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• सुप्रीम कोर्ट ने जारी की नई गाइडलाइन
• कानूनी शब्दावली से हटेंगे लैंगिक असमानता दर्शाने वाले 43 शब्द
देश की अदालतों में अब ऐसे लिंग सम्बन्धी शब्दों का इस्तेमाल नहीं होगा, जो महिलाओं के लिए आपत्तिजनक साबित होते हैं। न तो ऐसे शब्दों के जरिये दलीलें दी जाएंगी और न ही इनका इस्तेमाल जज अपने फैसले में कर पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने लैंगिक भेदभाव और असमानता को दर्शाने वाले शब्दों के इस्तेमाल से बचने के लिए ‘हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर रूढ़िवादिता’ नाम से एक जारी की, जिसमें लैंगिक असमानता और महिलाओं की पहचान को बताने के लिए इस्तेमाल होने वाले 43 शब्दों को बंद करने का सुझाव दिया गया है। इसके जगह पर नए शब्द भी सुझाए गए हैं। नए हैंडबुक के तहत अविवाहित मां, रखैल, वेश्या जैसे शब्द अब नहीं प्रयोग किए जाएंगे। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने इस हैंडबुक को जारी करते हुए कहा कि यह हैंडबुक महिलाओं के लिए रुढ़िवादी नजरिए पर विराम लगाती है। इससे जजों और वकीलों को अपने फैसलों और दलीलों में लिंग संबंधी अनुचित शब्दों के इस्तेमाल से बचाव में मदद मिलेगी।
इन शब्दों के इस्तेमाल पर लगाई पाबंदी
सुप्रीम कोर्ट ने लैंगिक भेदभाव या असमानता दर्शाने वाले शब्दों के इस्तेमाल करने से बचने के लिए एक हैंडबुक लॉन्च किया है। इसके तहत कई शब्दों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई गई है। छेड़छाड़, उत्तेजक कपड़े, रखैल, आश्रित महिला जैसे शब्द जल्द ही कानूनी शब्दावली में प्रयोग होना बंद हो जाएंगे। इसके अलावा, बिना शादी के होने वाले बच्चों के लिए अंग्रेजी में बास्टर्ड शब्द का इस्तेमाल किया जाता रहा है। अनवेड मदर या अविवाहित मां जैसे शब्द भी अब तक कानूनी शब्दावली में इस्तेमाल होते रहे हैं। इन शब्दों को भी नई हैंडबुक में हटा दिया गया है और इसके स्थान पर अविवावहित माता-पिता के बच्चे और मां शब्द के इस्तेमाल का आदेश दिया गया है।
कई शब्दों को बदला गया
इस हैंडबुक में कई शब्दों को बदला गया है। जैसे इनमें बिन ब्याही मां की जगह सिर्फ मां, वेश्या की जगह यौनकर्मी, अफेयर की जगह शादी से इतर रिश्ता, छेड़छाड़ की जगह सड़क पर यौन उत्पीड़न जैसे शब्दों का इस्तेमाल होगा।
प्रचलित शब्दों के इस्तेमाल से नुकसान
30 पेज के इस हैंडबुक में यह भी बताया गया है कि प्रचलित शब्द गलत क्यों हैं और वे कानून को और कैसे बिगाड़ सकते हैं। हैंडबुक लॉन्च करते समय चीफ जस्टिस ने कहा कि इसे तैयार करने का मकसद किसी फैसले की आलोचना करना या संदेह करना नहीं , बल्कि यह बताना है कि अनजाने में कैसे रूढ़िवादिया की परंपरा चली आ रही है। अदालत का उद्देश्य यह बताना है कि रुढ़िवादिता क्या है और इससे क्या नुकसान है।
क्यों जरूरत पड़ी इन शब्दों को बदलने की
साल 2021 में अपर्णा भट्ट बनाम स्टेट ऑफ मध्य प्रदेश केस में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लैंगिक भेदभाव वाले शब्दों के इस्तेमाल पर नसीहत दी थी। ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया था कि अदालती कार्रवाई में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए जो महिलाओं के लिए रुढ़िवादी नजरिए को बढ़ाता हो। कई नारीवादी संगठनों और व्यक्तिगत तौर पर भी कई बार बास्टर्ड, मिस्ट्रेस जैसे शब्दों के इस्तेमाल पर रोक के आशय से पीआईएल देश की अलग-अलग अदालतों में दाखिल किए गए थे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की ओर से नई हैंडबुक जारी की गई है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आशय
देश की कानूनी शब्दावली को लेकर पिछले कुछ वक्त में काफी बदलाव आए हैं। निर्भया केस के बाद पूरे देश में बड़े पैमाने पर औरतों पर होने वाले अत्याचार और शारीरिक हिंसा की बहस उठी थी। इसके बाद भी कई बड़े बदलाव किए गए थे। नए कानून के अनुसार किसी महिला को गलत तरीके छूना, उससे छेड़छाड़ करना और अन्य किसी भी तरीके से यौन शोषण करना भी रेप में शामिल कर दिया गया। साथ ही बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा के लिए एक नया कानून भी वजूद में आया, जिसका नाम है पॉक्सो एक्ट। सुप्रीम कोर्ट ने अब महिलाओं के लिए इस्तेमाल होने वाले रुढ़िवादी नजरिए और लैंगिक भेदभाव की जगह पर एक तटस्थ और ज्यादा संवेदनशील शब्दों की सूची तैयार की है।
सूची में शामिल कुछ शब्द इस प्रकार हैं —
व्यभिचारिणी : विवाहेतर संबंध बनाने वाली महिला
प्रेम संबंध : विवाह से बाहर संबंध
बाल वेश्या: जिस बच्चे-बच्ची की तस्करी की गई है
रखैल: एक महिला, जिसके साथ एक पुरुष का विवाहेतर यौन संबंध है
फब्तियां कसना: गलियों में किया जाने वाला यौन उत्पीड़न
जबरन बलात्कार: बलात्कार
देहव्यापार करने वाली (हार्लट) : महिला
वेश्या (हूकर): यौन कर्मी
भारतीय महिला/पाश्चात्य महिला : महिला
विवाह करने योग्य उम्र: एक महिला जो विवाह के लिए जरूरी आयु की हो गई है
उत्तेजित करने वाले कपड़े/परिधान : कपड़े/परिधान
पीड़ित या पीड़िता : यौन हिंसा प्रभावित
ट्रांससेक्सुअल : ट्रांसजेंडर
बिन ब्याही मां : मां
संदर्भ स्रोत: डीएनए इंडिया डॉट कॉम
संपादन: मीडियाटिक डेस्क
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