ओडिशा हाईकोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए दो साल के बच्चे के पिता और दादा-दादी को उससे मिलने का अधिकार दे दिया है। कोर्ट ने कटक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पिता की मुलाकात की याचिका खारिज कर दी गई थी। जस्टिस संजय कुमार मिश्रा की बेंच ने कहा कि बच्चे के अच्छे विकास के लिए दादा-दादी और पोते-पोती के बीच प्यार और अपनापन जरूरी है।
पत्नी ने पति और ससुर पर केस दर्ज कराया
मामले के मुताबिक, याचिकाकर्ता-पति और पत्नी की शादी अप्रैल 2021 में हुई थी। दिसंबर 2023 में दोनों को एक बेटा हुआ। लेकिन जनवरी 2024 में पत्नी तीन हफ्ते के बच्चे के साथ मायके चली गई और पति व ससुर पर IPC की धारा 307 (हत्या का प्रयास), 354 (छेड़छाड़), 498A (क्रूरता) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत मामला दर्ज कराया था। इसके बाद पिता ने बेटे से मिलने के लिए CPC की धारा 151 के तहत फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि बार-बार मुलाकात से मां और बच्चे को नुकसान हो सकता है।
बच्चों के विकास के लिए दादा-दादी का प्यार जरूरी- हाईकोर्ट
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को गलत बताया और कहा कि वह सिर्फ अंदाजे पर दिया गया था। जस्टिस मिश्रा ने कहा - एक पिता जो अपने बच्चे से मिलने को तरस रहा है, उसे खतरा नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि चाहे बच्चा मां के पास रह रहा हो, लेकिन पिता और दादा-दादी को भी उससे मिलने का मौका मिलना चाहिए। अदालत ने कहा- दादा-दादी का प्यार और साथ बच्चे के अच्छे विकास में मदद करता है।
कोर्ट ने तय किए मुलाकात के नियम
हाईकोर्ट ने पिता और दादा-दादी के मुलाकात अधिकार को बहाल करते हुए कहा कि यह व्यवस्था तब तक जारी रहेगी जब तक बच्चा पांच साल का नहीं हो जाता। यह फैसला न सिर्फ पिता के अधिकारों को मान्यता देता है, बल्कि भारतीय पारिवारिक ढांचे में दादा-दादी की भूमिका को भी मजबूती से सामने रखता है।



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