डॉ. तापसी नागराज

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डॉ. तापसी नागराज

छाया: डॉ. तापसी नागराज  के फेसबुक अकाउंट से

कलाकार - संगीत एवं नृत्य

• श्रद्धा सुनील

डॉ. तापसी नागराज, सुगम संगीत के क्षेत्र एक जाना माना नाम है। गायन के प्रति उनके रुझान को बहुत छोटी उम्र में माता पिता ने पहचान लिया था। उनका जन्म 1 नवंबर 1962 को जबलपुर में हुआ। उनके पिता श्री प्रवीर चक्रवर्ती  स्वतंत्र गायन और नाटकों में अभिनय करते थे। माँ  श्रीमती शोभा चक्रवर्ती ने संगीत की कोई शिक्षा नहीं ली थी लेकिन वे भी बहुत सुरीला गाती थीं। इस तरह संगीत तापसी जी को विरासत में मिला। घर में कला के प्रति सम्मान था तो एक समृद्ध परंपरा में उनका पालन पोषण हुआ।

तापसी जी 4 साल की उम्र से ही बांग्ला गीत गाने लगीं थीं। उस वक़्त उन्हें हिन्दी बिल्कुल भी नहीं आती थी क्योंकि घर में बांग्ला ही बोली जाती थी। उनकी प्राथमिक शिक्षा भी बांग्ला माध्यम हुई। इसके बावजूद एक दिन उनके पिता ने उन्हें लता मंगेशकर का हिन्दी फ़िल्मी गीत गुनगुनाते सुना तो आश्चर्यचकित हो गए। तापसी जी हिन्दी बोलना नहीं जानती थीं लेकिन उनका प्रेम तो स्वरों से था। उनका मानना है कि धुन को पकड़ कर किसी भी भाषा का गीत गाया जा सकता है। इस काम में उनकी महारत बचपन में ही दिखाई देने लगी थी। रेडियो पर बिनाका गीत माला सुनकर वह लता जी के जटिल शास्त्रीय गीतों को हूबहू गातीं और श्यामा संगीत (काली माँ की महिमा) भी। अब काज़ी नज़रुल इस्लाम का गीति गायन – जिसमें उर्दू ग़ज़लों को बांग्ला में गाया जाता है, तापसी जी बखूबी गाती हैं।

तापसी जी की  स्कूली शिक्षा  महारानी लक्ष्मीबाई विद्यालय से हुई, उसके बाद उन्होंने मानकुंवर बाई महाविद्यालय में प्रवेश लिया। इसी साल उनकी मुलाक़ात मशहूर बांसुरी वादक मुरलीधर नागराज जी से हुई। तापसी जी की पढ़ाई बीच में ही छूट गई और महज 18 साल की उम्र में 1981 में उनका विवाह नागराज जी से आर्य समाजी विधि विधान से हो गया। तापसी जी के माता-पिता को ये रिश्ता मंजूर न था, इसलिए वे शादी में नहीं आए। लेकिन ससुराल वालों को कोई आपत्ति नहीं थी। उन दिनों को याद करते हुए तापसी जी कहती हैं – इतनी छोटी उम्र में मैंने यह निर्णय कैसे लिया, कुछ कह नहीं सकती। लेकिन लगता है कि यही मेरा प्रारब्ध था। हालांकि तापसी जी को दक्षिण भारतीय परिवार के साथ सामंजस्य स्थापित करने में बहुत मुश्किलें आईं। ख़ास तौर पर खान-पान में बड़ा अन्तर भी एक कारण रहा। संयुक्त परिवार की ज़िम्मेदारी और साथ में संगीत साधना जारी रखना किसी चुनौती से कम न था। लेकिन पति के प्रेम और सहयोग से इस मुश्किल दौर को भी वे निभा ले गईं।

