छाया: रक्षंदा खान
भोपाल की रक्षंदा खान राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली वाद-विवाद वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती रहती हैं। इन प्रतियोगिताओं में उनके वक्तव्य कौशल ने उन्हें कई पुरस्कार दिलवाए हैं उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि कोविड काल के दौरान हुई आदर्श संयुक्त राष्ट्र संघ (एमयूएन) की सभा में उन्हें मिली। भारत-अमेरिका की संयुक्त पहल में रक्षंदा ने भारत का प्रतिनिधित्व किया और विजेता बनी। वे राजनीति विज्ञान के अपने पसंदीदा क्षेत्र में काम करना चाहती हैं। वे बताती हैं कि उनकी अम्मी रिजवाना अंजुम और अब्बू वसीम अख्तर ने उन्हें हमेशा प्रोत्साहन दिया है। रक्षंदा के अब्बू हमेशा कहते हैं कि जब भी मौका मिले, अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करें। हार्वर्ड में भाषण देने से पहले मैं डर रही थी लेकिन अब्बू की हौसला अफज़ाई से ही मैंने वहां देश का प्रतिनिधित्व किया और पुरस्कार जीता। वहां मुझे लोकतान्त्रिक शासन के उन्नयन पर बोलना था। इसके पहले रूस में मुझे महिला सशक्तिकरण पर बात करने और पुरस्कार हासिल करने का अवसर मिल चुका है। इस वक़्त मैं सिविल सर्विसेज में जाने की तैयारी कर रही हूं। इसके अलावा इस समय जलवायु परिवर्तन को लेकर एक अभियान चला रही हूं और स्प्रेड स्माइल फाउंडेशन संस्था से जुड़कर अपनी सेवाएं दे रही हूं। इसके तहत मैंने 100 बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा उठाया है। मुझे अपना भविष्य अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में दिखता है। इसी विषय में मैं मास्टर्स भी कर रही हूं।
सन्दर्भ स्रोत: दैनिक भास्कर
संपादन: मीडियाटिक डेस्क
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