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जन्म से है दृष्टिबाधित, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जीते हैं कई पदक। एकाधिक उपलब्धियों के बावजूद जानकी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। उसके माता-पिता मजदूरी करने जाते हैं। दो वक्त की रोटी के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ रहा है।
कमलेश मिश्रा
• अब तुर्किये में दिखाएंगी प्रतिभा
जबलपुर। प्रतिभा परिस्थितियों की मोहताज नहीं होती, कठोर परिश्रम से सफलता का द्वार खुलता है। इसी को साबित किया है दृष्टिबाधित जानकी गोंड़ ने। जानकी दिव्यांग जूडो चैंपियन है। बीते छह वर्षों के दौरान उसने जूडो में अनेक खिताब अपने नाम किए। चार महीने बाद वहतुर्किये जाने की तैयारी में है।
जन्म से ही दृष्टिबाधित 28 वर्षीय जानकी गोंड़ सिहोरा तहसील के कुर्रो गांव की रहने वाली है। बीते छह वर्षों के दौरान राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक पदक जीते। जानकी सबसे पहले चर्चा में उस वक्त आई, जब उसने एशियन-ओशियन जूडो चैंपियनशिप में दिव्यांग वर्ग में कांस्य पदक जीता। जानकी गोंड़ मध्य प्रदेश की पहली महिला रहीं, जिसने दिव्यांग वर्ग में अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक प्राप्त किया। यह प्रतियोगिता 2016 में उज्बेकिस्तान के ताशकंद में आयोजित हुई थी। इसके अलावा जानकी ने नेशनल ओलिंपिक संंघ द्वारा 2016 में ही आयोजित नेशनल पैरा-जूडो चैंपियनशिप नई दिल्ली में और 2017 में गुड़गांव में स्वर्ण पदक जीता। जानकी के नाम एक अंतरराष्ट्रीय और करीब आधा दर्जन राष्ट्रीय मेडल हैं।
जानकी गोंड़ के प्रयास अभी थमे नहीं हैं, वो अभी भी दिव्यांगों के लिए होने वाली स्पर्धाओं में भाग लेने को आतुर रहती हैं। जानकी के स्वजन ने बताया कि अप्रैल 2023 में पैरा जूडो वर्ल्ड चैम्पियनशिप का आयोजन तुर्किये में होने जा रहा है। इस स्पर्धा में भाग लेने के लिए जानकी भी तुर्किये जाने की तैयारी में है। आर्थिक तंगी के चलते उसे इस प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए जिला प्रशासन की ओर से भी मदद की गई है।
• दिव्यांग खिलाड़ियों के दल का नेतृत्व किया
लखनऊ के केडी बाबू सिंह स्टेडियम में आयोजित छठवीं बालिका मूक-बधिर जूडो प्रतियोगिता में जानकी के नेतृत्व में मध्यप्रदेश की 43 सदस्यीय टीम ने भाग लिया। इस प्रतियोगिता में जानकी ने सीनियर और जूनियर-दोनों वर्गों में भाग लिया। जानकी ने सीनियर वर्ग का स्वर्ण पदक जीता। इसी दल की रानू प्रधान ने जूनियर वर्ग का रजत और निशा ने कांस्य पदक प्राप्त किया।
• मजूदरी करते हैं माता-पिता
इतनी उपलब्धियों के बावजूद जानकी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। उसके माता-पिता मजदूरी करने जाते हैं। उन्हें आज भी दो वक्त की रोटी के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ रहा है, लेकिन उसके हौंसले बुलंद हैं, वो कहती है कि किस्मत को जो मंजूर होगा वैसा ही होगा पर वो अपने प्रयासों से पीछे नहीं हटेगी।
• इनका कहना है
जानकी बेहतर खिलाड़ी है। उसने अनेक स्पर्धाओं में बेहतर प्रदर्शन किया है। अब वह तुर्किये जाने की तैयारी कर रही है। प्रशासन हरसंभव मदद कर रहा है।
आशीष दीक्षित, संयुक्त संचालक सामाजिक न्याय
संदर्भ स्रोत – नईदुनिया
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