डॉ. रजनी भंडारी

blog-img

डॉ. रजनी भंडारी

छाया : स्व संप्रेषित

जानी-मानी समाज सेविका डॉ. रजनी भंडारी थैलेसीमिया से पीड़ित साधनहीन परिवार के बच्चों के लिए उम्मीद की पहली किरण मानी जाती हैं।  उनका जन्म 19 मार्च 1955 में जावरा,रतलाम में हुआ। उनके पिता सत्यनारायण टंडन पुलिस अधिकारी थे और माँ श्रीमती सरला टंडन गृहिणी थीं। रजनी जी दो भाइयों के बीच इकलौती बहन होने के साथ साथ सबसे बड़ी थीं। इसलिए घर में लाड़ प्यार भी खूब मिला। पिता अपने काम के सिलसिले में ज्यादातर बाहर रहते ऐसे में बच्चों को सही परवरिश देना और उचित मार्गदर्शन देने का दायित्व माँ ही संभाल रही थीं, हालाँकि पिता जब मौजूद होते तब वे भी अपनी भूमिका बखूबी निभाते। परिणामस्वरूप घर का माहौल पढ़ाई-लिखाई में ही केन्द्रित रहता। रजनी जी एक पढ़ाकू किस्म की बच्ची थीं, जिसे किताबों में ही अपनी पूरी दुनिया नज़र आती थी। इसलिए जब 8वीं कक्षा में उन्होंने जिले भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया तो किसी को हैरानी नहीं हुई। इसके बाद हायर सेकेण्डरी में प्रदेश भर में सर्वोच्च अंक हासिल कर स्वर्ण पदक हासिल किया।

स्नातक तक की शिक्षा के बाद माता-पिता की पसंद से उनका वर्ष 1976 में विवाह हो गया। उनके पति श्री दिलीप भंडारी भी पुलिस विभाग में ही कार्यरत थे। नए जीवनसंगी और घर-परिवार को जानने समझने के क्रम में पढ़ाई में अल्पकालिक रुकावट आई। वह 1976 उस समय वे देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय, इंदौर से वनस्पति शास्त्र में एम.एससी. कर रहीं थीं परन्तु अंतिम वर्ष की परीक्षा नहीं दे सकीं। प्रीवियस की परीक्षा दे सकीं, लेकिन किसी कारणवश अंतिम वर्ष की परीक्षा में सम्मिलित नहीं हो सकीं। नई गृहस्थी के साथ समायोजन स्थापित करने में कुछ वर्ष गुजर गए, इस बीच रजनी जी दो बच्चों की मां बन गईं। पुलिस विभाग में होने के कारण पति ज्यादातर बाहर ही रहते इधर रजनी जी भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाना भली भांति सीख चुकी थीं। इसके बाद वे अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करने में जुट गईं। वर्ष 1981 में अंग्रेज़ी विषय लेकर उन्होंने एम.ए.की परीक्षा दी और प्रदेश में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर स्वर्ण पदक हासिल किया। वर्ष 1983 में वे मप्र लोकसेवा आयोग की परीक्षा में सम्मिलित हुई और लिखित परीक्षा पास कर ली। लेकिन साक्षात्कार से पहले उन्हें पति की सहमति नहीं मिल सकी, परिणामस्वरूप साक्षात्कार में वे पूरे मन से शामिल नहीं हो पाई। तब तक मन में भविष्य को लेकर कोई साफ़ तस्वीर भी नहीं थी कि आगे क्या करना है। घरेलू कामकाज के अलावा पढ़ने-लिखने में वक्त कट जाता।

उसी दौरान वे लायनेस क्लब, इंदौर की सदस्य बनीं और सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगीं। कुछ समय व्यतीत होने के बाद वे क्लब की अध्यक्ष बन गईं। उस दौरान क्लब की ओर से आयोजित शिविर में थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों को ज़रूरी इंजेक्शन लगवाए गए। यह काम रजनी जी देखरेख में ही हो रहा था। क्लब के अध्यक्ष के तौर पर कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद भी वे बच्चे रजनी जी से मिलने आया करते, ज़रुरत पड़ने पर वे उनकी मदद भी करतीं। एक बार उन्होंने अपने स्तर पर थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों की मदद करने की ठानी और ‘थैलेमसिया एंड चाइल्ड वेलफेयर’ ग्रुप की स्थापना की। अब तक कई बच्चों का इलाज करवाने के साथ-साथ और भी कई कल्याणकारी योजनाओं को वे अमल में लेकर आईं हैं। उन्होंने सरकार के साथ मिलकर काम किया, कई अन्य संस्थाओं की सदस्य बनीं। पढ़ाई का शौक अब भी बना हुआ था। वर्ष 2001 में उन्होंने डी.एड. किया और सभी पाँचों विषय में डिस्टिंक्शन लेकर पास हुईं।

