आकाशवाणी – विविध भारती में महिलाएं

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आकाशवाणी – विविध भारती में महिलाएं


• वंदना दवे

भारत की आज़ादी के वक़्त छपाई मशीन और अख़बारों के बाद रेडियो एक बहुत बड़ी क्रांति थी। ध्वनि तरंगों के माध्यम से लोगों का मनोरंजन ही नहीं हो रहा था,बल्कि तरह-तरह की जानकारियां एक ही समय में एक साथ उन तक पहुंच रही थीं। आज़ादी का जश्न हो या गांधी जी की हत्या लोगों को तत्काल इसकी ख़बर मिल रही थी। तत्समय देश की बहुतायत अशिक्षित और अवैज्ञानिक सोच के लोगों के लिए ये बहुत बड़ा अजूबा था। इसी के साथ रेडियो से प्रसारित आवाज़ में जब स्त्री स्वर भी मिल गया तो लोगों का आश्चर्य -चकित होना स्वाभाविक था।

ये ऑल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस है…..अब आप सईदा बानो से उर्दू में तफ़्सील से समाचार सुनेंगे…….. 14 अगस्त 1947 सुबह आठ बजे रेडियो पर ये आवाज़ जब हज़ारों लोगों ने सुनी तो उन्हें यकीन करना मुश्किल हो गया कि कोई जनाना आवाज़ घर की चारदीवारी से निकल कर इतनी दूर पहुंच जाएगी। इससे पहले न तो बीबीसी और न ही भारतीय रेडियो में कोई महिला उद्घोषक रही थी। इसी के साथ दुनिया भर में भी ये संदेश पहुंच गया कि आज़ाद मुल्क की आधी आबादी की आवाज़ भी मायने रखेगी। यहीं से रेडियो में महिलाओं की भागीदारी का सिलसिला शुरू हुआ जो बदस्तूर जारी है। आज हर रेडियो स्टेशन पर महिला उद्घोषक से लगाकर तकनीकी कर्मी तक अपना कार्य बखूबी निभा रही है। सईदा बानो का जन्म भोपाल में हुआ और उनके बचपन यहीं बीता था।अपनी आत्मकथा ‘डगर से हटकर’ में भोपाल की बहुत सारी यादों का ज़िक्र उन्होंने किया है।

मप्र में सबसे पहले रेडियो स्टेशन की शुरुआत इंदौर से 22 मई 1955 में हुई। ऑल इंडिया रेडियो के महानिदेशालय दिल्ली में पदस्थ मालवीमना डॉ श्याम परमार के प्रयासों से इंदौर आकाशवाणी की स्थापना मालवा हाउस में की गई। हालांकि आकाशवाणी नाम 1957 में मैसूर के विद्वान और चिंतक एम वी गोस्वामी ने पंचतंत्र की कहानियों से लेकर गढ़ा। आकाशवाणी इन्दौर ने जल्द ही समूचे मालवा अंचल में अपनी गहरी पैठ बना ली थी। इसी के चलते रेडियो उद्घोषकों को फ़िल्मी सितारों जैसी लोकप्रियता मिलने लगी थी। लोगों को उनकी फरमाइश पर मनपसंद गाने झट से सुनने को मिल जाया करते थे, जिसे लोग अपनी उपलब्धि मानते थे।

वरिष्ठ संस्कृति कर्मी श्री नरहरि पटेल के शब्दों में उस वक्त रिकॉर्डिंग मशीन इन्दौर नहीं पहुंची थी इसलिए नाटक भर्तृहरि पिंगला का जीवंत प्रसारण हुआ। उनके साथ मराठी रंगमंच की प्रख्यात कलाकार सुमन धर्माधिकारी ने काम किया था। रणजीत सतीश इंदौर आकाशवाणी की स्थापना के साथ ही इससे जुड़ी थीं। उनका भी कहना है कि उस वक्त रिकॉर्डिंग मशीन इन्दौर न आने से कोयल या पक्षियों की आवाज भी हमें लाईव प्रसारित करनी होती थी।

रणजीत जी आकाशवाणी की अपनी यात्रा के बारे में बताती हैं कि उन्हें जब इंदौर में रेडियो स्टेशन की स्थापना के बारे में मालूम हुआ तो वे उसे देखने के लिए वे मालवा हाऊस पहुंच गई। उस वक्त तक कार्यक्रम प्रसारण की तैयारी शुरु हो रही थी। प्रसारण नहीं। उन्हें देखकर दिल्ली से आए किसी अधिकारी ने पूछा कि आप रेडियो पर बोलना चाहेंगी। वे कुछ सोचती इसके पहले ही उन्हें एक लाईन लिखकर दी  “आपकी चाय में कितनी चीनी डालूं” और कहा कि इसे पूछने के लहजे में पढ़कर बताओ।

