छाया : स्व संप्रेषित
वास्तुशिल्प, इतिहास एवं धरोहर
अनुवाद : राकेश दीक्षित
हमारी सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण और संवर्धन श्रमसाध्य तो है ही, एक अलग प्रकार की सुविज्ञता की मांग करता है। मीरा दास ने इसे जीवन का लक्ष्य बनाया है। इसे चुनौती मानकर पूरे प्राणपण से वे इस दिशा में लगातार काम कर रही हैं। वे सोसाइटी फॉर कल्चर एंड एनवायरामेंट की सचिव हैं। इस संस्था का उद्देश्य समाज को संस्कृति और साहित्य के प्रति संवेदनशील बनाना है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए उन्हें भोपाल लिटरेरी फ़ेस्टिवल ( बीएलएफ़ ) का साथ मिला है। भोपाल में अब तक बीएलएफ़ साहित्य और कला पर तीन सफल उत्सव आयोजित का चुका है। विभिन्न निजी संगठनों और सरकारी विभागों के वित्तीय सहयोग से आयोजित हुए पिछले साहित्य समागम में सौ अंग्रेज़ी और 16 हिन्दी के लेखकों ने हिस्सा लिया था। इस दौरान तीन कला प्रदर्शनियां और छह सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित हुए।
वास्तुविद, कला इतिहासकार और नीति विशेषज्ञ मीरा दास भोपाल की बेटी हैं, यहीं पली -बढ़ी हैं। उनकी स्मृतियों में पुराने भोपाल की रंगबिरंगी छटा समाई हुई है। वर्ष 1956 में मध्यप्रदेश के गठन के बाद उनके पिता ,जो शासकीय अधिकारी थे, नई राजधानी भोपाल आ गए। यहां प्रोफ़ेसर्स कॉलोनी को उन्होंने अपना ठिकाना बनाया। राज्य सरकार में सूचना और प्रचार विभाग में संचालक होने के नाते मीरा जी के पिता लेखकों, कवियों, संगीतकारों और सांस्कृतिक कर्मियों से निकट संपर्क रखते थे। उनमें से अनेक पिता की तरह स्वाधीनता संग्राम सेनानी भी थे। ज़ाहिर है, मीरा को सांस्कृतिक माहौल घर में ही मिला।
मीरा जी का दाख़िला सेंट जोसेफ़ कॉन्वेंट स्कूल ,ईदगाह हिल्स में हुआ। स्कूल के लिए बस से आते-जाते उन्हें नवाबी ज़माने के भोपाल का नज़ारा लगभग रोज़ ही देखने मिलता था। वे गहरी दिलचस्पी से पुरानी स्थापत्य कलाओं को निहारती थीं। झीलों और पहाड़ियों की नैसर्गिक छटा उन्हें विशेष रूप से आकर्षित करती थी। स्थापत्य कला के प्रति बचपन से पैदा हुए इस आकर्षण ने डॉ. दास को वास्तुकार बनने की ओर प्रवृत्त किया। उन्होंने भोपाल के मौलाना आज़ाद कॉलेज ऑफ़ टेक्नोलॉजी ( अब मैनिट ) से वास्तुकला में डिग्री हासिल की। लेकिन अपने पेशे की सही समझ विकसित करने में मीरा जी को अहमदाबाद में बहुत मदद मिली। यहाँ उन्होंने कई नौकरियाँ कीं। इस दौरान स्थापत्य और वास्तु कला से लेकर इंटीरियर डिज़ाइन और फर्नीचर बनाने का काम भी सीखा। इन कलाओं से जुड़ी अनेक परियोजनाओं में हाथ बंटाया।
मीरा जी के ही शब्दों में – ‘उनकी जिंदगी में दूसरा महत्वपूर्ण मोड़ उनकी ईश्वर दास से शादी के बाद आया’। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री दास तब भोपाल स्थित प्रशासनिक अकादमी के महानिदेशक थे। विवाह के बाद मीरा को इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इन्टेक) में महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी मिली। ईश्वर दास इंटेक,मध्य प्रदेश में समन्वयक थे। मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहरों की देखभाल और उनकी महत्ता सामने लाने में दास दंपत्ति ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई।
धरोहरों के अध्ययन ने मीरा जी की सांस्कृतिक समझ को तो समृद्ध किया ही,उनमें और ज़्यादा जानने -समझने की तड़प भी जगाई। उन्हें चार्ल्स वेलेस फ़ेलोशिप के तहत ब्रिटेन में सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण का मौका मिला। बाद में उन्होंने उसी संस्थान से वास्तुकला में डॉक्टरेट हासिल की। जवाहरलाल नेहरू अर्बन रिन्यूअल मिशन के तहत उज्जैन में प्राचीन महाकाल मंदिर के आसपास के वैभवशाली स्थापत्य की पहचान स्थापित करना मीरा की पेशेवर यात्रा का अत्यंत महत्वपूर्ण पड़ाव रहा। इस परियोजना का उद्देश्य धार्मिक नगरी के सांस्कृतिक,धार्मिक और ऐतिहासिक पक्षों का सांगोपांग परिचय कराना था ताकि महाकाल की संपूर्ण भव्यता के दर्शन हो सके।
इस परियोजना के सफल क्रियान्वयन से मीरा दास को 2010 में गठित नेशनल मॉन्युमेंट अथॉरिटी ( राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण ) में सदस्य बनने का मौका मिला। वे कौंसिल ऑफ़ आर्किटेक्चर और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ आर्किटेक्चर की भी सदस्य हैं। डॉ. दास ने एयर इंडिया द्वारा जुटाई गईं कलाकृतियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर सांस्कृतिक अभिरुचि के साथ सजवाने में भी सलाहकार की भूमिका निभाई है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने उन्हें चंदेरी में इको सिटी की परियोजना तैयार करने का दायित्व सौंपा। इसके अलावा मप्र और सिक्किम सरकारों के लिए भी मीरा जी ने कुछ महत्वपूर्ण काम किए हैं। कला-संस्कृति से जुड़े इतिहास पर मीरा जी के अनेक शोध आलेख और दर्जन भर पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, कुछ और किताबें प्रकाशनाधीन हैं। देश-विदेश में कई प्रतिष्ठित मंचों पर उनके व्याख्यान हो चुके हैं।
सन्दर्भ स्रोत : स्व संप्रेषित
© मीडियाटिक
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