रजनी जी का सफ़र आज भी जारी है, उनके तीन बच्चे प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत हैं। बड़ी बेटी शिल्पा विवाह के बाद अमेरिका में बस गई हैं एवं बिरला सॉफ्ट कम्पनी के वैश्विक स्तर के वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं, दूसरी बेटी शुभ्रा दुनिया के प्रमुख 11 मानव संसाधन प्रबंधकों में दूसरे स्थान पर मानी जाती हैं एवं पुत्र श्री प्रदीप भंडारी जाने माने पत्रकार हैं।

उपलब्धियां

  1. वर्ष 1998 में वर्ल्ड यूनिवर्सिटी राउंडकेबल, बेंसन, एरिजोना, यूएसए द्वारा कल्चरल डॉक्टरेट इन लिटरेचर की उपाधि
  2. वर्ष 1998 में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा समाज सेवा के क्षेत्र में योगदान के लिए ‘एक्सीलेंट अवार्ड’
  3. वर्ष 2001 में जनपरिषद, भोपाल द्वारा  आयोजित सर्वेक्षण में प्रदेश की प्रमुख ग्यारह महिलाओं में शामिल एवं उत्कृष्ट महिला सम्मान
  4. वर्ष 2002 में जनपरिषद्, भोपाल द्वारा प्रदेश श्री सम्मान
  5. वर्ष 2004 एवं 2005 में अमेरिकन बायोग्राफिकल सोसायटी द्वारा प्रदान किये जाने वाले ग्रेट इन्डियन एचीवर अवार्ड के लिए नामित।
  6. वर्ष 2007 में भीम शक्ति सेना, इंदौर द्वारा इंदिरा गांधी पुरस्कार
  7.  वर्ष 2011 में माता गुजरी फाउंडेशन द्वारा माता गुजरी पुरस्कार
  8. वर्ष 2012 में दैनिक समाचार पत्र ‘डीएनए’ द्वारा आइकन ऑफ़ इंदौर अवार्ड
  9. स्वर्ण भारत-महिला सशक्तिकरण बोर्ड द्वारा ‘द मोस्ट इंस्पायरिंग वीमेन ऑफ इंडिया’ के तहत नारी शक्ति सम्मान -2021

सन्दर्भ स्रोत : स्व संप्रेषित 

© मीडियाटिक

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



पूजा ओझा : लहरों पर फतह हासिल करने
ज़िन्दगीनामा

पूजा ओझा : लहरों पर फतह हासिल करने , वाली पहली दिव्यांग भारतीय खिलाड़ी

पूजा ओझा ऐसी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपनी गरीबी और विकलांगता को अपने सपनों की राह में रुकावट नहीं बनने दिया।

मालवा की सांस्कृतिक धरोहर सहेज रहीं कृष्णा वर्मा
ज़िन्दगीनामा

मालवा की सांस्कृतिक धरोहर सहेज रहीं कृष्णा वर्मा

कृष्णा जी ने आज जो ख्याति अर्जित की है, उसके पीछे उनकी कठिन साधना और संघर्ष की लम्बी कहानी है। उनके जीवन का लंबा हिस्सा...

नकारात्मक भूमिकाओं को यादगार बनाने वाली अनन्या खरे
ज़िन्दगीनामा

नकारात्मक भूमिकाओं को यादगार बनाने वाली अनन्या खरे

अनन्या खरे ने देवदास और चांदनी बार सहित कई सफल फिल्मों में सहायक भूमिकाएँ निभाई हैं। बड़े पर्दे पर सफलता मिलने से पहले...

बैसाखी के साथ बुलंद इरादों वाली सरपंच सुनीता भलावी
ज़िन्दगीनामा

बैसाखी के साथ बुलंद इरादों वाली सरपंच सुनीता भलावी

सुनीता भलावी ने अपने शानदार प्रदर्शन से साबित कर दिया कि इरादे पक्के हों तो विकलांगता कभी आड़े नहीं आ सकती।

कांता बहन : जिनके जज़्बे ने बदल
ज़िन्दगीनामा

कांता बहन : जिनके जज़्बे ने बदल , दी आदिवासी लड़कियों की तक़दीर

शुरुआती दौर में तो आदिवासी उन पर भरोसा ही नहीं करते थे। संपर्क के लिये जब वे गाँव में पहुँचती तो महिलाएं देखते ही दरवाजा...