बॉम्बे हाईकोर्ट : सास-ससुर की मानसिक

blog-img

बॉम्बे हाईकोर्ट : सास-ससुर की मानसिक
शांति के लिए बहू को बेघर नहीं किया जा सकता

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक टिप्पणी में कहा कि किसी महिला को केवल उसके बुजुर्ग ससुराल वालों की मानसिक शांति बनाए रखने के लिए उसके वैवाहिक घर से बेदखल या बेघर नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत गठित मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल (भरण-पोषण न्यायाधिकरण) द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी।

महिला ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि पति द्वारा अपने माता-पिता की मिलीभगत से उसे घर से बाहर निकालने के लिए मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल का दुरुपयोग किया जा रहा है। पीठ ने स्पष्ट किया कि वरिष्ठ नागरिक मन की शांति के साथ जीने के हकदार हैं, लेकिन वे अपने अधिकारों का इस्तेमाल इस तरह से नहीं कर सकते हैं जिससे घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के तहत किसी महिला के अधिकार खत्म हो जाएं। 

अदालत ने मामले में प्रकाश डालते हुए कहा, 'इसमें कोई संदेह नहीं है कि वरिष्ठ नागरिक अपने घर में शांति के साथ, बहू और उसके पति के बीच वैवाहिक कलह के कारण बिना किसी परेशानी के रहने के हकदार हैं। लेकिन साथ ही, वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत मशीनरी का उपयोग घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 17 के तहत किसी महिला के अधिकार को पराजित करने के उद्देश्य से नहीं किया जा सकता है'। 

क्या है पूरा मामला

दरअसल, याचिकाकर्ता और उसके पति ने 1997 में शादी की थी और उस घर में रह रहे थे जो सास के नाम पर था। पति-पत्नी के बीच कुछ वैवाहिक कलह के बीच, मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल ने 2023 में एक आदेश पारित कर कपल को फ्लैट खाली करने का निर्देश दिया। हालांकि, याचिकाकर्ता के पति ने घर खाली नहीं किया और मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती भी नहीं दी। उसने अपने माता-पिता के साथ रहना जारी रखा। इससे न्यायालय को यह विश्वास हो गया कि महिला के ससुराल वालों द्वारा शुरू की गई बेदखली की कार्यवाही केवल उसे घर से बाहर निकालने की एक चाल थी।

कोर्ट ने कहा, 'उसके पास रहने के लिए कोई अन्य जगह नहीं है। इसलिए, वरिष्ठ नागरिकों की मानसिक शांति सुनिश्चित करने के लिए उसे बेघर नहीं किया जा सकता है' उच्च न्यायालय ने ट्रिब्यूनल के बेदखली आदेश को रद्द कर दिया और यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता-महिला द्वारा घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत साझा निवास में रहने के अधिकार के लिए दायर याचिका अभी भी एक मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित थी। इसलिए, उच्च न्यायालय ने मजिस्ट्रेट को महिला की याचिका पर शीघ्रता से निपटारा करने का भी आदेश दिया। 

सन्दर्भ स्रोत : आज तक

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



गुजरात हाईकोर्ट : दहेज के आरोप अक्सर
अदालती फैसले

गुजरात हाईकोर्ट : दहेज के आरोप अक्सर , दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल होते हैं

कोर्ट ने कहा - यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।

दिल्ली हाईकोर्ट : मातृ देखभाल से क्यों  वंचित हो तीसरा बच्चा
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट : मातृ देखभाल से क्यों वंचित हो तीसरा बच्चा

तीसरी बार मां बनी महिला को मातृत्व अवकाश नहीं देने पर हाईकोर्ट सख्त

हिमाचल हाईकोर्ट: तलाकशुदा पत्नी को केवल व्यभिचार के आधार पर
अदालती फैसले

हिमाचल हाईकोर्ट: तलाकशुदा पत्नी को केवल व्यभिचार के आधार पर , भरण-पोषण पाने से वंचित नहीं किया जा सकता

धारा 125(4) उन पत्नियों पर लागू होती है, जो अभी भी अपने पतियों से विवाहित हैं और उन पत्नियों पर लागू नहीं होती, जिन्होंन...

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट : झूठे तथ्यों के सहारे दर्ज
अदालती फैसले

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट : झूठे तथ्यों के सहारे दर्ज , करवाई गई एफआईआर कानून का दुरुपयोग

सास-ससुर के खिलाफ झूठा केस दर्ज करवाने वाली बहू को हाईकोर्ट ने कड़ी फटकार लगाते हुए जारी किए जुर्माना देने के आदेश

केरल हाईकोर्ट : लिव-इन पार्टनर पर नहीं
अदालती फैसले

केरल हाईकोर्ट : लिव-इन पार्टनर पर नहीं , चलाया जा सकता क्रूरता का मुकदमा

'आईपीसी की धारा 498ए के तहत दंडनीय अपराध के लिए सबसे आवश्यक बात यह है कि महिला के पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा क्रूर...

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट-सहमति से अलग होने की मांग खारिज
अदालती फैसले

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट-सहमति से अलग होने की मांग खारिज , होने के बाद क्रूरता के आरोप लगा नहीं मांग सकते तलाक

हाईकोर्ट ने कहा - तलाक याचिका खारिज होने के बाद धारा 10 के तहत न्यायिक अलगाव के लिए याचिका दायर करना कानून की प्रक्रिया...