नई दिल्ली: लगभग चार साल की एक माइनर बच्ची की कस्टडी उसकी मां के पास ही कायम रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दादी एक मां के प्यार और देखभाल की जगह नहीं ले सकती। बच्ची की कस्टडी के लिए दाखिल अपील में उसके पिता ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि उसकी मां बच्ची को प्यार-दुलार दे सकती है।
कोर्ट ने मां को सौंपी बच्ची की कस्टडी
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस रेणु भटनागर की डिवीजन बेंच ने फैमली कोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया जिसने बच्ची की मां को उसका अभिभावक घोषित किया और उसे बच्ची की कस्टडी सौंपी। हाईकोर्ट ने हालांकि, बच्ची की अपने पिता से मुलाकात के लिए फैमिली कोर्ट द्वारा तय की गई जगह और दिन पर आपत्ति जताई। फैमिली कोर्ट ने पिता को रोहिणी कोर्ट के चिल्ड्रन रूम में बच्ची से मुलाकात की इजाजत दी थी और इसके लिए महीने के पहले और तीसरे हफ्ते के मंगलवार का दिन तय किया था।
बच्ची के पिता ने दी थी निचली अदालत के फैसले को चुनौती
कोर्ट ने कहा कि गार्जियनशिप याचिका में ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आवेदक(बच्ची के) ने बच्चे के साथ कभी गलत व्यवहार किया और वह अपनी बच्ची से नियमित रूप से मिलने के लिए अनफिट था। न ही कोई और कारण बताया गया जिसकी वजह से उसे बच्ची के साथ निगरानी में मिलने के लिए कहा जाए। बच्ची के पिता ने फैमिली कोर्ट के आदेश को यहां चुनौती दी जिसके जरिए बच्ची की कस्टडी उसकी मां को दी गई।
क्या है बच्ची के माता-पिता का दावा?
मौजूदा अपील में बच्ची के पिता ने दावा किया कि पत्नी के ससुराल से जाने के बाद से बच्ची उसके पास थी। वह खुश थी और मां से अलगाव का आरोप बच्ची की कस्टडी पाने के लिए प्रतिवादी द्वारा गढ़ा गया एक मुखौटा मात्र है। दूसरी ओर, बच्ची की मां की ने तर्क दिया कि पति और ससुराल वालों की कथित क्रूरता की वजह से उसके पास ससुराल छोड़ने के सिवा और कोई चारा नहीं रह गया था। बच्ची की उम्र को देखते हुए वह उसकी नेचुरल गार्जियन है।
कोर्ट ने संबंधित कानूनों पर गौर किया और पिता के लिए अंतरिम कस्टडी की व्यवस्था की, जिसके जरिए अपीलकर्ता को हर महीने वीकेंड पर अपनी बच्ची से मिलने की इजाजत दी और उस दौरान बच्ची को दिल्ली से बाहर ले जाने पर रोक लगा दी। हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के इस निष्कर्ष पर सहमति जताई कि अपीलकर्ता ने ऐसा कुछ रिकॉर्ड पर पेश नहीं किया, जिससे प्रथम दृष्टया इस नतीजे पर पहुंचा जाए कि मां अपनी माइनर बच्ची की कस्टडी पाने के लिए फिट नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि एक छोटी बच्ची की कस्टडी देते हुए हमें यह भी अपने जहन में रखना होता है कि उसके रचनामत्क दिनों, बच्ची को अपनी मां के प्यार और साथ की बहुत जरूरत होती है। हालांकि, आवेदक की वकील ने यह दलील दी कि उसकी मां बच्ची को प्यार और सपोर्ट दे सकती है। पर हमारी राय में दादी एक मां के प्यार और देखभाल की जगह नहीं ले सकती। कोर्ट ने गौर किया महिला ने ससुराल छोड़ने के बाद तुरंत गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट, 1980 के सेक्शन 12 के तहत बच्ची की कस्टडी के लिए आवेदन दिया था। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि वह बच्ची को अकेला छोड़कर चली गई थी।
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *