एक समान नहीं होगी पुरुषों और महिलाओं की शादी की उम्र-सुप्रीम कोर्ट

blog-img

एक समान नहीं होगी पुरुषों और महिलाओं की शादी की उम्र-सुप्रीम कोर्ट

छाया: न्यूज़ 18 डॉट कॉम

महत्वपूर्ण अदालती फैसले

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पुरुषों और महिलाओं के लिए विवाह की एक समान उम्र सुनिश्चित करने का निर्देश देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि वह ऐसा कानून बनाने के लिए संसद को परमादेश जारी नहीं कर सकता। भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता-अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की भी खिंचाई करते हुए कहा ‘हम यहां आपको या राजनीति के किसी भी वर्ग को खुश करने के लिए नहीं बैठे हैं। आप मुझे अनावश्यक टिप्पणियां मत दें। यह कोई राजनीतिक मंच नहीं है।

मामले की सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत को संसद के परम ज्ञान को टालना चाहिए और ‘हमें खुद को कानून का अनन्य संरक्षक नहीं मानना चाहिए। संसद भी कानून का संरक्षक है।’ उपाध्याय ने कहा कि इस मामले में लैंगिक समानता से जुड़ा एक प्रश्न शामिल है और कानून के संरक्षक के रूप में अदालत को पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करते हुए विसंगति को दूर करने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। पीठ में शामिल जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला ने उपाध्याय को बताया कि हालांकि वह पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए शादी की उम्र 21 साल चाहते हैं, याचिका में प्रार्थना शादी की न्यूनतम उम्र को पूरी तरह से निर्धारित करने वाले प्रावधान को खत्म करने के लिए थी। प्रधान न्यायाधीश ने उपाध्याय से कहा कि इस प्रावधान को खत्म करने से ऐसी स्थिति पैदा होगी, जब महिलाओं के लिए शादी की कोई न्यूनतम उम्र नहीं होगी। पीठ ने जोर देकर कहा कि यह अनुच्छेद 32 के तहत घिसा-पिटा कानून है और वह कानून बनाने के लिए संसद को परमादेश जारी नहीं कर सकती और न ही कानून बना सकती है। उपाध्याय ने कहा कि चूंकि पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष करने के लिए संसद में एक कानून लाया गया है और विचार के लिए स्थायी समिति को भेजा गया है, इसलिए केंद्र सरकार से जवाब मांगा जाना चाहिए। हालांकि, उनकी दलीलें पीठ को राजी नहीं कर सकीं। सुनवाई के समापन पर उपाध्याय द्वारा की गई कुछ दलीलों से पीठ नाराज हो गई। शीर्ष अदालत द्वारा यह स्पष्ट किए जाने के बाद कि वह कानून बनाने के आदेश जारी नहीं करेगी, उपाध्याय ने कहा कि बेहतर होता कि दिल्ली हाईकोर्ट को इस मामले की जांच करने दी जाती। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने उनसे कहा, ‘हम यहां आपकी राय सुनने के लिए नहीं हैं। सौभाग्य से, हमारी वैधता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आप हमारे बारे में क्या महसूस करते हैं। हम आपके बारे में जो महसूस करते हैं, उस पर आपकी अनावश्यक टिप्पणी नहीं चाहते हैं।’

उन्होंने कहा, ‘हम यहां अपना संवैधानिक कर्तव्य निभाने के लिए हैं, यहां आपको खुश करने के लिए नहीं हैं। न ही हम यहां किसी राजनीतिक वर्ग को खुश करने के लिए हैं। आप बार के सदस्य हैं, हमारे सामने तथ्य के साथ बहस करें। यह कोई राजनीतिक मंच नहीं है।’ अदालत ने उपाध्याय के इस सुझाव पर भी विचार करने से इनकार कर दिया कि यह मामला विधि आयोग को भेजने की स्वतंत्रता दी जाए।

• डी.वाई. चंद्रचूड़, प्रधान न्यायाधीश

हम यहां आपको या राजनीति के किसी भी वर्ग को खुश करने के लिए नहीं बैठे हैं। आप मुझे अनावश्यक टिप्पणियां मत दें। यह कोई राजनीतिक मंच नहीं है।

संदर्भ स्रोत - देशबंधु 

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



 सुप्रीम कोर्ट : तलाक लंबित रहने तक
अदालती फैसले

 सुप्रीम कोर्ट : तलाक लंबित रहने तक , पत्नी सभी सुविधाओं की हकदार

शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के के आदेश को रद्द करते हुए पारिवारिक अदालत के आदेश को बहाल कर 1.75 लाख रुपये गुजारा भत्ता देने...

केरल हाईकोर्ट : पत्नी को मोटी, बदसूरत
अदालती फैसले

केरल हाईकोर्ट : पत्नी को मोटी, बदसूरत , कहना भी तलाक का आधार

केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि पीड़ित के ससुराल में पति के भाई-बहनों द्वारा उसे उसके र...

इलाहाबाद हाईकोर्ट : पहली पत्नी ही पेंशन पाने की हकदार 
अदालती फैसले

इलाहाबाद हाईकोर्ट : पहली पत्नी ही पेंशन पाने की हकदार 

हाईकोर्ट नेएएमयू कुलपति को 2 महीने में निर्णय लेने का दिया आदेश

पॉक्सो मामलों में पीड़ितों की पैरवी करेंगी 182 महिला वकील
अदालती फैसले

पॉक्सो मामलों में पीड़ितों की पैरवी करेंगी 182 महिला वकील

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लीगल सर्विस कमेटी ने गठित किया पैनल

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट : पत्नी को नौकरी
अदालती फैसले

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट : पत्नी को नौकरी , छोड़ने के लिए मजबूर करना क्रूरता

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला…पति या पत्नी नौकरी करने के लिए एक-दूसरे को मजबूर नहीं कर सकते, दी तलाक की मंजूरी