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• हरदा के किसान की बेटी ने फूलों से जूस बनाकर छह महीने में कमाए 7 लाख
हरदा। आमतौर पर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़-लिख कर किसी अच्छी कंपनी में नौकरी करें, लेकिन मध्यप्रदेश के हरदा के एक किसान की बेटी अर्चना नागर (39) ने कॉमर्स से ग्रेजुएशन और राजनीति में मास्टर्स करने के बाद खेती का काम चुना। लेकिन अर्चना को पारंपरिक खेती से कुछ अलग करना था, तो उन्होंने फूलों की खेती करने का निश्चय किया। अपने इस काम में उन्होंने अपनी मां निर्मला देवी को साथ लिया और फूलों की खेती कर रोजले के फूलों से जूस बनाया, जो भारत का ऐसा पहला सेहतमंद पेय (एनर्जी ड्रिंक) था, जिसमें फूलों का इस्तेमाल हुआ।
अर्चना की मेहनत और इसी जुनून ने उन्हें मात्र छह माह में ही ग्लोबल समिट में तक पहुंचा दिया। खेती में नवाचार के लिए उनका चयन इंदौर में 8 से 12 जनवरी तक होने वाली ग्लोबल समिट के लिए हुआ है। यहां देश के विभिन्न राज्यों से आए युवा उद्यमियों द्वारा उत्पादों को रखा जाएगा। 5 दिन तक चलने वाले इस आयोजन में मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री सहित देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दो दिन शामिल होंगे।
खेत से लेकर ग्लोबल समिट तक का सफर...
अर्चना बताती हैं ‘मैं खेती को लाभ का सौदा बनाकर ऐसा काम करना चाहती थी, जिसमें मेहनत-लागत कम लगे और मुनाफ़ा ज्यादा हो। 5 साल पहले शहर में ऑस्ट्रेलिया बेस्ड कंपनी आई थी। उन्होंने हमें एक फूल के बारे में बताया और कहा कि आप हमारे लिए रोजले के फूल की खेती करो। उन्होंने इसके बीज दिए, लेकिन विदेशी फूल होने की वजह से ये हरदा में उग नहीं पाए। 2 साल तक तो हमें समझ भी नहीं आया कि कैसे इसे उगाया जाए। 2 साल तो हमें नुकसान ही हुआ, लेकिन हमने हार नहीं मानी।‘
लॉकडाउन में आया जूस बनाने का आइडिया
2 साल तक नुकसान झेलते हुए उन्होंने मां के साथ मिलकर इंटरनेट पर काफी शोध किया, विशेषज्ञों से बात की और खेतों में अलग तकनीक से काम करना शुरू किया। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और तीसरे साल खेत लाल रंग के फूलों से लहलहाने लगे। फिर कोरोना आ गया। लॉकडाउन लग गया। फूलों को ऑस्ट्रेलिया भी नहीं भेज सकते थे। अर्चना थोड़ी मायूस जरुर हुई लेकिन उन्होंने विचार किया कि इन फूलों से और क्या-क्या कर सकते हैं। उनका ज्यादातर समय शोध में ही जाता था, समय बीतता चला गया। अर्चना ने फूलों का जूस बनाकर घर में परिवार के साथ ही पीना शुरू किया। फूल का जूस पीकर उनकी मम्मी की शुगर नियंत्रित हो गई। बस फिर क्या था यह पता लगते ही कि कोरोना में यह फूल सेहत बनाने में भी मददगार है, अर्चना ने इसका ड्रिंक बनाकर बेचने की ठानी।
फूलों की पत्तियों को सुखाकर बनता है पाउडर
अर्चना ने बताया, जब फूल तैयार हो जाते हैं, तब इसे कटर से काटते हैं। फूल हाथ से नहीं टूटते। हमने फूल सुखाने के लिए खेत में ही जगह बनाई। पत्तियों को कंपनी में ले जाते हैं। यहां दोबारा इसे सुखाया जाता है। इसके बाद फूलों का पाउडर बनता है। पाउडर को पैक कर बाहर भेज देते हैं। पाउडर में कई फ्लेवर्स हैं। दालचीनी, जिंजर, लेमन ग्रास, लौंग और इलायची। इन्हें भी हम खेत में उगाते हैं। सुखाने के बाद पाउडर बनाकर फूलों के पाउडर में मिलाते हैं। जूस में चीनी के बजाय मिश्री का इस्तेमाल किया जाता है।
अर्चना बताती हैं- हमने जूस के 1 लाख पाउच बनाये हैं। पाउच की कीमत 10 रूपये है। इस हिसाब से कुल 10 लाख के उत्पाद हमने तैयार किये। अब तक हम 7 लाख के पाउच बेच चुके हैं।
गांव की महिलाओं को मिला रोजगार
गांवों में महिलाओं को परिवार के भरण-पोषण का संकट रहता है। अर्चना ने गांव की महिलाओं को फूलों की खेती करने, उन्हें तोड़ने और पाउडर बनाने की प्रक्रिया में शामिल किया। वे करीब 40 से 50 महिलाओं को साल भर रोजगार देने में मदद कर रही हैं।
मार्केट में उपलब्ध है उत्पाद
अर्चना बताती हैं ‘हम ऑनलाइन-ऑफलाइन हर तरीके से जूस बेचते हैं। सेज जूस अभी अमेजन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है। आने वाले दिनों में जियो मार्ट, बिग बास्केट समेत अन्य प्लेटफॉर्म पर उत्पाद लाएंगे। ऑफलाइन के लिए डिस्ट्रीब्यूटर्स बनाए हैं, जो मध्यप्रदेश में विक्रय करते हैं। उत्तराखंड और महाराष्ट्र में भी डिस्ट्रीब्यूटर्स बनाए हैं। इसके अलावा भोपाल, इंदौर समेत अन्य बड़े शहरों के बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के माध्यम से पाउडर बेच रहे हैं।‘
संदर्भ स्रोत – दैनिक भास्कर
संपादन – मीडियाटिक डेस्क
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