दिल्ली हाईकोर्ट ने कथित बलात्कार के मामले में एक व्यक्ति को जमानत दे दी। कोर्ट ने कहा कि बलात्कार व सहमति से बने शारीरिक संबंधों के बीच अंतर करना जरूरी है। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि जहां कार्यबल में महिलाओं की सुरक्षा और कल्याण के लिए कानून बनाना और उन्हें लागू करना विधायिका और कार्यपालिका का कर्तव्य है, वहीं कोर्ट का ‘प्रहरी’ बनना और इसके दुरुपयोग को रोकना कठिन कर्तव्य है।
अदालत ने कहा, "वर्तमान समय में, कई बार कार्यस्थल पर निकटता के कारण सहमति से संबंध बनते हैं, जो खराब होने पर अपराध के रूप में रिपोर्ट किए जाते हैं, इसलिए बलात्कार के अपराध और दो वयस्कों के बीच सहमति से बने यौन संबंध के बीच अंतर के प्रति सचेत होना उचित है।" आरोपी व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि यह मामला उसी श्रेणी में आता है, जिसमें पुरुष और महिला के बीच एक ही कार्यस्थल पर ‘यौन निकटता’ विकसित की थी, लेकिन लगभग एक साल के बाद रिश्ते में खटास आ गई और बल प्रयोग और बलात्कार के आरोप लगने लगे।
अदालत ने मई 2024 में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को लंबे समय तक सलाखों के पीछे रखने का कोई फायदा नहीं देखा। हाईकोर्ट ने कहा कि मामले में आरोप तय किए गए थे और आरोपों की सत्यता की जांच मुकदमे के दौरान की जानी चाहिए, जिसमें कुछ समय लगने की संभावना है। आरोपी व्यक्ति ने अपनी याचिका में ऐसा दावा किया कि दोनों पक्षों ने काफी लंबे समय तक एक-दूसरे को डेट किया और एक-दूसरे के प्रति गहरे प्यार में थे। हालांकि, यह रिश्ता तब खत्म हो गया जब आरोपी को पता चला कि शिकायतकर्ता किसी और को भी डेट कर रही है और बदले की भावना से उसने मनगढ़ंत शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं।
सन्दर्भ स्रोत: विभिन्न वेबसाइट
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