नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक महिला की ओर से अपने पति पर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए दायर तलाक की याचिका को खारिज करने के जिला कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि महिला यह साबित नहीं कर पाई कि उसके पति ने शारीरिक या मानसिक रूप से कोई क्रूरता की है।
ऊधमसिंह नगर निवासी जोड़े की शादी फरवरी 2013 में हुई थी। महिला ने मई 2016 में एक बच्चे को जन्म दिया। पति अपने पिता के पारिवारिक व्यवसाय में मदद करता है, जबकि पत्नी एक प्राइवेट नौकरी करती है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने मामले में निर्णय पारित करते हुए कहा है कि यह भी तय कानून है कि पति-पत्नी के बीच छोटी-मोटी लड़ाई या झगड़ा क्रूरता नहीं, रिश्ते का हिस्सा माना जाता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून में ‘क्रूरता’ शब्द की स्पष्ट परिभाषा नहीं है। इस संबंध में, हाईकोर्ट ने समर घोष बनाम जया घोष मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें मानसिक क्रूरता के मामलों से संबंधित मानवीय व्यवहार के उदाहरण दिए गए हैं।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के इस अवलोकन का हवाला दिया, विवाहित जीवन को समग्र रूप से देखा जाना चाहिए और कई सालों में कुछ अलग-थलग घटनाएं क्रूरता नहीं मानी जाएंगी। गलत व्यवहार काफी लंबे समय तक लगातार होना चाहिए, जिससे रिश्ता इस हद तक खराब हो जाए कि एक जीवनसाथी के कार्यों और व्यवहार के कारण, पीड़ित व्यक्ति दूसरे के साथ रहना असंभव समझे, तो इसे मानसिक क्रूरता माना जा सकता है।



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