• सारिका ठाकुर
पत्रकार
उर्दू की पहली पत्रकार खालिदा बिलग्रामी का जन्म 30 मार्च 1949 को भोपाल में हुआ था। वह पांच बहनों और एक भाई में सबसे बड़ी थीं। उनके पिता कृषि विभाग में डिप्टी डायरेक्टर के पद से रिटायर हुए थे। छोटी बहन जब महज तीन या चार महीने की थी, उनकी माँ का देहांत हो गया। घर संभालने की जिम्मेदारी 12 वर्षीया खालिदा पर आ गयी, जिसे उन्होंने धीरे-धीरे बखूबी संभाल लिया। अपनी पढ़ाई, छोटे-छोटे भाई-बहनों की देखभाल के साथ-साथ रसोई का कामकाज भी वह किसी अनुभवी गृहस्थिन की भांति कर रही थी। अच्छी बात यह थी कि खालिदाजी के पिता शिक्षा का महत्त्व जानते थे, इसलिए उन्होंने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में कोई कसर नहीं छोड़ी। खालिदाजी के साथ-साथ उनके सभी भाई-बहनों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की।
खालिदा जी की प्रारंभिक शिक्षा मोती मस्ज़िद के पास स्थित मदरसे में दीनी तालीम से हुई। 14 वर्ष की आयु में उन्होंने आलिम का कोर्स पूरा किया। यह आज भी एक रिकॉर्ड ही है कि उन्हें 7 सौ में 699 अंक आए थे। उसके बाद वर्ष 1966 में उनकी शादी हो गई। शादी के चंद सालों के बाद ही उनके पति का इंतकाल हो गया और वह गोद में एक बच्ची लेकर पिता के घर आ गयीं। यही वह समय था जिसमें उन्हें यह तय करना था कि एक बेवा की तरह वह महज अपनी उम्र काट लें या कुछ ऐसा करें जिससे ज़माना याद रखे। उन्होंने दूसरा रास्ता चुनना बेहतर समझा. वैसे इतिहास रचने वाले योजना बनाकर इतिहास नहीं रचते। उस समय उनकी वक्ती जरुरत आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा होना था ताकि अपनी बच्ची को अच्छी परवरिश मिल सके. इसके लिए आगे की पढ़ाई को जारी रखना ज़रूरी था।
उन्होंने प्रयाग विद्यापीठ, इलाहाबाद से सम्बद्ध एक शिक्षण संस्थान से ‘सरस्वती’ का कोर्स पूरा किया। उस समय हिंदी भाषा पर आधारित यह कोर्स स्नातक उपाधि के समतुल्य माना जाता था लेकिन कई स्थानों पर इसे मान्यता नहीं थी। इस बात को ध्यान में रखते हुए खालिदा जी ने उर्दू भाषा से स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। वर्ष 1979 में ‘आस्ताब-ए-जदीद’ नामक उर्दू दैनिक में उपसंपादक के तौर पर उन्हें नौकरी मिल गयी। यहाँ लम्बे समय तक उन्होंने काम किया। कदाचित 87-88 में वह ‘डेली नदीम’ अखबार में उपसंपादक के पद पर नियुक्त होकर आ गयीं। वहाँ भी उन्होंने लगभग 15 सालों तक काम किया। बाद में डेली नदीम का दफ्तर भोपाल के प्रेस काम्प्लेक्स में स्थानांतरित हो गया। अखबार के काम में समयसीमा नहीं होती. कई बार उन्हें काम काम के सिलसिले में देर रात तक भी रुकना पड़ता। उन्हें घर से आने जाने में दिक्कत होने लगी। इन्हीं व्यावहारिक दिक्कतों के कारण उन्होंने डेली नदीम की नौकरी छोड़ दी। इस बीच वह नगर निगम से प्रकाशित पत्रिका ‘नागरिक’ के उर्दू सेक्शन में अंशकालिक संपादक भी रहीं। इसके अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख भी छपते रहे। फरवरी 2015 को 71 वर्ष की आयु में वह इस फानी दुनिया को विदा कह गयीं मगर जाने से पहले उर्दू पत्रकारिता के इतिहास में हमेशा के लिए अपना नाम दर्ज कर गयीं।
संदर्भ स्रोत: खालिदा बिलग्रामी के भाई फैजल बिलग्रामी से सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित
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