छाया : दीप्ति पटवा के फेसबुक अकाउंट से
भोपाल। जब परिवार में कोई बच्चा दिव्यांग पैदा होता है, तो उसके साथ-साथ पूरे परिवार की दुनिया बदल जाती है। ऐसी ही एक बेटी ने न केवल अपने भाई के भविष्य को संवारने का बीड़ा उठाया, बल्कि सैकड़ों दिव्यांग बच्चों की जिंदगी में भी उजाले की किरण बन गई। यह कहानी है भोपाल की दीप्ति पटवा की, जिनके समर्पण, त्याग और संघर्ष ने समाज सेवा को एक नया आयाम दिया।
बहन ने बदली अपनी राह
दीप्ति का सपना था कि वह कंप्यूटर साइंस में करियर बनाए, इसलिए उन्होंने बीएससी के बाद एमसीए में दाखिला लिया। लेकिन उनके जीवन की दिशा तब बदल गई जब उनके छोटे भाई लोकेश सातलकर के मूकबधिर होने का पता चला। वह परिवार में इकलौता भाई था और जब वह चार से पाँच वर्ष का हुआ, तब उसकी श्रवण और वाणी बाधा का पता चला। उस समय भोपाल में मूकबधिर बच्चों को सांकेतिक भाषा सिखाने के लिए शिक्षक उपलब्ध नहीं थे। केवल इंदौर और मुंबई जैसे शहरों में विशेषज्ञ मौजूद थे। दीप्ति और उनके परिवार ने मिलकर तीन महीने के लिए एक शिक्षक को भोपाल बुलाया और चंदा जुटाकर उनकी फीस दी। इसी दौरान दीप्ति ने तय किया कि वह अपने भाई के साथ-साथ अन्य दिव्यांग बच्चों के लिए भी कुछ करेंगी।
दीप्ति ने एमसीए छोड़कर बीएड (श्रवण बाधित) में दाखिला लिया और साथ ही भोज विश्वविद्यालय से सांकेतिक भाषा में सर्टिफिकेट कोर्स भी किया। साल 2005 में उन्होंने एक छोटे से किराए के कमरे में कुछ दिव्यांग बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। आज उनका भाई अपने पैरों पर खड़ा है और एक निजी कंपनी में कार्यरत है, अपने परिवार के साथ एक अच्छी जिंदगी गुजार रहा है। उसकी पत्नी भी मूकबधिर है। बेटी सामान्य है।
विवाह के बाद पति गौरव पटवा के साथ एक गैर सरकारी संगठन बनाया। अपने भाई जैसे अन्य दिव्यांगों की सेवा के लिए बाद में 2010 में शिवाजी नगर में 'जीडी रेनबो स्कूल' दो कमरों से इसे शुरू किया। तत्कालीन कलेक्टर एसके मिश्रा ने - बहुत प्रोत्साहन दिया। धीरे-धीरे स्कूल में आने वाले बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। अब न सिर्फ मूकबधिर, बल्कि दृष्टिबाधित, अस्थिबाधित, सेरेब्रल पाल्सी (CP) और मानसिक रूप से दिव्यांग (ID) बच्चे भी स्कूल आने लगे। पिछले आठ वर्षों में स्कूल का स्थान चार बार बदला गया है, लेकिन स्कूल की गुणवत्ता और सेवाभाव में कोई कमी नहीं आई। आज 170 बच्चे इस स्कूल में पंजीकृत हैं, जिनमें से लगभग 80 बच्चे प्रतिदिन नियमित रूप से आते हैं। स्कूल में शिक्षा के साथ-साथ वोकेशनल ट्रेनिंग जैसे राखी बनाना, पेंटिंग बनाना, हस्तशिल्प का प्रशिक्षण, त्योहारों पर प्रदर्शनी और गिफ्ट वितरण आदि पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। हर साल मार्च में वार्षिक उत्सव आयोजित किया जाता है जिसमें बच्चे डांस, म्यूजिक, नाटक, पेंटिंग आदि में भाग लेते हैं। इन आयोजनों में सफल दिव्यांग व्यक्तियों का सम्मान किया जाता है ताकि बच्चों को प्रेरणा मिले। स्कूल हर साल बच्चों को राज्य से बाहर भ्रमण पर भी ले जाता है। वर्ष 2025 में स्कूल की टीम कन्याकुमारी यात्रा पर जा रही है।
सरकारी नौकरी में बच्चों का चयन
दीप्ति की लगन का ही परिणाम है कि वर्ष 2025 में स्कूल के तीन छात्रों अमित मुरजानी. शुभम मेहरा और प्रिया शर्मा का चयन सरकारी नौकरी के लिए हुआ है। यह उपलब्धि न सिर्फ उन छात्रों के लिए गर्व की बात है, बल्कि समाज के लिए एक बड़ा संदेश भी है कि सही मार्गदर्शन और शिक्षा से कोई भी बाधा पार की जा सकती है। इसके अलावा स्कूल के कई छात्र बाल श्री अवार्ड जैसे राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं।
खेलों में भागीदारी
दीप्ति ने खेलों के क्षेत्र में भी दिव्यांगों को आगे बढ़ाने के लिए प्रयास किए हैं। व्हीलचेयर क्रिकेटर शैलेंद्र यादव के अनुरोध पर उन्होंने व्हीलचेयर पुरुष क्रिकेट और अस्थिबाधित महिला क्रिकेट टूर्नामेंट आयोजित कराए। दिसंबर 2025 में भोपाल में अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें श्रीलंका और नेपाल की टीमें भाग लेंगी। साथ ही चार महिला दिव्यांग टीमें भी इसमें हिस्सा लेंगी।
सम्मान
दीप्ति को मध्यप्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2010 में गुरु नानक अवार्ड से सम्मानित किया गया था। वे सरकारी मंचों पर सांकेतिक भाषा में मंच संचालन भी करती हैं, जो दर्शाता है कि वे न केवल दिव्यांगों की सेवा करती हैं, बल्कि समाज को भी जागरूक कर रही हैं। वे कहती हैं “यह स्कूल मेरे लिए सिर्फ एक संस्था नहीं, बल्कि एक मिशन है। मैं चाहती हूं कि मेरे भाई जैसे किसी भी दिव्यांग को कभी हाशिए पर न रहना पड़े। हम हर साल कुछ नया करते हैं, कुछ नया जोड़ते हैं, ताकि इन बच्चों को समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके।”
सन्दर्भ स्रोत : दीप्ति पटवा द्वारा प्रेषित सामग्री
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