रणजीत जी ने भी उसी अंदाज़ में पढ़ दिया। अधिकारी को अच्छा लगा और इस तरह पता चला कि उनका ऑडिशन टेस्ट हो गया है और वे चाहें तो आकाशवाणी में काम कर सकती हैं। उन्होंने तुरंत हां कह दिया। रणजीत जी की पढ़ाई इंदौर के सेंट रफेल्स कान्वेंट स्कूल में हुई थी। घर में भी पिताजी और मां अंग्रेज़ी में ही बात करते थे, इसलिए उन्हें हिन्दी बहुत अच्छी नहीं आती थी। लेकिन उनका माइक्रोफोन पर आत्मविश्वास और आवाज़ का टेक्श्चर काफी प्रभावकारी था। इस तरह मप्र की पहली उद्घोषिका के रूप में रणजीत जी ने अनजाने में ही इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा दिया।

बचपन में पढ़ी गुरुमुखी से उन्हें हिन्दी सीखने में काफी मदद मिली,  लिखने में ज़रूर दिक्कत थी जिसे आकाशवाणी में रहकर उन्होंने दूर किया। यहां एक दिन उनसे कहा गया कि एक नाटक लिखना है छुट्टी विषय पर पंद्रह मिनिट की अवधि का। हिन्दी में  लिखना उनके लिए मुश्किल था। उन्होंने लिखा और वो नाटक श्रोताओं द्वारा काफी सराहा गया। इंदौर आकाशवाणी पर वर्षों तक उसे चलाया गया। शुरुआत में उन्हें आकाशवाणी से पारिश्रमिक के तौर पर कैजुअल अनाउंसर के लिए दस रुपए एक शिफ्ट के मिलते थे। कुछ समय बाद जब स्थाई नौकरी मिली तब सौ रुपए प्रति माह मिलने लगे।

आगरा विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में पूरे कला संकाय और विधि – दोनों में सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाली रणजीत जी शाॅर्ट हैंड और टाइपिंग भी जानती थी। वे कहती हैं उद्घोषक का काम किसी कार्यक्रम के माइक्रोफोन पर प्रस्तुति देने तक ही सीमित नहीं होता है बल्कि उसकी रूपरेखा बनाना, उस बारे में शोध करके प्रामाणिक जानकारी इकट्ठा करना आदि भी होता है। ये सब करने के बाद आकस्मिक परिस्थिति में यदि हम अपनी अतिरिक्त योग्यता का दोहन कर लें तो संकट मोचक के रूप में उभर कर आते हैं। वे एक किस्सा बताती हैं कि एक बार कपूरथला की महारानी आकाशवाणी आईं। उनका इंटरव्यू था और इसके लिए जैसा कि तय था, दस रुपए मानदेय दिया जाता था। चूंकि वे महारानी थी और उन्हें दस रुपए देना ठीक नहीं लगा। इसलिए एक पत्र तैयार करना था कि महारानी अपनी स्वेच्छा से ये रकम नहीं ले रही हैं। इस पत्र पर उनके हस्ताक्षर होने थे। उसी वक़्त मालूम हुआ कि टाइपिस्ट छुट्टी पर है। महारानी के पास इतना समय नहीं था कि टाइपिस्ट को बुलाया जाए, तब मैंने फटाफट शॉर्टहैंड में नोट्स लिए और पत्र टाइप कर दिया। यह देखकर स्टेशन डायरेक्टर बेहद प्रसन्न हुए।

इंदौर आकाशवाणी के असिस्टेंट स्टेशन डायरेक्टर प्रसिद्ध साहित्यकार करतार सिंह दुग्गल के समय में रणजीत जी को काफी कुछ सीखने को मिला। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, राजीव गांधी से लेकर पृथ्वीराज कपूर, पंडित रविशंकर जैसी अनेकों हस्तियों के साक्षात्कार लिए।

रणजीत जी के कुछ समय बाद ही और भी उद्घोषिकाएं रेडियो से जुड़ती गई। इन्दु आनन्द, माया श्रीवास्तव, कमला पांडे,सुदेश हिन्दुजा, निम्मी माथुर, देवेन्दर कौर मधु आदि महिलाओं के नाम तो लोगों जुबां पर आ गये। इन्दु आनन्द ने 1965 में आकाशवाणी इंदौर में बतौर उद्घोषक अपनी सेवाएं देना शुरू किया था। उनकी सुरीली आवाज से वे जल्दी ही लोकप्रिय हो गईं। उन्होंने आकाशवाणी के अनेक नाटकों में मुख्य भूमिका निभाई। संदीप श्रोत्रिय की लिखी, आकाशवाणी इंदौर की राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त प्रस्तुति “उस लड़की का नाम क्या है”, में इन्दु जी ने मुख्य किरदार बड़े प्रभावी ढंग से निभाया था।

