दहेज विवाद में नवविवाहिता की संदिग्ध मौत के मामले में आरोपी की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले को यह कहते हुए पलट दिया कि दहेज जैसी प्रथा शादी जैसे पवित्र रिेश्ते को “व्यावसायिक सौदे” में बदल रही है। साथ ही सर्वोच्च अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर कहा कि ऐसे मामलों में बिना तथ्यों और सबूतों पर विचार किए बिना कदम उठाने से समाज पर गलत असर पड़ता है और न्यायिक प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े होते हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया। इस मामले मृतका के पिता ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया। सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और आर. महावेदन की बेंच ने की।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
फैसले में हाईकोर्ट की बेंच ने दहेज प्रथा को समाज में मौजूद एक गंभीर बुराई बताया। अदालत ने कहा, “विवाह वास्तव में विश्वास, सम्मान और एक दूसरे के साथ पर आधारित एक पवित्र संस्था है, लेकिन आज इसे दुर्भाग्य से एक व्यावसायिक लेन-देन की तरह देखा जा रहा है। दहेज जैसी प्रथाओं की वजह से विवाह जरूरतें पूरी करने का जरिया बन चुका है।” कोर्ट ने आगे कहा कि दहेज के नाम पर होने वाली मौतें संविधान के आर्टिकल 14 और 21 का सीधा उल्लंघन है। अदालत ने यह भी कहा कि ये अपराध सोसायटी में नैतिकता को कम करते हैं। साथ ही महिलाओं के खिलाफ हिंसा को सामान्य बनाते हैं और एक सभ्य समाज की नींव को हिला देते हैं। "
हाईकोर्ट के फैसला रद करने का कारण क्या था?
दरअसल, मृतका के पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इलाहबाद हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता और सबूतों पर ज्यादा सोच विचार नहीं किया और आरोपी को जमानत दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने इसी कारण से इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में विकृति बताते हुए इसे निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मृतका का अंतिम बयान, FSL रिपोर्ट और मामले की परिस्थितियां जमानत को सही ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं थीं।
न्यायमूर्ति महादेवन ने हाईकोर्ट के गलत निर्देश पर कहा "जब साक्ष्य शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न की तरफ साफ संकेत दे रहे हों तो ऐसे गंभीर अपराधों के मुख्य अपराधी को जमानत पर रिहा रहने की अनुमति देना न सिर्फ मुकदमे की निष्पक्षता को खतरे में डाल सकता है, बल्कि क्रिमिनल जस्टिस प्रशासन में जनता का विश्वास भी खत्म कर सकता है।" अदालत ने आगे कहा "मामले की गंभीरता, मृत्यु से पहले का बयान और सबूतों पर विचार करने में हाईकोर्ट की चूक इस आदेश को विकृत और अस्थिर बना देती है।"



Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *