छाया : लाइव लॉ
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मां की ओर से अपने छोटे बच्चे की देखभाल के लिए नौकरानी रखने पर अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि बच्चे की देखरेख के लिए नौकरानी की सहायता लेना, उसे बच्चे की हिरासत के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता। एक बच्चे की कस्टडी को लेकर दंपति के बीच चल रहे विवाद में पिता की आपत्ति को खारिज कर दी गई। कोर्ट ने साफ किया कि शिशुओं वाले परिवार में ऐसी व्यवस्था आम है और यह अपने आप में मां की लापरवाही या अक्षमता को नहीं दर्शाता।
यह मामला जून 2023 में जन्मे एक शिशु की कस्टडी विवाद से जुड़ा है। वैवाहिक घर छोड़ने के बाद मां ने फैमिली कोर्ट में गार्जियंस एंड वार्ड्स एक्ट के तहत स्थायी हिरासत के लिए याचिका दायर की थी। उन्होंने अंतरिम कस्टडी की भी मांग रखी, जो 30 जनवरी 2024 को मंजूर कर ली गई। पिता ने इस अंतरिम आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ में चुनौती दी। उन्होंने दावा किया कि मां बच्चे की व्यक्तिगत देखभाल नहीं करती और उसने यह जिम्मेदारी एक नौकरानी को सौंप दी है। उन्होंने मां की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का हवाला देते हुए कस्टडी के फैसले को पलटने की मांग की। हालांकि, जस्टिस आरएम जोशी की खंडपीठ ने इस दलील को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने अपने फैसले में क्या दी दलील
अदालत ने कहा, 'यह मान लेने पर भी कि प्रतिवादी ने नौकरानी रखी है, यह असामान्य नहीं है कि छोटे बच्चे वाले घर में नौकरानी की सहायता ली जाए। ऐसे में यह उस आदेश में हस्तक्षेप का आधार नहीं बन सकता।' कोर्ट ने यह भी कहा कि पिता बच्चे की मां के पास हिरासत होने से किसी नुकसान का कोई ठोस सबूत पेश करने में विफल रहे। खंडपीठ ने कहा कि प्रसव के बाद चिंता और अवसाद असामान्य नहीं हैं। इससे यह साबित नहीं होता कि मां अपने बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ है। फैमिली कोर्ट के निष्कर्षों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि मां सामान्य रूप से कार्य कर रही है, उसके पास ड्राइविंग लाइसेंस है। वह पुणे में स्वतंत्र रूप से आवागमन करती है और उसमें कोई हानिकारक व्यवहार नहीं देखा गया।
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