इंदौर आकाशवाणी से प्रसारित शाम ए ग़ज़ल की लोकप्रियता देवेन्दर कौर मधु की बेहतरीन उर्दू अदायगी के कारण ही थी। मधु जी बताती है कि परिवार में माँ और पिताजी दोनों ही बहुत अच्छी उर्दू जानते थे इसलिए मुझे भी शेरों शायरी का शौक हो गया। यही वजह थी कि मैं शाम ए ग़ज़ल कार्यक्रम को इतने अच्छे से कर पाई। अपने चालीस साल के कार्यकाल में मधु जी ने विशेष श्रोताओं के कार्यक्रम जैसे ग्राम लक्ष्मी, खेती गृहस्थी, कुछ बातें कुछ गीत, मनभावन फरमाइशी गीत आदि के जरिए शहरी व दूरदराज के लोगों के दिलों दिमाग में जगह बना ली थी। वे कहती हैं उद्घोषक तो रेडियो की रीढ़ होते हैं। उन दिनों हम लोगों की एक सितारा ज़िंदगी हुआ करती थी।

उस दौर में किसी भी क्षेत्र की कोई नामचीन हस्ती इंदौर आती तो वो आकाशवाणी के मालवा हाउस ज़रूर आती थी। मन्ना डे, जगजीत सिंह, मन्नू भंडारी, नरेन्द्र शर्मा, जयदेव,गुलाम अली, नौशाद साहब ऐसे अनेक लोगों के साक्षात्कार देवेन्दर कौर मधु ने लिए। वे इससे जुड़ी एक घटना बताती हैं कि नौशाद साहब को लता मंगेशकर अवॉर्ड मिलना था। मैंने उनसे इंटरव्यू के दौरान पूछा कि लता जी को आपने बनाया है और आपको उनके नाम का अवार्ड दिया जा रहा है। इस पर उन्होंने कहा कई बार रचना रचनाकार से बड़ी हो जाती है। जैसे रामचरितमानस तुलसीदास जी बड़ी हो गई। इसलिए यह सम्मान मेरे लिए काफी महत्वपूर्ण है।

उद्घोषक के लिए उच्चारण का शुद्ध और साफ़ होना बहुत जरूरी है। देवेन्दर जी इस बारे में कहती हैं कि गृहस्थी को मैं ग्रहस्थी कहती थी जिसे हमारे साथी लोगों ने सुधारा। जबकि आजकल के युवाओं में वो बात नहीं है। अपनी सेवानिवृत्ति के पहले 2014 की बात बताते हुए कहती हैं कि उस वक्त एक उद्घोषक नया आया था वो आकाशवाणी का इंदौर स्टुडियो को आकाशवाणी का ‘इन्दोर श्टुडियो’ बोलता था। उसे मैंने इस बात के लिए उसे टोका तो उसने मेरी सलाह अनसुनी कर दी। बहरहाल देवेन्दर कौर मधु ने आकाशवाणी के माहौल को भरपूर जिया और अपनी सेवाएं बड़ी जिम्मेदारी और जिंदादिली के साथ दी। यही वजह थी कि टेलीविजन आने के बाद भी  रेडियो पर उनकी आवाज़ का जादू चलता रहा।

उसी दौर में निम्मी माथुर की आवाज़ का जादू भी सर चढ़कर बोलता था। चूंकि निम्मी जी को संगीत का काफी शौक था और शिक्षा भी संगीत और चित्रकला विषयों के साथ हुई तो आकाशवाणी के कार्यक्रम में भी उनकी प्रस्तुति शास्त्रीय संगीत के इर्द-गिर्द अधिक रही। उनका रागों पर आधारित एक कार्यक्रम था, जो काफ़ी प्रसिद्ध हुआ। लगभग बीस साल इंदौर आकाशवाणी में काम करने के बाद निम्मी माथुर विवाह के बाद मुम्बई में तबादला लेकर वहीं बस गईं। विवाह पश्चात उनका नाम निम्मी माथुर मिश्रा हो गया। उन्होंने पंद्रह साल से अधिक समय तक विविध भारती, मुंबई में काम किया। इस दौरान फिल्मी दुनिया से जुड़े कई सितारों के इंटरव्यू किए। निम्मी जी जब तक इंदौर केंद्र में रहीं, पत्रोत्तर कार्यक्रम किया और मुम्बई में भी पत्रावली कार्यक्रम की ज़िम्मेदारी निभाई। काम के प्रति लगन इतनी थी कि वे अधिक से अधिक पत्रों को पढ़ने और उनके उत्तर देने की भरसक कोशिश करतीं। उस वक़्त पत्रों की संख्या हजारों में होती थी। इतने सारे पत्रों में से पढ़कर चयन करना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य था।

वर्तमान में सुधा शर्मा, आकाशवाणी इंदौर में वरिष्ठ उद्घोषक के रूप में कार्य कर रही है। उनका कहना है कि विभिन्न जनसंचार माध्यमों के बीच रेडियो की उपादेयता को बनाए रखना बेशक बड़ा मुश्किल काम है लेकिन रेडियो आज भी सबसे सशक्त संचार माध्यम है। इसीलिए प्रधानमंत्री भी रेडियो के जरिए ही लोगों से रुबरु होते हैं। मन की बात ठेठ गांव तक सुनी जाती है। आज के भ्रामक समय में भी आकाशवाणी ही सही और पुख़्ता जानकारी मुहैया करा रहा है।

