नई दिल्ली। तलाक की अपील याचिका को मंजूर करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि तलाक देने से पति-पत्नी या उनके परिवार का न तो अपमान होता है और न ही इससे कलंक लग सकता है। तलाक देने से परिवार पर कलंक लगने के पति के तर्क को ठुकराते हुए अदालत ने कहा कि दोनों पक्ष शिक्षित हैं और यह तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि तलाक देने से उन पर या उनके परिवार पर कलंक लगेगा। अदालत ने आगे कहा कि दोनों पक्ष बीते दस सालों से एक-दूसरे से अलग रह रहे हैं और इस बात की कोई संभावना भी नहीं है कि उनके रिश्ते में कोई सुधार हो।
दोनों पक्ष 25 अप्रैल 2012 से रह रहे अलग
पारिवारि अदालत के निर्णय पर सवाल उठाते हुए अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट यह नहीं देख सकी कि दोनों पक्ष 25 अप्रैल 2012 से अलग रह रहे हैं और दोनों के बीच अविश्ववास है। यही वजह है कि अपीलकर्ता महिला ने प्रतिवादी पति के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई थी और पति से कोई भी भरण-पोषण की मांग नहीं की थी।
दोनों के रिश्ते में सुधार की कोई संभावना नहीं-अदालत
न्यायमूर्ति राजीव शकधर व न्यायमूर्ति अमित बंसल की पीठ ने कहा कि दोनों पक्ष बीते दस साल से अलग रह रहे हैं और उनकी रिश्ते में सुधार की कोई संभावना नहीं है। अदालत ने कहा कि शादी को जारी रखने से दोनों पक्षों तकलीफ होगी और यह मानसिक क्रूरता बढ़ाएगी। ऐसे में उक्त तथ्यों व परिस्थितियों को देखते हुए अपीलकर्ता महिला और प्रतिवादी को तलाक दिया जाता है।
संदर्भ स्रोत: दैनिक जागरण
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