नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने निजी दुश्मनी निकालने या गलत इरादे से दहेज कानूनों के इस्तेमाल को लेकर कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि इसे रोकने के लिए दहेज उत्पीड़न के मामलों पर सतर्कता बरतने की जरूरत है। इसके साथ ही शीर्ष न्यायालय ने एक शख्स पर पत्नी द्वारा दायर आरोपों को रद्द कर दिया।
हाईकोर्ट ने खालिज कर दी थी अपील
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता के पीठ ने शख्स के खिलाफ लगे आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि आपराधिक कानून का इस्तेमाल किसी को परेशान करने या बदला लेने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। शख्स की पत्नी ने उसके और उसके माता-पिता के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए, 504, 506, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत आपराधिक मामले दर्ज कराये थे। इससे पहले उच्च न्यायालय ने शख्स के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
पति पर लगाया था क्रूरता और उत्पीड़न का आरोप
शीर्ष न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील की जांच करने के बाद कहा कि ऐसी परिस्थितियों में आपराधिक कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। महिला ने 10 फरवरी, 2019 को दायर अपनी शिकायत में अपने पति पर क्रूरता और उत्पीड़न का आरोप लगाया था। उसने दावा किया कि शादी के समय उसके परिवार ने शख्स को एक स्विफ्ट कार, 80 ग्राम सोने की चेन, एक अंगूठी और 50 ग्राम का कंगन सहित कई चीजें दी थीं और शादी में 45 लाख रुपये खर्च हुए थे।
दोनों ने प्रेम विवाह किया था
महिला ने बताया कि वह अनुसूचित जाति से है और उसका पति ब्राह्मण था। दोनों ने प्रेम विवाह किया था। उसने आरोप लगाया कि उसके पिता ने उसके पति को बार-बार पैसे दिये थे। इसके अलावा उसने पति पर उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया। वहीं पति की तरफ ने वकील ने तर्क दिया कि पहले दो साल तक दंपति के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध थे, ऐसे में उत्पीड़न के दावों पर संदेह पैदा होता है। शीर्ष न्यायालय ने सुनवाई के दौरान यह माना कि महिला द्वारा पेश किये गये सुबूत पर्याप्त नहीं हैं।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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