आकाशवाणी का भोपाल केंद्र नया मप्र बनने के साथ ही अस्तित्व में आया। नसरीन अहमद, परवीन कुरैशी, कांति वर्मा, कमला सक्सेना, मीनाक्षी वर्मा, लीला बावड़ेकर, मीनाक्षी मिश्रा, उर्वशी जोशी, सुषमा तिवारी, चित्रा भादुड़ी, पुष्पा तिवारी,जया आर्य, डाॅली मल्होत्रा, पापिया दास गुप्ता, अमिता त्रिवेदी, सावनी राजू जैसी आवाजों के दम पर आकाशवाणी भोपाल की मजबूत इमारत तैयार हुई।

भोपाल रेडियो स्टेशन पर परवीन कुरैशी ने अपने कार्यकाल में एक नायाब कार्यक्रम शुरू किया टेलीफोन पर फ़रमाइशी गाने सुनाने का। जो लोगों को रेडियो से जीवन्त जोड़ रहा था। इस कार्यक्रम ने भोपाल आकाशवाणी को सफलता के एक अलग मुकाम पर पहुंचाया।

जया आर्य तमिल भाषी होने के बाद भी हिन्दी की उत्कृष्ट उद्घोषिका रहीं। चूंकि पिता सेना में थे तो भारत के विभिन्न हिस्सों में उन्हें रहने का अवसर मिला। इस वजह से वे हिन्दी धाराप्रवाह बोल सकीं। पुणे में कुछ समय कैजुअल अनाउंसर का काम करने के बाद जया जी को मुंबई आकाशवाणी में सीनियर अनाउंसर की स्थाई नौकरी मिल गई।

आकाशवाणी मुम्बई में ही कार्यरत ज्ञान सिंह आर्य से विवाह के बाद जया डेविड से जया आर्य के रूप में लोगों के बीच जानी जाने लगीं। कुछ ही दिनों बाद पति का तबादला जगदलपुर में स्टेशन डायरेक्टर के पद पर हो गया तो जया जी भी पति के साथ जगदलपुर आकाशवाणी में आ गई। सात वर्ष जगदलपुर रहने के बाद दोनों का तबादला भोपाल हो गया और सेवानिवृत्ति तक भोपाल में ही रही। उनके फोन इन कार्यक्रम को लोगों ने बहुत पसंद किया। इसके अलावा जया आर्य ने मंचीय संचालन भी बड़ी कुशलता से किए। प्रख्यात उद्घोषिका होने के नाते उभरते हुए कई उद्घोषकों को निखारने का काम जया आर्य ने किया।

भोपाल आकाशवाणी के लिए पपिया दासगुप्ता भी जानी मानी हस्ती रही हैं। उनका योगदान नाटकों के माध्यम से उल्लेखनीय रहा। वे आकाशवाणी की ए ग्रेड कलाकार रही है। इन्होंने लगभग सौ नाटकों में अपनी आवाज़ दी है।

आकाशवाणी में समय की पाबंदी का काफी महत्व है। कहा जाता है कार्यक्रम अधिकारी लीला बावड़ेकर के कार्यकाल में समय से न पहुंचने पर एक प्रमुख राजनीतिक हस्ती को बगैर कार्यक्रम दिए ही लौटना पड़ा था। लीला बावड़ेकर आगे जाकर आकाशवाणी से डिप्टी डायरेक्टर जनरल के पद से सेवामुक्त हुईं। उर्वशी जोशी, मीनाक्षी मिश्रा, राजलक्ष्मी अय्यर का योगदान भी स्टेशन डायरेक्टर के रूप में उल्लेखनीय रहा। उर्वशी जोशी उड़िया फिल्मों में भी कार्य कर चुकी हैं।

कल्पना रत्नपारखे ने विज्ञान जैसे जटिल और बोझिल विषय को रोचक अंदाज में ढाला और विज्ञान पत्रिका कार्यक्रम को प्रस्तुत किया। इसे लोगों ने भरपूर सराहा। भोपाल रेडियो स्टेशन में कांति वर्मा के लिखे चिंतन को लोग सुनते और उस पर विचार करते थे। मीनाक्षी वर्मा के नाटक हवामहल में आते थे। जिन्हें की राष्ट्रीय रेडियो नाटक से पुरस्कृत किया गया।कार्यक्रम अधिकारी सुषमा तिवारी कार्यक्रम का प्रारूप बनाती थीं। कार्यक्रमों को कैसे बेहतर बनाया जाए, वे इसी कोशिश में रहती थीं।

विख्यात पटकथा लेखक उषा दीक्षित ने अपने करियर की शुरुआत भोपाल आकाशवाणी से ही की। उषा जी रेडियो के लिए नाट्य लेखन करने के साथ साथ कैजुअल अनाउंसर भी रही हैं। कई सारे लोकप्रिय धारावाहिक जैसे बालिका वधू आदि की पटकथा इन्होंने लिखी है। सोनी टीवी पर प्रसारित पुण्यश्लोक अहिल्या बाई के संवाद लेखन का कार्य उषा दिक्षीत द्वारा किया जा रहा है।

