नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कस्टडी (अभिरक्षा) के मुकदमे के निपटारे के लिए लड़की के साथ 'संपत्ति' की तरह व्यवहार नहीं किया जा सकता है। इस टिप्पणी के साथ शीर्ष अदालत ने उड़ीसा हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें एक लड़की के जैविक पिता को उसकी कस्टडी दी गई थी।
शीर्ष अदालत हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ लड़की की बुआ की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि लड़की अपनी बुआ के पास खुशी-खुशी रह रही है। अदालत ने गौर किया कि मार्च 2014 में पैदा हुई बच्ची लगभग तीन महीने की उम्र से ही अपने जैविक पिता की बहन के साथ रह रही है।
बच्ची के हित पर अदालत की टिप्पणी
जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने कहा, “यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें कोई भी पक्ष गोद लेने का दावा कर रहा है। यह केवल लड़की की कस्टडी से संबंधित विवाद है।“ सुनाए गए फैसले में पीठ ने कहा कि उसने लड़की से बातचीत की। लड़की ने कहा कि वह बुआ के साथ रहकर खुश है। शीर्ष अदालत ने कहा, “लड़की इस संबंध में राय बनाने में सक्षम है।ज् उसे संपत्ति मानकर उसके जैविक पिता को नहीं सौंपा जा सकता।“
संदर्भ स्रोत : दैनिक जागरण
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