सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब पति-पत्नी का तलाक हो चुका हो और दोनों अपनी-अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए हों, तो उनके रिश्तेदारों पर आपराधिक मामला जारी रखना किसी भी तरह से उचित नहीं है। जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए एक पिता-ससुर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया।
आपराधिक न्याय प्रणाली पर बोझ डालता है- सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने आदेश में कहा- 'जब वैवाहिक रिश्ता खत्म हो चुका हो और दोनों पक्ष आगे बढ़ चुके हों, तो रिश्तेदारों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई जारी रखना किसी भी वैध उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता। यह केवल कड़वाहट को लंबा खींचता है और आपराधिक न्याय प्रणाली पर बोझ डालता है।' सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून का इस्तेमाल इस तरह होना चाहिए जिससे असली पीड़ितों को न्याय मिले, लेकिन उसके दुरुपयोग को भी रोका जा सके।
बेवजह पति के पूरे परिवार को मुकदमों घसीटा जाता है
अदालत ने पहले के अपने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अक्सर पति के पूरे परिवार को, चाहे उनका कोई सीधा संबंध विवाद से न हो, मुकदमों में घसीटा जाता है। यह कानून का दुरुपयोग है, खासकर तब जब वे अलग रहते हों या उनका ससुराल से कोई वास्ता न हो। यह आदेश उस अपील पर आया जिसमें एक व्यक्ति ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने उसकी बहू की तरफ से दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था। मामले में पति-पत्नी का 2021 में तलाक हो चुका था और दोनों अब अलग-अलग, स्वतंत्र जीवन जी रहे हैं।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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