भोपाल स्टेशन से ममता चंद्राकर का भी नाता रहा है। उन्हें छत्तीसगढ़ की लता मंगेशकर कहा जाता है। लोक गायकी के लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान भी प्रदान किया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने लोक संगीत और कला में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ का कुलपति बनाया गया है। ममता चंद्राकर मोक्षदा चंद्राकर के नाम से भी जानी जाती हैं।

भोपाल रेडियो स्टेशन से प्रसारित प्रादेशिक समाचारों में पुष्पा तिवारी की आवाज को लोग आज भी याद करते हैं। पुष्पा जी प्रदेश में घटित प्रमुख घटनाओं को स्वयं समाचार के रूप में ढालती थीं और फिर उन्हें पढ़ती थीं। समाचारों के बाद वे रोज़गार समाचार भी पढ़ती थीं। इसे सुनने के लिए पढ़े लिखे बेरोजगार युवा समय से रेडियो शुरू कर देते थे और पूरे मोहल्ले में पुष्पा जी की आवाज सुनाई देती थी।

आजकल हिन्दी के राष्ट्रीय समाचारों में इंदौर की मनीषा व्यास खन्ना की आवाज पूरे भारत वर्ष में सुनाई देती है। बड़वाह में जन्मीं और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से जनसंचार में उपाधि लेने के बाद मनीषा जी ने दिल्ली का रुख़ किया। सन 1993-94 में जनसत्ता अखबार में इंटर्नशिप करने के बाद आकाशवाणी से जुड़ गईं। तभी से मनीषा व्यास खन्ना समाचार प्रभाग में समाचार वाचक एवं अनुवादक की ज़िम्मेदारी निभा रही हैं।

आकाशवाणी के समाचार प्रभाग में मप्र. के भोपाल, रीवा आदि केन्द्रों में नन्दिता मिश्र समाचार संवाददाता रही हैं। संवाददाता के रूप में कार्य करना, स्टूडियो में काम करने की तुलना में बेशक कठिन होता है। फील्ड में जाकर ख़बरों का संकलन करना होता है। नन्दिता जी दिल्ली में समाचार प्रभाग में हिन्दी व अंग्रेजी न्यूज़ में एडीटर के पद पर रहीं और सेवानिवृत्त हुईं।

अमिता त्रिवेदी भोपाल आकाशवाणी में वरिष्ठ उद्घोषक हैं। रेडियो के प्रसारण पर विस्तार से चर्चा करते हुए बताती हैं कि प्रसारण प्रक्रिया तीन स्तरों पर होती है। स्टूडियो जहां से कार्यक्रम रिले होते हैं। यहीं पर उद्घोषक और बाहर से बुलाए गए अतिथि या लोक कलाकार आदि होते हैं। दूसरा है ड्यूटी रूम, जहां ट्रांसमिशन एग्जीक्यूटिव होते हैं। उनकी ज़िम्मेदारी होती है कि कार्यक्रम में क्या जा रहा है। उसमें किसी तरह का व्यवधान तो नहीं आ रहा। तीसरा होता है कंट्रोल रूम। यहां एक इंजीनियर होता है, एक असिस्टेंट इंजीनियर और एक टेक्नीशियन होता है। ये कक्ष तमाम तकनीकी पहलुओं को देखता है। इन तीनों के समन्वय से ही कोई भी कार्यक्रम सुचारू रूप से प्रसारित हो पाता है।

जबलपुर आकाशवाणी में सुषमा गांगुली, माधवी भट्ट और नीलम मसंद की आवाज पुराने श्रोताओं को आज भी याद है।  फिलहाल वरिष्ठ उद्घोषक के पद पर कार्यरत  सावनी राजू इसके पूर्व भोपाल में थीं। यहां इन्होने एस एम एस गीत माला प्रोग्राम शुरू किया था। इसमें श्रोता एस एम एस के जरिए गीत की फरमाइश भेजते और उन्हें तत्काल उनकी पसंद का गाना सुना दिया जाता, यह कार्यक्रम आज भी जारी है। सावनी राजू केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जागरूक करने वाले कार्यक्रम ‘जमुनिया’ की नरेटर रही हैं। ये कार्यक्रम राष्ट्रीय चैनल के साथ साथ प्रदेश के सभी केंद्रों से प्रसारित हुआ था।

तूलिका शर्मा ग्वालियर आकाशवाणी में वरिष्ठ उद्घोषक के पद पर लगभग 23 साल से कार्यरत हैं। इनका मानना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रेडियो की महत्ता आज भी बनी हुई है। गांवों से काफी मात्रा में पत्रों के आने का सिलसिला बना हुआ है। इससे जाहिर है कि ग्रामीण अंचल में रेडियो के लिए दीवानगी अभी भी है।