इस दौरान तापसी जी पहले बेटे श्रीधर को जन्म दे चुकी थीं। पढ़ाई अधूरी छूट जाने का दर्द उन्हें भीतर ही भीतर सालता था। ऐसे में उनके ससुर ने उन्हें प्रोत्साहित किया और कहा तुम अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करो। तापसी जी ने उनकी बात मान ली लेकिन घर और बच्चों की ज़िम्मेदारी के चलते वे नियमित रूप से कॉलेज नहीं जा पाती थीं। संगीत विभाग की प्रमुख इस वजह से उनसे नाखुश रहती थीं। वे उन्हें हतोत्साहित करने लगीं और मशविरा देने लगीं कि ‘ तुम किसी और विषय में बी.ए. कर लो, संगीत तुम्हारे बस का नहीं।’ऐसी दुविधा और आहत मन की अवस्था में श्री चंद्रशेखर सेनगुप्ता – जो तापसी जी के गुरु थे और उनकी प्रतिभा को पहचानते थे, ने उनका हौसला बढ़ाया। इस तरह तापसी जी 1885 में स्नातक की अपनी डिग्री पा सकीं।

लेकिन घरेलू ज़िम्मेदारियों ने फिर भी तापसी जी को दस साल तक आगे बढ़ने से रोके रखा। हालांकि उन्होंने अपना रियाज़ जारी रखा और संघर्ष भी। 1996 में उन्होंने संगीत में एम.ए. कर लिया। इस दौरान वे श्री आनन्द जोशी और सेनगुप्ता जी के सानिध्य में अपने संगीत को मांजती रहीं। उन्होंने सुगम संगीत का विशेष प्रशिक्षण मोहम्मद हुसैन, अहमद हुसैन और वसंत तिमोथी से हासिल किया। एम.ए. करने के 19 साल बाद 2015 में उन्होंने संगीत में पीएच. डी. भी किया। तापसी जी के बड़े बेटे श्रीधर बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और माता-पिता की विरासत को बखूबी संभाल रहे हैं। वे मुंबई में रहते हैं, जबकि छोटे पुत्र अभिषेक भी संगीत में पारंगत हैं और वे एक फाइनेंस कंपनी में कार्यरत हैं। 

तापसी जी मध्य प्रदेश कला परिषद राष्ट्रीय कालिदास समारोह उज्जैन में नाटक कर्पूर मंजरी स्वराज संस्थान संचालनालय द्वारा निर्मित ‘वतन का राग’  एवं ‘हिन्दोस्तां’ फ़िल्मों में संगीत निर्देशन के साथ प्रादेशिक भाषा में निर्मित कई फिल्मों में पार्श्व गायन कर चुकी हैं। इसके अलावा सा रे गा मा द्वारा जारी एल्बम ‘शुभ विनायक’ में पद्मश्री अनूप जलोटा के साथ गायन कर चुकी हैं।  वर्तमान में  वे ‘सुर पराग’ नामक संस्था का संचालन कर रही हैं एवं देश के प्रतिष्ठित मंचों पर  संस्था के बच्चों के साथ संगीत की कार्यशालाएं और मंचीय प्रस्तुतियाँ दे रही हैं

संगीत शिक्षक के रूप में उपलब्धियां

• वर्ष 1997 से 2006 तक लिटिल वर्ल्ड स्कूल में संगीत शिक्षिका

• वर्ष 2006 से 2014 तक माता गुजरी  महिला महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक (संगीत विभाग)

• वर्ष 2015 से अब तक सेंट अलोयसिस कॉलेज में कार्यरत  

पुरस्कार एवं सम्मान

• आकाशवाणी और दूरदर्शन की सुगम संगीत में उच्च श्रेणी कलाकार हैं।

• वर्ष 2017 में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा संगीत में योगदान के लिए कला अनूप सम्मान  

• वर्ष 2010 में अभिनव कला परिषद द्वारा अभिनव कला सम्मान

• वर्ष 1996 में आकाशवाणी भोपाल द्वारा सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा सम्मान

• एस.डी बर्मन अवार्ड 

• वर्ष 1981 में सुर सिंगार संसद, मुंबई द्वारा आयोजित ‘कल के पार्श्व गायक’ प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार  

© मीडियाटिक

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