सुप्रीम कोर्ट : निःसंतान विधवा की संपत्ति

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सुप्रीम कोर्ट : निःसंतान विधवा की संपत्ति
पर पहला हक उसके पति के वारिसों का

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराधिकार कानून के तहत हिंदू महिला से जुड़े प्रविधान पर सुनवाई करते हुए कहा कि हिंदू उत्तराधिकार कानून हिंदू सामाजिक परंपराओं से गहराई से जुड़ा है। कोर्ट ने उदाहरण देते हुए कहा कि कैसे शादी के बाद महिला का गोत्र बदल जाता है। यह भी कहा कि वह सिर्फ अपने पति से ही नहीं बल्कि अपने ससुराल वालों से भी भरण-पोषण का दावा करने की हकदार होती है। कोर्ट ने सवाल किया कि वह अपने भाई-बहन के खिलाफ भरण पोषण नहीं दायर करेगी, इसका क्या औचित्य है?

कोर्ट ने दिया इस बात जोर

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं के अधिकार महत्वपूर्ण होने के बावजूद सामाजिक संरचना और महिलाओं को अधिकार देने के बीच संतुलन होना चाहिए। कहा कि वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने पर सावधानी से आगे बढ़ेगा। व्यापक मुद्दे विचारणीय रहने तक कोर्ट ने पक्षकारों के बीच समझौते की संभावनाएं तलाशने के लिए उन्हें मध्यस्थता केंद्र भेज दिया है। मामले पर अब 11 नवंबर को सुनवाई होगी।

'हजारों सालों से चली आ रही चीज को तोड़ना नहीं चाहते' 

कोर्ट के सामने विचारणीय प्रश्न निस्संतान हिंदू विधवा महिला की संपत्ति के उत्तराधिकार का था। जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि हिंदू सामाजिक संरचना को आप गिरा नहीं सकते। हम अपने फैसले में किसी ऐसी चीज को तोड़ना नहीं चाहते जो हजारों वर्षों से चली आ रही है। पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 में लिंग आधारित भेदभाव होने के आधार पर दी गई चुनौतियों पर सुनवाई करते हुए कहा कि विवादित प्रविधान उत्तराधिकार के मामले में एक महिला जिसकी मृत्यु बिना वसीयत के हो जाती है और जो विधवा और निस्संतान है, उसकी संपत्ति पर पति के परिवार को उसके माता-पिता और भाई-बहनों को प्राथमिकता देते हैं। 

कोर्ट ने रेखांकित किया कि महिलाओं के अधिकार महत्वपूर्ण होने के बावजूद सामाजिक संरचना और महिलाओं को अधिकार देने के बीच संतुलन होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रविधानों को दी गई चुनौतियों को परखते समय सावधानी बरतेगा। साथ ही वह हिंदू सामाजिक संरचना और हजारों वर्षों से चली आ रही उसकी बुनियादी मान्यताओं को तोड़ने से सावधान रहेगा। 

'पिछले संशोधनों ने पहुंचाया काफी नुकसान' 

कोर्ट ने कहा कि वह भी सिर्फ इसलिए कि कुछ मामलों में किसी महिला के माता-पिता या भाई-बहनों को उसकी संपत्ति से वंचित करने के तथ्य सामने आते हैं। पीठ ने यह भी कहा कि उत्तराधिकार कानून में बेटियों को संयुक्त परिवार की संपत्ति में अधिकार देने वाले पिछले संशोधनों ने परिवारों में दरार पैदा की और पारिवारिक ढांचे को काफी नुकसान पहुंचाया। पीठ ने कहा कि वह महिलाओं को संपत्ति देने के खिलाफ नहीं है। लेकिन, वह इसके वास्तविक प्रभावों को भी नजरअंदाज नहीं कर सकती। 

याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि ये प्रावधान  महिलाओं को बहिष्कृत करने वाले और भेदभाव पूर्ण हैं। महिला कोई संपत्ति नहीं है। उसके साथ बराबरी का व्यवहार होना चाहिए। बहुत सी महिलाएं अब बड़ी कंपनियों की प्रमुख हैं और उन्हें केवल परंपराओं के कारण समान उत्तराधिकार के अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। 

जब पीठ ने सुझाव दिया कि जो महिलाएं अपने मायके वालों को संपत्ति देना चाहती हैं, उन्हें वसीयत बनानी चाहिए। इस पर सिब्बल ने कहा कि एक पुरुष को वसीयत बनाने या ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है। यह भेदभावपूर्ण है। एक अन्य याचिकाकर्ता की वकील मेनका गुरुस्वामी ने भी पीठ से हिंदू समाज की व्यापक अवधारणाओं के बजाय वैधानिक ढांचे पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया। केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी केएम नटराज ने कानून का बचाव किया और उसे सुव्यवस्थित बताया। 

क्या है मामला? 

यह मामला हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 और 16 से संबंधित है, जिसमें बिना वसीयत के मरने वाली हिंदू महिलाओं के उत्तराधिकार की बात की गई है। इसके मुताबिक अगर कोई हिंदू महिला बिना वसीयत किए मर जाती है तो उसकी संपत्ति पहले उसके बच्चों और पति को उत्तराधिकार में मिलती है और अगर वह विधवा और निस्संतान हो तो उसकी संपत्ति पर उसके पति के उत्तराधिकारियों को उसके माता-पिता पर वरीयता मिलती है। सिर्फ तब जबकि उसके पति का कोई उत्तराधिकारी न हो तो संपत्ति उसके माता-पिता के परिवार को मिलती है। 

सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

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