नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग बेटे के स्कूल रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने की एक व्यक्ति की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा शादी टूटने से बच्चे के माता और पिता की स्थिति खत्म नहीं होती। हाईकोर्ट ने कहा जब व्यक्ति जीवित है तो उसकी पूर्व पत्नी द्वारा अपने बेटे के स्कूल प्रवेश फॉर्म से पिता का नाम हटाकर उसकी जगह अपने दूसरे पति का नाम डालने का कोई औचित्य नहीं।
न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने कहा कि महिला को नाबालिग की मां के रूप में स्कूल के रिकॉर्ड में अपना नाम दर्शाने का पूरा अधिकार है, लेकिन वह उसे बच्चे के पिता के रूप में दस्तावेजों में अपना नाम दर्ज कराने के पुरुष के अधिकार से इन्कार करने के लिए अधिकृत नहीं कर सकती है।
नहीं किया जा सकता अस्वीकार
कोर्ट ने कहा, बच्चे के पिता के रूप में स्कूल रिकॉर्ड में अपना नाम दर्शाने की व्यक्ति की प्रार्थना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। इन परिस्थितियों में, यह अदालत याचिकाकर्ता की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए स्कूल के रिकॉर्ड में (बच्चे के) पिता के रूप में उसका नाम दर्शाने की अनुमति देती है, साथ ही स्कूल को महिला को उसकी मां के रूप में नाम भी दर्शाने का निर्देश देती है।
स्कूल को दो सप्ताह की अवधि के भीतर आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट उस व्यक्ति की याचिका पर फैसला कर रही थी जिसमें स्कूल को अपना रिकॉर्ड सही करने और बच्चे के पिता के रूप में उसका नाम दर्शाने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
बच्चे का जन्म 2006 में हुआ था
बच्चे का जन्म मार्च 2006 में हुआ था और उसे पहली बार 2012 में एक स्कूल में भर्ती कराया गया था। जिन दो स्कूलों में उसने मार्च 2016 तक पढ़ाई की, वहां दस्तावेजों में लड़के के पिता के रूप में उस व्यक्ति का नाम दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता की शिकायत यह थी कि उनका नाम स्कूल के रिकॉर्ड में नहीं दिख रहा था, जहां उनका बेटा 2016 से पढ़ रहा है और इसके बजाय महिला के दूसरे पति का नाम बच्चे के अभिभावक के रूप में दिखाई दे रहा था। अदालत ने कहा कि अलग हो चुके जोड़े के बीच कुछ वैवाहिक विवाद उत्पन्न हुए, जिसके परिणामस्वरूप जून 2015 में एक पारिवारिक अदालत द्वारा दी गई तलाक की डिक्री द्वारा उनकी शादी को रद्द कर दिया गया।
महिला ने कोर्ट में ये कहा
अपने जवाबी हलफनामे में, महिला ने इस बात पर विवाद नहीं किया कि याचिकाकर्ता बच्चे का पिता था, लेकिन उसने कहा कि उस आदमी के साथ उसके संबंध इतने कटु थे कि वह याचिकाकर्ता के नाम को उसकी नाबालिग बेटे के साथ जोड़कर विरासत में नहीं लेना चाहती। क्योंकि उसके वर्तमान पति ने लड़के को अपने बेटे के रूप में स्वीकार कर लिया है और उस पर पिता जैसा प्यार और स्नेह करता है। हालांकि, अदालत ने कहा कि महिला के जवाब में दिए गए दावे से पता चलता है कि वे कानून से ज्यादा भावनाओं से प्रेरित थे। न्यायमूर्ति ने कहा, महिला और याचिकाकर्ता के बीच संबंध कितने भी कटु क्यों न हों, न तो उनके बीच संबंधों की प्रकृति, न ही उनके बीच हुआ तलाक, याचिकाकर्ता को बच्चे के पिता के रूप में उनके कद से वंचित कर सकता है।
अदालत ने कहा कि महिला चूंकि नाबालिग की मां है इसलिए उसके पास स्कूल दस्तावेजों में अपना नाम लिखवाने का पूरा अधिकार है, लेकिन उसे यह अधिकार नहीं है कि वह व्यक्ति को बच्चे के पिता के रूप में दस्तावेजों में अपना नाम बरकरार रखने के अधिकार से वंचित कर दे।
संदर्भ स्रोत : दैनिक जागरण
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *