मप्र की गंगा और रोशनी को प्रधानमंत्री मोदी ने किया सम्मानित

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मप्र की गंगा और रोशनी को प्रधानमंत्री मोदी ने किया सम्मानित

 • गुना की 'लखपति दीदी' गंगा ने 240 महिलाओं को रोजगार से जोड़ा

• कभी कर्ज लेकर चलाती थीं काम, अब लाखों में कमा रहीं रोशनी

गुना/देवास। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में लखपति दीदी बनीं मध्य प्रदेश के गुना जिला की गंगा बाई अहिरवार और देवास जिले की रोशनी लोधी को महाराष्ट्र के जलगांव में हुए कार्यक्रम में सम्मानित किया गया। साथ ही उनसे संवाद भी किया। इस दौरान गंगाबाई ने पीएम मोदी को अपनी सफलता की कहानी सुनाई। उनके अलावा मध्यप्रदेश की पांच लखपति दीदी इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जलगांव पहुंची थी।

गुना जिले के मुहालपुर गांव में कभी घर की चारदीवारी के अंदर रहने वाली गंगा अहिरवार खुद तो आत्मनिर्भर बनी ही, पति, ससुर, जेठानी सहित गांव की 240 महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ा। गंगा ने अपना ही नहीं, गांव के अधिकतर परिवारों का जीवन स्तर सुधारा। यही कारण है कि गांव भर में अब गंगा को हर कोई लक्ष्मी कहकर बुलाता है। वहीं, कभी कर्ज लेकर अपना काम चलाने वाली देवास जिले के विकासखंड बागली में नेवरी के समीप छोटे से गांव कजलीवन की रहने वाली रोशनी लोधी भी लखपति दीदियों में शामिल हैं।

गंगा ने  बनाया आजीविका मिशन से जुड़कर स्व सहायता समूह

गंगा ने गुना के महारानी लक्ष्मीबाई गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई की है। पिता अपनी पांच बीघा जमीन पर खेती कर परिवार पालते थे। 2011 में गंगा की शादी मुहालपुर गांव के बिशन अहिरवार से हुई। गंगा ने बताया कि शादी के बाद वे घर के कामों के अलावा पति के साथ खेतों में भी सहयोग करती थी। हाड़ तोड़ मेहनत के बाद भी जरूरतें पूरी करने के लिए परिवार को कर्ज लेना पड़ता था। इसी बीच उन्हें आजीविका मिशन के बारे में जानकारी मिली। गंगा ने इस मिशन से जुड़कर साल 2016 में गांव की 11 महिलाओं के साथ उमा स्व सहायता समूह का गठन किया। पहला लोन 11 हजार रुपये का मिला। शुरुआत में 10 रुपये प्रति सप्ताह की बचत की। समूह के माध्यम से घर की छोटी-मोटी जरूरतें पूरी करने लगीं।

22 स्व सहायता समूहों से 240 महिलाओं को जोड़ा

गंगा ने बताया कि उन्होंने 2018 से 2024 तक अपने आसपास के अन्य गांवों की 240 महिलाओं के 22 स्व सहायता समूह बनाए। उन्हें आजीविका मिशन की गतिविधियां शुरू करने के लिए प्रेरित किया। समूह के जरिए 50 हजार का लोन लेकर ससुर को किराना दुकान खुलवाई, जेठानी को सब्जी की खेती के लिए कहा। दो साल में इससे 4 लाख रुपए की इनकम हुई। देवरानी घर के काम में लगी थी, उसको भी घर पर ही सिलाई और कढ़ाई सेंटर खुलवा दिया। पांच हजार रुपये महीने में काम करने वाले पति की नौकरी छुड़वाकर स्व सहायता समूह के माध्यम से दो कैंटीन खुलवाईं। आज गंगा पति के साथ मिलकर हर महीने 20 हजार रुपये कमा रही है।

