छाया : डॉ. संध्या टिकेकर
प्रमुख चिकित्सक
• डॉ. संध्या टिकेकर
मरीजों का विश्वास, एक चिकित्सक की सफलता की खरी कसौटी होती है। बीना नगर की स्वयंसिद्धा डॉक्टर नलिनी गोपालराव आचवल के सुयश के पीछे भी ठीक यही विश्वास खड़ा है। बीना नगर और उसके आसपास के गावों के अनेक परिवारों के मरीज (पिछली तीन पीढ़ियों से) केवल इसी विश्वास पर उनसे उपचार करवाते रहे हैं कि वे उन्हीं के उपचार से स्वस्थ होते हैं। गजरा राजा मेडिकल कॉलेज, ग्वालियर के सन 1956 के बैच की एमबीबीएस डॉक्टर नलिनी आचवल सन 1959 से बीना के मरीजों की सेवा – संपर्क में रही हैं। 5 जून 1936 को मेघनगर, झाबुआ में जन्मी नलिनी जी के पिता डॉक्टर लक्ष्मण गोगटे मध्यप्रदेश शासन में चिकित्सक थे, जबकि माँ श्रीमती काशीबाई गोगटे संस्कृतज्ञ और समाजसेवी थीं। दो-तीन साल की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। छठवीं गांव के स्कूल से। जीजाजी श्री दत्तात्रेय राव आचवल की प्रेरणा से बीना से सीधे दसवीं की परीक्षा दी। 11वीं-12वीं की परीक्षा भी अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की।
माता-पिता के कारण ही नलिनी जी के मन में मानव सेवा की रुचि जागृत हुई और उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में आने का निर्णय कर लिया। 12वीं उत्तीर्ण करने के बाद पिता की मृत्यु हो जाने के कारण पिता के मित्र श्री शांतिलाल गर्ग की प्रेरणा से उन्होंने पीएमटी की परीक्षा दी और मेडिकल में उनका चयन हो गया। ग्वालियर से डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद बीना के श्री गोपाल राव आचवल से उनका विवाह हुआ। पारिवारिक वातावरण शिक्षित और संपन्नता का था, पर बीना जैसी छोटी जगह में डॉक्टर नलिनी जी को शुरुआत में कुछ समय तक अस्पताल में सिर पर पल्लू डालकर ही बैठना पड़ा पड़ा था। बीना के पुराने जागीरदार, मल्हारगढ़ के पूर्व सूबेदार और आचवल परिवार की (गढ़ी की) बहू बनकर आईं डॉ. नलिनी जी से बीना की पहली महिला चिकित्सक ( स्त्री रोग विशेषज्ञ ) होने के नाते, यहां की महिला मरीजों को उनसे बड़ी अपेक्षाएं रही होंगी और डॉक्टर नलिनी के लिए भी एक नए स्थान पर नए मरीजों की मानसिकता को समझते हुए काम करने की अपनी चुनौतियां रही होंगी। फिर भी सीमित सुविधाओं – संसाधनों के बावजूद उन्होंने मरीजों का इलाज पूरे आत्मविश्वास के साथ प्रारंभ किया।
सुदर्शना, मितभाषी, मधुर भाषी और सौम्य डॉक्टर नलिनी आचवल एक संवेदनशील मन की महिला हैं। वे अपने अस्पताल में आने वाले आर्थिक रूप से कमजोर अनेक मरीजों का निःशुल्क उपचार करती रही हैं। नाममात्र की फीस में मरीजों की पैथोलॉजी जांच करवा कर उन्होंने अनेक निर्धन महिलाओं की मदद की है। उनकी संवेदनशीलता ने उन्हें हमेशा सामाजिक सरोकारों से जोड़े रखा। बीना तहसील के आसपास के छोटे-छोटे गांव में जाकर उनका निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण करने के साथ ही उन्हें स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूक करने का कार्य वे समय-समय पर करती रहीं हैं। एक पारिवारिक परामर्शदाता के रूप में भी उन्होंने कई मरीजों की पारिवारिक अनबन और गलतफहमियों को दूर करने में विशेष सहयोग दिया है। आज मनोवैज्ञानिक परामर्श हेतु शहरों में अनेक मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं, किंतु डॉक्टर नलिनी जी मरीजों को तनाव और अवसाद से लड़ने के लिए सहज ही सुझाव देती रही हैं। लोग आज भी उनकी मदद को याद कर भाव विभोर हो उठते