ग्वालियर आकाशवाणी की वरिष्ठ उद्घोषिका कल्पना प्रदीप कहती हैं कि कोरोनाकाल में हमने संस्थान से जुड़े अनेक लोगों को खोया है और इसका बेहद दुःख है, लेकिन ग्वालियर आकाशवाणी के एक सुधी और नियमित श्रोता की मृत्यु के समाचार ने पूरी ग्वालियर आकाशवाणी को ग़मगीन कर दिया। वे कहती हैं कि श्रोताओं से ही हम हैं इसलिए इस संक्रमण कॉल में हमने सेहत और मनोरंजन का विशेष ध्यान रखा। चिकित्सकों एवं जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों से श्रोताओं का संवाद करवाते रहे। कोरोना कर्फ्यू के कारण डाक व्यवस्था प्रभावित होने से पत्र नहीं आ पा रहे थे तो नियमित श्रोताओं के नंबर को खोजा और व्यक्तिगत संपर्क करके उनकी पसंद के अनुसार नग़में सुनाकर उनके मनोरंजन का ख्याल रखा।

रीवा आकाशवाणी की शुरुआत 1977 में हुई थी। इस स्टेशन की ख़ास बात यह रही कि एक समय यहां काम करने वालों में महिलाओं का वर्चस्व था। स्टेशन  डायरेक्टर लीला बावड़ेकर की पहली पदस्थापना रीवा में  ही हुई थी। उस वक्त चार उद्घोषकों में तीन महिलाएं थीं। तनुजा मित्रा, आशा पंड्या, रेखा श्रीवास्तव। आकाशवाणी संवाददाता के रूप में नंदिता मिश्रा थीं।

आशा पंड्या और तनुजा मित्रा ने एक अभिनव कार्यक्रम तैयार किया था। जिसका नाम था ‘औरत होने का अर्थ’। जिसे रीवा की ही श्रीमती विनोद तिवारी ने लिखा था। इसमें इन्होंने वेश्याओं, बलात्कार पीड़िता, जेल में बंद महिलाओं, परित्यक्ताओं आदि से लेकर सार्वजनिक जीवन में सफल महिलाओं तक के साक्षात्कार किए एवं नाट्य रूपांतरण किया गया था। इसकी प्रभावकारी प्रस्तुति आशा पंड्या की थी। रीवा आकाशवाणी से इसका प्रसारण हुआ और वो सर्वाधिक सफल रहा। इस कार्यक्रम को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। आशा पंड्या आकाशवाणी रीवा में उसके शुरुआती दौर से ही जुड़ी थीं। आशा जी ने बताया कि उस समय आकाशवाणी का नेटवर्क इतना सशक्त हुआ करता था कि गुमशुदा लोगों का अनाउंसमेंट होता था और लोग मिल जाया करते थे।

इसके शुरुआती समय से ही शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय में संस्कृत की प्राध्यापक रही डॉ प्रतिभा जैन जुड़ गईं थीं। प्रारंभ में इन्होंने आकाशवाणी के लिए संस्कृत नाटकों का हिंदी रूपांतरण किया। कालिदास के कुमार संभव नाटक का सबसे पहले हिन्दी रुपांतरण प्रतिभा जैन ने ही किया। जिसे बाद में विविध भारती की विदेश सेवा से भी प्रसारित किया जाता रहा है। इसके अलावा मेघदूत को सरल हिन्दी में लिखने का अत्यंत चुनौती भरा काम भी किया। इन्होंने बुद्ध, महावीर, इंदिरा गांधी आदि पर अनेक रूपक लिखे। नाटकों में अभिनय भी किया और आकाशवाणी की बी ग्रेड कलाकार का दर्जा हासिल किया।

रीवा में 2007 से कार्यरत कैजुअल अनाउंसर सरगम बताती हैं कि अब रीवा में स्थाई अनाउंसर कोई भी नहीं है। कैजुअल अनाउंसर ही स्टेशन संभाल रहे हैं। इन्हें माह में छह दिन अवसर दिया जाता है। लम्बे समय से स्थायी उद्घोषक की नियुक्ति बंद कर दी गई है। जो सेवानिवृत्त हो रहे हैं उनके स्थान पर भी अस्थाई उद्घोषक ही रखे जा रहे हैं। सरकार तक हमारी दिक्कतों को पहुंचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर संगठन भी बनाया गया है।लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई विशेष काम नहीं हुआ है।

आकाशवाणी में उद्घोषक से इतर यदि महिलाओं की बात करें तो बेशक ये संख्या काफी कम है। इसके लिए दोष सिस्टम का नहीं है बल्कि महिलाओं का प्रतियोगी परीक्षाओं में हिस्सा न लेना है। स्टेशन डायरेक्टर, असिस्टेंट स्टेशन डायरेक्टर, अभियंताओं का चयन संघ लोकसेवा आयोग कर्मचारी चयन आयोग परीक्षाओं के आधार पर होता है। इसकी जानकारी न होने पर बहुत कम लड़कियां इस परीक्षा में भाग लेती हैं।

