छाया: न्यूज़ नेशन
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति के साथ शादी करने के मकसद से अपना धर्म परिवर्तित करने वाले लोगों को हलफनामे पर यह घोषित करना होगा कि वह नए धर्म के परिणामों, तलाक, कस्टडी, उत्तराधिकार और धार्मिक अधिकारों के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं। कोर्ट ने धर्मांतरण के बाद अंतरधार्मिक विवाह और आपराधिक प्रक्रिया संहिता ( CrPC) की धारा 164 के तहत यौन उत्पीड़न पीड़ितों के बयान दर्ज करने के लिए अधिकारियों द्वारा पालन किए जाने वाले विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि धर्मांतरण प्रमाण पत्र के साथ एक प्रमाण पत्र और जोड़ा जाना चाहिए जिसमें धर्म परिवर्तन में निहित सिद्धांतों, अनुष्ठानों और अपेक्षाओं के साथ-साथ वैवाहिक तलाक, उत्तराधिकार, कस्टडी और धार्मिक अधिकार से संबंधित निहितार्थ और परिणामों के बारे में बताया गया है। कोर्ट ने आदेश दिया कि धर्मांतरण और शादी का प्रमाणपत्र दूसरी स्थानीय भाषा में भी होना चाहिए, जिसे धर्म बदलने वाला समझ सके और यह साबित किया जा सके कि उसने इसे समझा है।
कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसा ही हिंदी में भी हो, जहां संभावित धर्मांतरित व्यक्ति द्वारा बोली और समझी जाने वाली भाषा हिंदी है, इसके अलावा प्राधिकरण द्वारा उपयोग की जाने वाली किसी दूसरी भाषा को प्राथमिकता दी जाती है। जहां संभावित धर्मांतरित व्यक्ति द्वारा बोली और समझी जाने वाली भाषा हिंदी के अलावा दूसरी है, वहां उस भाषा का इस्तेमाल किया जा सकता है। कोर्ट ने आगे कहा है कि उम्र, वैवाहिक इतिहास और वैवाहिक स्थिति के बारे में एक हलफनामा और उसके सबूत भी पेश किए जाएंगे और हलफनामे में यह भी कहा जाएगा कि वैवाहिक तलाक, उत्तराधिकार से संबंधित निहितार्थ और परिणामों को समझने के बाद स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन किया जा रहा है।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने साफ किया कि ये निर्देश अपने मूल धर्म में वापस धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों पर लागू नहीं होंगे क्योंकि धर्म परिवर्तन करने वाला व्यक्ति पहले से ही अपने मूल धर्म से अच्छी तरह परिचित है। साथ ही ये दिशानिर्देश विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत होने वाले विवाह पर लागू नहीं होंगे। कोर्ट ने आगे कहा कि ये दिशानिर्देश उन भोले-भाले, अशिक्षित, अतिसंवेदनशील, किशोर जोड़ों के लिए हैं, जो इस तरह के धर्मांतरण के असर को पूरी तरह से समझे बिना, धर्मांतरण कर नए संबंधों में बंध जाते हैं, जिसका असर इससे कहीं ज्यादा उनके व्यक्तिगत कानूनों और जीवन पर पड़ता है।
इस मामले के बाद कोर्ट ने जारी की गाइडलाइन
दरअसल, कोर्ट ने ये निर्देश शिकायतकर्ता और आरोपी की शादी होने के बाद भी भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार करते हुए पारित किए। अपनी शिकायत में, महिला ने आरोप लगाया था कि 24 सितंबर, 2022 को मकसूद अहमद नाम के व्यक्ति ने उसके साथ बलात्कार किया था। जिसके बाद 18 अक्टूबर, 2022 को एफआईआर दर्ज की गई थी. 28 अक्टूबर को महिला ने इस्लाम अपना लिया और अहमद से शादी कर ली।
हालांकि, आरोपी को 18 नवंबर, 2022 को गिरफ्तार कर लिया गया था। जबकि महिला ने दावा किया कि अहमद से शादी के समय उसका अपने पहले पति से तलाक हो गया था, कोर्ट को बयान को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं मिला। उस समय अहमद पहले से ही शादीशुदा था। एफआईआर को रद्द करने का मामला हाईकोर्ट के सामने आया तो बताया गया कि आरोपी और शिकायतकर्ता कानूनी रूप से शादीशुदा नहीं हैं और वे अब एफआईआर को रद्द करना चाहते हैं। क्योंकि वो अब अपने पहले पति के दो बच्चों के साथ इस पति के साथ रहती है। महिला ने कहा कि उसे एफआईआर रद्द किए जाने पर कोई एतराज़ नहीं है।
मामले के तथ्यों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने कहा कि जब आरोपी और शिकायतकर्ता की शादी हुई, तो शिकायतकर्ता का उसके पहले पति से तलाक नहीं हुआ था और इससे वह पुनर्विवाह के लिए अयोग्य हो गई। कोर्ट ने कहा कि ऐसी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि अधिकार के तौर पर, पीड़िता और आरोपी के बीच बाद में हुई शादी आईपीसी की धारा 376 के तहत दर्ज हर मामले की एफआईआर को रद्द करने के लिए पर्याप्त आधार है। यह कोर्ट भी इस तरह की शादी को संदेह की दृष्टि से देखता है और आरोपी की प्रामाणिकता भी अस्पष्ट है क्योंकि इस मामले में शादी तुरंत यानी एफआईआर दर्ज होने के 10 दिनों के भीतर शिक़ायतकर्ता का धर्म इस्लाम में परिवर्तित करने के बाद संपन्न हुआ था।
इस स्तर पर यह तय नहीं किया जा सकता है कि क्या इस मामले में धर्म परिवर्तन केवल शिक़ायतकर्ता से शादी करने के इरादे से किया गया था या गुप्त रूप से यह बताने के लिए कि अब उसकी शादी आरोपी से हो गई है और वे दोनों अब ऐसा कर सकते हैं । आखिर में कोर्ट यह निष्कर्ष निकाला कि कार्यवाही को रद्द करना दोनों पक्षों द्वारा कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग की अनुमति देने के बराबर होगा। इस लिए तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर, यह कोर्ट इसे एफआईआर को रद्द करने के लिए उपयुक्त मामला नहीं मानती है।
संदर्भ स्रोत : टीवी 9
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