• 2019 में कलेक्ट्रेट में खोली कैंटीन

गंगा ने सास, ससुर और पति के साथ मिलकर स्कूल यूनिफॉर्म सिलाई का काम भी किया। गुना के कलेक्ट्रेट परिसर में 2019 में चाय-नाश्ते की कैंटीन शुरू की लेकिन कोरोना के कारण चल नहीं पाई। कोरोनाकाल बीतने के बाद गंगा ने 2020 में दोबारा कैंटीन शुरू की। गंगा ने इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट (आईएचएम) भोपाल से ट्रेनिंग लेकर सर्टिफिकेट हासिल किया है। कलेक्टर सत्येंद्र सिंह की सलाह पर कैंटीन में टिफिन सेंटर खोल लिया। जिससे उन्हें करीब 10 हजार रुपये प्रति महीने की बचत हो रही है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया 12 अगस्त को गुना दौरे पर थे। इस दौरान वह गंगा की कैंटीन में पहुंचे। यहां उन्हें भिंडी, मक्के की कीस, दाल-चावल, बाफले परोसे गए। खाना खाने के बाद सिंधिया ने गंगा की तारीफ की। गंगा कैंटीन, खेती, फलों के बगीचे, सिलाई और दूसरे कामों से बीते तीन महीने से लगातार करीब 20 हजार रुपये महीना कमा रही हैं। इसी वजह से उन्हें लखपति दीदी की श्रेणी में शामिल किया गया है।

रोशनी  ने किया 50 स्व-सहायता समूहों का गठन

देवास जिले की रोशनी लोधी घरेलू कामकाज के साथ ही सास-ससुर एवं पति के साथ खेती के काम में मदद करती हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से कुछ साल पहले तक उनको आसपास के गांवों से कर्ज लेकर काम चलाना पड़ा। इसके बाद रोशनी ने वर्ष 2019 में स्व-सहायता समूह बनाया। शुरुआत में 20 रुपये प्रति सप्ताह की बचत की और समूह ऋण के माध्यम से घर की छोटी-मोटी जरूरतें पूरी करने लगीं। रोशनी ने आसपास के गांवों की करीब 600 महिलाओं के साथ 50 स्व-सहायता समूहों का गठन किया और उन्हें आजीविका की गतिविधियां शुरू करने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार सक्रिय कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन के रूप में उन्हें कुछ आय होने लगी। स्व-सहायता समूह के माध्यम से रोशनी ने 2021 में बैंक बीसी का प्रशिक्षण लिया।

• ऋण लेकर कम्प्यूटर, प्रिंटर खरीदा

50 हजार रुपये का ऋण लेकर कम्प्यूटर, प्रिंटर खरीद कर बैंक सखी का कार्य शुरू किया। सास, ससुर एवं पति के साथ मिलकर गणवेश सिलाई का काम भी चलता रहा। इससे गांव की अन्य महिलाओं को भी जोड़ा। समूह गठन के दौरान बैंक के काम के लिए बैंक सखी के रूप में उन्हें चुना गया।

• गांवों में बैंकिंग सुविधाएं दे रहीं

बैंक सखी का काम शुरू होने से पहले उन्होंने देवास में प्रशिक्षण लिया, इसके बाद बैंक आफ इंडिया की शाखा नेवरी की बैंक बीसी के रूप में काम करने लगीं। अब वह आसपास के कई गांवों में बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध करवा रही हैं। प्रतिदिन तीन से पांच लाख रुपये तक का ट्रांजेक्शन सफलतापूर्वक कर लेती हैं।

• रोज तीन से पांच लाख रुपये तक का लेन-देन 

कमीशन के रूप में हर महीने उन्हें 20 से 25 हजार रुपये की आय हो जाती है। वे अपने कियोस्क का संचालन पूरे आत्मविश्वास से कर रही हैं। यहां पर रुपये निकालना, जमा करना, खाता खुलवाना, केवायसी अपडेट, बीमा योजना, समूहों को लोन दिलवाने की प्रक्रिया व अन्य कार्य किए जा रहे हैं। रोशनी की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के साथ मान-सम्मान भी बढ़ा है।

संदर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

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