संघ लोकसेवा आयोग से चयनित होकर इंदौर आकाशवाणी में केंद्र निदेशक रहीं गीता मरकाम भोपाल, जबलपुर, खंडवा, रायपुर, रीवा आदि जगहों पर भी कार्य कर चुकी हैं। डिंडोरी जिले के बहुत छोटे से गांव में जन्मी गीता जी की प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव में ही हुई। उसके बाद डिंडोरी के वनवासी छात्रावास में हाई स्कूल तक पढ़ाई की। उच्च शिक्षा इंदौर के कस्तूरबा ग्राम ग्रामीण संस्थान से प्राप्त की। राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर करने के बाद संघ लोक सेवा आयोग के जरिए स्टेशन डायरेक्टर के पद पर नियुक्त हुई। गीता जी लोक गायकी से जुड़ी होने के कारण जहां जहां भी रही वहां के गांवों में जाकर छुपी हुई लोक गायन की प्रतिभाओं को आकाशवाणी तक लाती थी और उन्हें अवसर देती थी। गीता जी के पति बाबूराम मरकाम आकाशवाणी में प्रादेशिक समाचार वाचक रहे हैं। सन 2013 में दूरदर्शन के उप महानिदेशक के पद से गीता मरकाम सेवानिवृत्त हुईं।

छतरपुर आकाशवाणी में इंद्रा मिश्रा स्टेशन डायरेक्टर के पद पर रहीं। यहीं ट्रांसमिशन एक्जीक्यूटिव के रूप में कमलेश मिश्रा जो विवाह के बाद कमलेश पाठक के रूप में जानी गईं, ने बताया उस वक्त बुन्देलखंड के इस इलाके में डाकुओं का बोलबाला था। एक किस्सा बताती हैं कि एक दिन मेरी ड्यूटी में फरमाइशी फ़िल्मी गीतों के दौरान रात 10.30 बजे फोन आया. अत्यंत सम्मानजनक ढंग से उन्होंने कहा मैं  दावजू  बोल रहा हूं। बिन्नू ज़रा एक गाना सुनुवा दें ‘मार दिया जाए कि छोड़ दिया जाए’ एक सेकंड के लिए मेरी सांस ऊपर के ऊपर रह गई क्योंकि दावजू का मतलब था बुन्देलखंड के सबसे बड़े और खतरनाक डाकू, लेकिन मैंने लाइब्रेरी खोलकर उनका फरमाइशी गीत सुनाया। उन्होंने कहा कि मेरे 38 बरस के ब्रॉडकास्टिंग करियर में चुनौतियां जरूर रही, लेकिन असुरक्षा कभी नहीं रही। कमलेश जी कहती हैं कि दरअसल आकाशवाणी ने हमें सस्ते साहित्य से सत्साहित्य को पढ़ने का सलीका और तमीज़ सिखाई। भाषा की शुद्धता और शुचिता के साथ कार्यक्रमों को प्रस्तुत किया जाना आकाशवाणी की प्राथमिकता थी। रेडियो की दुनिया में महिलाओं की उपस्थिति शुरू से ही काफी उत्साहजनक रही क्योंकि यहां का माहौल हमेशा से ही स्वस्थ रहा है।  किसी तरह का दुर्व्यवहार महिलाओं के साथ नहीं हुआ है। लेकिन दुर्भाग्यवश शहडोल आकाशवाणी में तत्कालीन स्टेशन डायरेक्टर द्वारा गलत हरकतें करने की शिकायतें महिला कर्मियों द्वारा की गई। इस घटना को राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी संज्ञान में लिया था।

रेडियो का एक जाना-माना चैनल विविध भारती है। इसका प्रसारण 3 अक्टूबर 1957 में महान कवि, गीतकार और प्रशासक नरेन्द्र शर्मा की अगुवाई में किया गया था। विशुद्ध रूप से मनोरंजक कार्यक्रमों के लिए यह चैनल बनाया गया था। इस चैनल की लोकप्रियता बहुत जल्दी ही देश में तो हो ही गई थी साथ ही सरहद के पार भी इसे काफी सुना जाने लगा। इसी लोकप्रियता को देखते हुए 1966 में इसे विज्ञापन सेवा में तब्दील कर दिया गया। आज के समय में अनेक प्राइवेट एफ़ एम चैनलों के आने के बाद भी विविध भारती की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। भोपाल रेडियो स्टेशन में कार्य कर चुकी रेखा श्रीवास्तव का नाम इसलिए लिया जाता है कि उन्होंने भोपाल स्टेशन के रोचक कार्यक्रमों के कारण सर्वाधिक राजस्व अर्जित किया था।

