छाया : लॉ चक्र
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड की एक महिला जज को बच्चे की देखरेख के लिए अवकाश (चाइल्ड केयर लीव) नहीं दिए जाने पर राज्य सरकार और रांची हाईकोर्ट को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
महिला जज ने अवकाश की मांग करते हुए कहा कि वह न सिर्फ एकल अभिभावक (सिंगल मदर) हैं बल्कि समाज के सबसे निचले तबके से आती हैं। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता से पूछा कि उन्होंने अवकाश के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया? इसके जवाब में अधिवक्ता ने पीठ से कहा कि हाईकोर्ट ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान इस मामले में तत्कालिकता को नहीं मानते।
अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता का कॅरियर शानदार है और उन्होंने महज ढाई साल में 4660 मामलों का निपटारा किया है। महिला जज एकल अभिभावक होने के साथ-साथ समाज के वंचित समुदाय अनुसूचित श्रेणी से है। इस पर मुख्य न्यायाधीश गवई ने जानना चाहा कि क्या वह विधवा हैं? इस पर अधिवक्ता ने कहा नहीं, वह सिर्फ एकल अभिभावक हैं। इसके बाद पीठ ने इस मामले में झारखंड सरकार और रांची हाईकोर्ट को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। मुख्य न्यायाधीश गवई ने प्रतिवादियों को इलेक्ट्रॉनिक संचार सहित सभी माध्यम से नोटिस जारी करने कहा और निर्देश दिया और कहा कि हम अगले सप्ताह इस पर सुनवाई करेंगे।
पीठ ने प्रतिवादियों से कहा कि हम यह साफ कर देते हैं कि मामले को लंबित रखने के बजाए जल्द निपटारा करेंगे। महिला जज ने छह माह के लिए चाइल्ड केयर अवकाश की मांग की है। कानून मुताबिक कोई भी महिला कर्मचारी बच्चे की देखरेख के लिए 730 दिन का अवकाश ले सकती हैं। झारखंड की जिला अदालत में अतिरिक्त सेशन जज कशिका एम. प्रसाद ने बच्चे की देखभाल के लिए अवकाश नहीं दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। तबादला किसी अन्य स्थान पर किए जाने के बाद उन्होंने 10 जून से दिसंबर तक बच्चे की देखभाल के लिए अवकाश की मांग की थी, लेकिन प्रशासन ने अवकाश देने से इनकार कर दिया।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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