छाया : देशबंधु
•रुपेश गुप्ता
भोपाल। ‘जहां चाह, वहां राह ’ इस कहावत को चरितार्थ किया है, रातीबड़ क्षेत्र के एक छोटे से गांव की एक दर्जन महिलाओं ने। ये महिलाएं अपना घरेलू काम करने के साथ ही बड़ी-पापड़ बनाने से लेकर बेचने का काम भी कर रही हैं। इस काम से ये महिलाएं न सिर्फ परिवार के भरण पोषण में भागीदारी निभा रही हैं, बल्कि स्वयं की आर्थिक स्थिति भी मजबूत कर रही हैं।
राजधानी भोपाल के रातीबड़ क्षेत्र से सटे छोटे से गांव सेवली की करीब एक दर्जन महिलाएं पहले अपने घरेलू काम तक ही सीमित थीं, लेकिन वर्ष 2019 में समाजसेविका पूजा सिंह परमार ने इन्हें स्वरोजगार कर आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया। पहले तो यह महिलाएं अपनी आर्थिक स्थिति को देख रोजगार के लिए तैयार नहीं हुई, लेकिन पूजा सिंह ने इन्हें आर्थिक मदद दिलाने के आश्वासन के साथ ही इनमें अपने घरों के लिए बनाए जानी वाली मूंग की बड़ी और पापड़ में निपुणता को देखते हुए इसका ही कारोबार करने के लिए प्रोत्साहित भी किया तो ये महिलाएं इसके लिए तैयार हो गई। अब ये महिलाएं सुबह 10 बजे तक अपने घर में चूल्हा-चौका के काम से निपटने के बाद गांव में ही बने एक सामुदायिक भवन में पहुंच जाती हैं और यहां शाम 5 बजे तक बड़ी-पापड़ बनाने के साथ ही सुखाने का काम करती हैं। सूखने पर उन्हें पैक करती हैं और फिर आसपास के क्षेत्रों में बेचने भी जाती हैं। कुछ समय में ही यह काम पटरी पर आने से इन महिलाओं का उत्साह बढ़ गया था, लेकिन कोरोनाकाल में लॉकडाउन के चलते इन्हें काम बंद करना पड़ा। हालांकि करीब एक साल पहले इन्होंने यह काम पुन: शुरु कर दिया है और वर्तमान में काम पूरी तरह चल निकला है। इससे इन महिलाओं के चेहरे पर खुशी है कि वे अपने साथ-साथ परिवार की भी स्थिति को संवार रही हैं।
बड़ी-पापड़ के इस स्वरोजगार से जुड़ी सरिता, लीला, रीना, रामवती, राजकुमारी सहित अन्य महिलाएं बताती हैं कि पहले वे अपने घरेलू काम-काज तक ही सीमित थीं और आर्थिक तंगी से जूझती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब वे बारी-बारी से बड़ी व पापड़ बनाती हैं, छत पर सुखाकर पैक करती हैं और फिर रातीबड़, नीलबड़, कोलार और फंदा तक के क्षेत्रों की दुकानों पर बेचने जाती हैं। बेचने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग दिन तय किए हैं। इनका कहना है कि सर्दी व बारिश में तो यह काम मंदा रहता है, लेकिन गर्मी में काफी होता है। इस काम से घर खर्च में मदद के साथ ही स्वयं की बचत लायक आमदानी हो जाती है। इसके साथ ही इन्हें इस बात की खुशी है कि इनके बड़ी-पापड़ का स्वाद लोगों को भा रहा है।
जल्द आएगी मशीन, फिर बनेंगे अधिक पापड़
समाजसेविका पूजा सिंह परमार ने बताया कि महिलाओं को जल्द ही बड़ी व पापड़ बनाने वाली मशीन नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाएगी। यह मशीन 15 से 50 हजार तक आ रही हैं, जो इस महीने के अंत तक आ जाएगी। इससे महिलाएं अधिक मात्रा में बड़ी व पापड़ बना सकेंगी। इससे उनकी आमदनी बढ़ेगी।
संदर्भ स्रोत - देशबन्धु
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