इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक जीवन में छोटी-छोटी बातों पर आवेश में दर्ज कराए जा रहे आपराधिक मुकदमों से विवाह संस्था कमजोर पड़ रही है। बिना विचार-विमर्श के दर्ज कराई जा रही शिकायतें न केवल शिकायतकर्ता और आरोपी बल्कि उनके निकट संबंधियों के लिए भी असहनीय पीड़ा का कारण बनती हैं। सहारनपुर से संबंधित मामले की सुनवाई के दाैरान न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान की पीठ ने उक्त टिप्पणी की।
सहारनपुर निवासी शारिक मियां और तीन अन्य पर महिला थाने में दहेज उत्पीड़न सहित विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज है। शिकायतकर्ता ने पति, ननद और भौजाई को आरोपी बनाया है। सभी आरोपियों की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमे की संपूर्ण कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए अर्जी दाखिल की गई। साथ ही अदालत में व्यक्तिगत उपस्थिति माफ करने की भी मांग की गई।
विवाद की प्रकृति को देखते हुए कोर्ट ने मुकदमा रद्द करने से इन्कार करते हुए निर्देश दिया कि यदि आवेदकों की ओर से ट्रायल कोर्ट में व्यक्तिगत उपस्थिति को माफ करने का आवेदन दायर किया जाता है तो संबंधित अदालत आवेदकों की व्यक्तिगत उपस्थिति को माफ कर दे और उन्हें वकील के माध्यम से उपस्थित होने की अनुमति दे।
कोर्ट की टिप्पणी
विवाह एक सामाजिक संस्था है जो व्यक्तियों को पारिवारिक जीवन में बांधती है। साथ ही नैतिक, सामाजिक व कानूनी दायित्वों को जन्म देती है। कभी-कभी पति-पत्नी और उनके परिवार के सदस्यों के बीच उत्पन्न वैमनस्य से वैवाहिक विवाद बढ़ जाते हैं। इसके चलते आपराधिक आरोप लगाए जाते हैं।
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