झारखंड हाईकोर्ट ने अहम निर्णय सुनाते हुए कहा है कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह करने के बाद कोई व्यक्ति धार्मिक या निजी कानून का सहारा लेकर दूसरी शादी नहीं कर सकता। यह फैसला धनबाद के पैथॉलॉजिस्ट मोहम्मद अकील आलम के मामले में आया, जिन्होंने अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी की थी। अकील आलम ने 4 अगस्त 2015 को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी की। कुछ महीनों बाद उनकी पत्नी घर छोड़कर देवघर चली गई। अकील ने दावा किया कि पत्नी बिना कारण चली गई और कई बार बुलाने के बावजूद वापस नहीं लौटी। उन्होंने देवघर फैमिली कोर्ट में वैवाहिक अधिकारों की बहाली की याचिका दायर की।
पत्नी की दलील
पत्नी ने अदालत में बताया कि अकील पहले से शादीशुदा थे और उनकी पहली पत्नी से दो बेटियां हैं। आरोप लगाया कि अकील ने पिता से संपत्ति अपने नाम करने का दबाव बनाया और मना करने पर मारपीट की। सुनवाई के दौरान अकील ने खुद स्वीकार किया कि उनकी पहली पत्नी जीवित हैं। देवघर फैमिली कोर्ट ने दूसरी शादी को अवैध घोषित किया।
हाईकोर्ट का फैसला
जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट का फैसला बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 4(ए) के अनुसार, विवाह वैध तभी होगा जब शादी के समय कोई पहले से जीवित जीवनसाथी न रखता हो। न्यायालय ने स्पष्ट किया, स्पेशल मैरिज एक्ट एक ‘नॉन ऑब्स्टांटे क्लॉज’ के तहत बना कानून है, जो किसी भी निजी या धार्मिक कानून से ऊपर है।



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