प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के मामले में तलाक के कारणों की व्याख्या करते हुए कहा कि दोनों पक्षों के बीच लंबे समय तक अलगाव रहने की स्थिति में विवाह को पूरी तरह से टूटा हुआ नहीं माना जा सकता। विवाह को पूरी तरह से टूटा हुआ तभी माना जा सकता है, जब दोनों पक्षों में से किसी एक ने स्वेच्छा से दूसरे को छोड़ दिया हो और पक्षकार लंबे समय तक उसी स्थिति में बने रहे हैं तो अन्य परिस्थितियों को देखते हुए विवाह को पूरी तरह से टूटा हुआ माना जा सकता है।
कोर्ट ने माना कि वैवाहिक जीवन में परेशानियों के बावजूद पक्षकारों के बीच संबंध बने रह सकते हैं। अलगाव की अवधि के आधार पर पति और पत्नी को तलाक नहीं दिया जा सकता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने महेंद्र कुमार सिंह की तलाक याचिका की अस्वीकृति के खिलाफ दाखिल अपील को खारिज करते हुए पारित किया। मामले के अनुसार पत्नी विवाह के बाद से पति और सास-ससुर के साथ वाराणसी में रह रही थी, लेकिन ससुर की मृत्यु के बाद पति/अपीलकर्ता को मिर्जापुर में अनुकंपा नियुक्ति मिल गई। पत्नी ने अपीलकर्ता की मां की देखभाल के लिए वाराणसी में रुकने का फैसला किया।
अपीलकर्ता का दावा है कि पत्नी ने उसकी मां को अपने पक्ष में करके पूरी वसीयत अपने नाम करवा ली। इसके बाद अपीलकर्ता ने प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, वाराणसी के समक्ष तलाक की अर्जी दाखिल की। निचली अदालत द्वारा तलाक की अर्जी खारिज कर देने के बाद अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता ने पत्नी द्वारा किए गए विभिन्न कृत्यों को दिखाते हुए परिवार न्यायालय के समक्ष लगातार क्रूरता के तथ्य को सिद्ध किया है, साथ ही चूंकि दोनों पक्ष 1999 से अलग रह रहे हैं। अतः विवाह को पूरी तरह से टूटा हुआ मानना चाहिए।
हालांकि कोर्ट ने माना कि अपीलकर्ता ने क्रूरता सिद्ध करने के लिए कोई साक्ष्य या गवाह प्रस्तुत नहीं किया, जिसके आधार पर ट्रायल कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी। इसके अलावा पति के नौकरी पर चले जाने के बाद पत्नी द्वारा उसकी मां की देखभाल के लिए घर पर रहना विवाह के प्रति उसकी निष्ठा को दर्शाता है, साथ ही अलगाव की स्थिति को दर्शाने वाली अन्य परिस्थितियां भी मजबूत साक्ष्य नहीं हैं।
सन्दर्भ स्रोत : अमृत विचार
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