मान -2004’, भोपाल

• ‘‘मां प्रभादेवी सम्मान’’, भोपाल

• शिव कुमार श्रीवास्तव सम्मान, सागर

• पं. ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी सम्मान, सागर, मध्य प्रदेश।

• निर्मल सम्मान, सागर, मध्य प्रदेश।

• मकरोनिया नगर पालिका परिषद, सागर द्वारा ‘नागरिक सम्मान’

सन्दर्भ स्रोत : मिस शरद सिंह ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम

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