हैं। आज के इस परिवेश में जहां ज्यादातर प्रसव ऑपरेशन के द्वारा भारी शुल्क लेकर किए जा रहे हैं, डॉक्टर नलिनी जी के अस्पताल में प्रसव सामान्य (प्राकृतिक) तरीके से न्यूनतम शुल्क पर किए जाते हैं। बीना और आसपास के गांव के मरीजों को आज भी यह कहते हुए सुना जा सकता है कि गढ़ी वाली डॉक्टर के यहां नॉर्मल डिलीवरी होती है। प्रसव के जटिल प्रकरणों में वे समय रहते मरीज को आगाह कर निकट के शहरों के सुविधाजनक अस्पतालों में ले जाने का मशवरा देती रही हैं। उन्होंने मातृत्व सुख से वंचित अनेक उन निर्धन ग्रामीण महिलाओं को जो रूढ़ियों और आर्थिक तंगी के कारण शहर जाकर इलाज नहीं करा सकती थीं, संतान सुख का अनुभव देकर उनके घरों को किलकारियों से भरा है। भारत के दूरदराज के इलाकों जैसे हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा तक से आकर महिलाएं उनके यहां अपना इलाज कराती रही हैं। अनेक दंपत्ति ऐसे भी हैं जिन्हें बड़े शहरों में इलाज के लिए लाखों खर्च करने के बाद भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिले तो उन्होंने लौट कर बीना की इन्हीं गढ़ीवाली डॉक्टर से इलाज लिया और संतान सुख पाया है। यह सुख पाने वाले दंपत्ति आज भी उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
नलिनी जी के जीवन का एक रोमांचक वाकया है। सन साठ के दशक में बीना नगर में बहुत सी चिकित्सा सुविधाएं नहीं थीं। इलाज के लिए लोग एकमात्र रेलवे अस्पताल पर निर्भर थे। ऐसे में एक ग्रामीण महिला के घर पर ही प्रसव के दौरान बच्चा आड़ा हो गया था और उसका एक हाथ बाहर निकल आया था। उस महिला को बैलगाड़ी में डालकर नलिनी जी के अस्पताल लाया गया। वे देखते ही समझ गई कि स्थिति बहुत गंभीर है, ऑपरेशन से ही बच्चे को बाहर निकाला जा सकता है। उन्होंने हौसले और सूझबूझ से काम लेते हुए अपने जेठ श्री मनोहर राव आचवल से कहकर रेलवे अस्पताल से क्लोरोफॉर्म का प्रबंध करवाया। क्लोरोफॉर्म आते ही उन्होंने उसे चाय की छन्नी में पट्टी के एक टुकड़े पर डाला और फिर उसे महिला मरीज के मुंह पर रखकर उसे बेहोश किया। फिर उसके बच्चे को सीधा करके सुरक्षित प्रसव करवाया। मां और बच्चे दोनों की जान बच गई इस घटना से डॉक्टर नलिनी जी की ख्याति बीना और उसके आसपास के क्षेत्रों में तेजी से फैल गई।
डॉक्टर नलिनी आचवल ने बीना की पहली महिला चिकित्सक के रूप में अपनी सेवाएं देकर जिस तरह से लोगों के मन को जीता है, वह सिद्ध करता है कि निःस्वार्थ भाव से की गई मानव सेवा मरीजों के साथ साथ समाज को भी एक सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है। उनकी 55 वर्षीय चिकित्सकीय सेवा के लिए उन्हें 2019 में, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा पद्मभूषण डॉ एस. के. मुखर्जी अवार्ड से ग्वालियर में श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के द्वारा सम्मानित किया गया। बीना वासियों को गढ़ी वाली अपनी इस डॉक्टर पर गर्व ऐसे ही नहीं है। चूंकि वे अब 86 वर्ष की हैं और उम्र के तकाजों के सामने कुछ मजबूर भी हैं, लेकिन उनकी बहू डॉक्टर सुवर्णा अनिल आचवल, उनके उसी नि:स्वार्थ समर्पण की विरासत को उसी निष्ठा और समर्पण के साथ संभाले हुए हैं। नलिनी जी के पुत्र श्री अनिल आचवल बीना में ही पेट्रोल पंप का संचालन करते हैं। उनकी तीन बेटियां -अश्लेषा, अश्विनी और अर्चना हैं।
– बीना निवासी डॉ. संध्या टिकेकर प्राध्यापक, लेखिका और अनुवादक हैं
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