मप्र से ताल्लुक रखने वाली कई उद्घोषिकाएं विविध भारती, मुंबई में अपनी आवाज़ का जादू बिखेर रही हैं। छतरपुर की कमलेश पाठक ने मुंबई विविध भारती में रेडियो प्रोग्रामर और प्रस्तुतकर्ता के रूप में अनेक वर्षों तक अपनी सेवाएं दीं। इस दौरान विविध भारती के विभिन्न हिस्सों में भागीदारी की। देशभर में सूना जाने वाला बेहद लोकप्रिय कार्यक्रम महिलाओं के लिए महिलाओं द्वारा बुना गया सखी सहेली की प्रस्तुतकर्ता भी कमलेश पाठक रही हैं।

इंदौर आकाशवाणी से मुंबई विविध भारती गई निम्मी माथुर मिश्रा ने भी अपनी आवाज के जादू से लोगों के अपना बनाया।  शहडोल की शहनाज़ अख्तरी रीवा और जबलपुर आकाशवाणी में काम करने के बाद मुंबई विविध भारती में कार्यरत हैं। दमोह जिले में हटा तहसील की रहने वाली विधि प्रवीण जैन आकस्मिक उद्घोषिका के रूप में विविध भारती मुंबई में विभिन्न कार्यक्रमों में केजुअल अनाउंसर के रूप में सेवाएं दे रही हैं।

जबलपुर शहर की बहू और आवाज़ के जादूगर युनूस ख़ान की पत्नी ममता सिंह सखी सहेली कार्यक्रम के जरिए लोगों में गहरी पैठ बना चुकी हैं। प्रयागराज से नैमित्तिक उद्घोषक के रूप में आकाशवाणी से जुड़ने के बाद विविध भारती, मुंबई तक ममता सिंह की यात्रा काफी सफल रही है। उनका सखी – सहेली कार्यक्रम मील का पत्थर साबित हुआ है। उन्हें आकाशवाणी की सर्वश्रेष्ठ उद्घोषिका का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। ममता जी एक बेहतरीन कहानीकार भी हैं, अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके कहानी संग्रह ‘राग मारवा’ पुस्तक  को मप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी पुरस्कार प्राप्त हुआ है। इसी पुस्तक पर महाराष्ट्र सरकार से प्रेमचंद सम्मान भी उन्हें मिला है।

दमोह जिले में हटा तहसील की रहने वाली विधि प्रवीण जैन आकस्मिक उद्घोषिका के रूप में विविध भारती मुंबई में सफलतापूर्वक अपनी सेवाएं दे रही हैं। देवास में जन्मी एकता बक्षी कानूनगो ने आकाशवाणी इंदौर से उद्घोषिका की शुरुआत  2011 में की। वे 2013 में मुंबई चली गईं और यहां विविध भारती में जयमाला, हिट सुपरहिट, गाने ने जमाने के जैसे कार्यक्रमों को स्वतंत्र रूप से प्रस्तुत किया। 2014 में एकता ने आकाशवाणी के हैदराबाद केंद्र से रेनबो चैनल में गीत गाता चल, रेट्रो अवर और दिल की बात जैसे फोन इन कार्यक्रम संचालित किए। यहां तीन वर्ष तक एकता जी ने अपनी सेवाएं दी। वर्तमान में वे पुणे आकाशवाणी केंद्र में कार्यरत हैं। बहुत कम उम्र में एकता ने साहित्य जगत में अपने आपको स्थापित कर लिया है। वे अच्छी कवयित्री तो हैं ही, गद्यकार भी हैं। उन्हें मप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन का पुनर्नवा पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

अंत में, यह उल्लेख करना समीचीन होगा कि आकाशवाणी में मध्यप्रदेश की किसी महिला का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान रहा है तो वे हैं डॉ सुमति मुटाटकर। बालाघाट में जन्मी इस विदुषी ने 1953 में तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री बी वी केसकर के आग्रह पर आकाशवाणी मुख्यालय में कार्यक्रम निदेशक (संगीत) का पद संभाला और अगले तीन साल तक अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने एक संपूर्ण नए विभाग “ केन्द्रीय संगीत एकांश ” की स्थापना की जिसे देश भर के संगीत के कलाकारों के ऑडिशन, अखिल भारतीय संगीत के कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने तथा संगीत के कार्यक्रम सम्बन्धी नीति निर्धारण का काम सौंपा गया। इसके साथ ही सन 1954 में सालाना रेडियो संगीत सम्मेलन के कार्यक्रम की शुरुआत भी हुई, जिसकी परिकल्पना में सुमति जी की सक्रिय भूमिका रही। इस के बाद 1956 से 58 तक सुमति जी ने डिप्टी चीफ़ प्रोड्यूसर का पद सम्हाला, लेकिन फिर घरेलू ज़िम्मेदारियों के कारण उन्हें आकाशवाणी से विदा लेनी पड़ी। इसके बाद उन्हें 1965 से 1968 तक फिर एक मौका मिला, जिसका सदुपयोग उन्होंने आकाशवाणी संग्रहालय को स्थापित करने में किया।

लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं। 

© मीडियाटिक

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