इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विवाहित महिला से उसके प्रेमी द्वारा शादी न करना कोई अपराध नहीं है। यह विशेष रूप से तब लागू होता है, जब महिला अपने पति के साथ रह रही हो और तलाक न लिया हो।
न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने पीड़िता की याचिका पर यह निर्णय दिया। पीड़िता ने सत्र अदालत के 2 जून 2025 के आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश में अदालत ने अभियुक्त को दुराचार और भ्रूणहत्या के आरोपों से बरी कर दिया था।
मामले के अनुसार, पीड़िता ने नवंबर 2023 में एफआईआर दर्ज कराई थी। उसने आरोप लगाया था कि सात साल पहले उसे अभियुक्त से प्यार हो गया था। इस दौरान दोनों के बीच बने संबंधों से वह गर्भवती हुई, लेकिन अभियुक्त ने दवा देकर उसका गर्भपात करा दिया।
पीड़िता का बाद में किसी और से विवाह हो गया। इसके बावजूद अभियुक्त उससे शादी करने का वादा करता रहा। पीड़िता का आरोप था कि शादी का झूठा वादा करके अभियुक्त ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और बाद में शादी से इनकार कर दिया।
सत्र अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों से स्पष्ट है कि पीड़िता ने अपनी मर्जी से अभियुक्त के साथ संबंध बनाए। इसमें दुराचार जैसी कोई घटना नहीं हुई है।
भ्रूण हत्या के आरोप पर सत्र अदालत ने पाया कि अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट पर कोई तारीख नहीं थी। इससे यह साबित नहीं हो सका कि उस समय पीड़िता शादीशुदा थी या नहीं। ऐसे में अदालत ने माना कि पीड़िता अपने पति से गर्भवती हुई थी।
हाईकोर्ट ने सत्र अदालत के इस फैसले को सही मानते हुए पीड़िता की याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाहित महिला से उसके प्रेमी द्वारा शादी न करना कानूनविरोधी नहीं है।
अभियुक्त ने शादी न करके कोई अपराध नहीं कारित किया’सत्र अदालत ने प्रश्नगत आदेश में यह भी टिप्पणी की कि पीड़िता ने शादीशुदा होते हुए,बिना तलाक लिए अभियुक्त से सम्बंध बनाए, यदि आईपीसी की धारा 497 असंवैधानिक न घोषित हुयी होती तो पीड़िता पर इसके तहत अपराध कारित करने का आरोप होता। वहीं हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि एक विवाहिता से विवाह न कर के अभियुक्त ने कोई गैर कानूनी काम नहीं किया है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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