भोपाल। “बेटी हुई है, बेटे की उम्मीद थी…” — यही वो शब्द थे, जिनके बाद एक महिला को अपनी नवजात बच्ची के साथ दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर होना पड़ा। गोविंदपुरा ए-सेक्टर की रहने वाली राहिला खुलदेवरी ने 20 महीने की बच्ची को गोद में लेकर इंसाफ की लड़ाई शुरू की थी। 12 साल के लंबे संघर्ष के बाद अब न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी शोभना गौतम की कोर्ट ने मां-बेटी को न्याय दिया है।
शादी के बाद शुरू हुई प्रताड़ना
राहिला की शादी 1 मई 2011 को मंजूर आलम से हुई थी। कुछ ही महीनों में ससुराल वालों का असली चेहरा सामने आ गया। दहेज की मांगें, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना और बेटी के जन्म के बाद घर से निकाल देना। 16 मार्च 2012 को राहिला ने बेटी सारा आलम को जन्म दिया, लेकिन बेटी की खबर सुनते ही पति और ससुरालवालों का रवैया पूरी तरह बदल गया। कोई भी अस्पताल नहीं पहुंचा। मजबूरन वह अपनी नवजात को लेकर पिता के घर चली गई।
बेटी पैदा की है, खर्च नहीं उठाएंगे
छह महीने बाद जब वह ससुराल लौटी तो उसे गालियां दी गईं, मारा-पीटा गया और यह कहकर निकाल दिया गया कि “बेटी को जन्म दिया है, अब उसका खर्च खुद उठाओ।” राहिला ने कोर्ट में बताया कि शादी के बाद से ही ससुराल वाले कम दहेज लाने का ताना देते थे। सास तैय्यबा बी गालियां देती, देवर जाहिद आलम अश्लील टिप्पणियां और छेड़छाड़ करता था, जबकि पति मंजूर कई बार गला दबाकर जान से मारने की कोशिश करता था।
76 साल के पिता के सहारे पली बेटी
राहिला की मां का निधन पहले ही हो चुका था। एमए इंग्लिश और पीजीडीसीए पास होने के बावजूद, बच्ची की देखभाल के कारण वह नौकरी नहीं कर सकी। 76 वर्षीय पिता और भाई के सहारे उसने बेटी की परवरिश की। आज 13 साल की सारा स्कूल में पढ़ रही है।
कोर्ट का फैसला: ‘मां-बेटी के साथ हुआ गंभीर अन्याय’
कोर्ट ने अपने फैसले में माना कि राहिला और उसकी बेटी के साथ गंभीर अन्याय हुआ है। न्यायालय ने आदेश दिया कि पति मंजूर आलम पत्नी और बेटी को 5-5 हजार रुपये प्रतिमाह (कुल 10 हजार रुपये) भरण-पोषण के रूप में देगा। इसके अलावा 5 हजार रुपये प्रति माह किराए के रूप में अलग से देने होंगे। मानसिक प्रताड़ना के लिए राहिला को 4 लाख रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में देने का आदेश दिया गया है।
सन्दर्भ स्रोत : दैनिक भास्कर
सम्पादन : मीडियाटिक डेस्क
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